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क्रोनिक डिप्रेशन 'डिस्थीमिया' से क्या है बचाव?

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Nidhi Sinha द्वारा लिखित · अपडेटेड 20/11/2020

    क्रोनिक डिप्रेशन 'डिस्थीमिया' से क्या है बचाव?

    वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) के अनुसार पुरे विश्व में 264 मिलियन लोग डिप्रेशन के शिकार हैं। वहीं डब्लूएचओ का यह भी कहना है कि डिप्रेशन एक तरह का सामान्य मानसिक विकार है। लेकिन जब डिप्रेशन की समस्या सामान्य से ज्यादा बढ़ने लगे, तो यह परेशानी क्रोनिक डिप्रेशन का रूप ले सकती है और इस समस्या को डिस्थीमिया कहते हैं।

    • डिस्थीमिया (Persistent depressive disorder) क्या है?

    • डिस्थीमिया के लक्षण क्या हैं?
    • डिस्थीमिया के कारण हैं?
    • डिस्थीमिया के जोखिम क्या हो सकते हैं?
    • डिस्थीमिया का निदान कैसे संभव है?
    • डिस्थीमिया (क्रोनिक डिप्रेशन) की समस्या से कैसे बचा सकता है?
    • परसिस्टेंट डिप्रेसिव डिसऑर्डर का इलाज कैसे किया जाता है?
    • डिस्थीमिया के पेशेंट को काउंसलर से मिलना चाहिए?
    • परसिस्टेंट डिप्रेसिव डिसऑर्डर से पीड़ित लोगों को क्या करना चाहिए?
    • क्या कहती हैं साइकेट्रिस्ट एवं फिजियोथेरेपिस्ट डॉ. अंजली छाब्रिया?
    • कौन-कौन से योगासन हैं लाभकारी?  

    क्या है डिस्थीमिया (Dysthymia)?

    डिस्थीमिया को मेडिकल भाषा में परसिस्टेंट डिप्रेसिव डिसऑर्डर (Persistent depressive disorder (PDD)) भी कहते हैं। यह एक तरह का डिप्रेशन है, जो लंबी अवधि तक लोगों में देखा जाता है। रिसर्च के अनुसार डिस्थीमिया से पीड़ित व्यक्ति में इसके लक्षण दो साल या इससे ज्यादा वक्त तक भी नजर आ सकते हैं। ऐसी लोगों में या पीडीडी से पीड़ित व्यक्तियों में दैनिक कार्यों को करने में भी रूचि नहीं होती है।

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    डिस्थीमिया के लक्षण क्या हैं?

    परसिस्टेंट डिप्रेसिव डिसऑर्डर या डीस्थेमिया क्रोनिक डिप्रेशन के अंतर्गत आता है। नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन (NCBI) के अनुसार इसके लक्षण निम्नलिखित हो सकते हैं। जैसे:

    • दुखी या उदास रहना
    • निराश रहना
    • कमजोरी महसूस करना
    • भूख नहीं लगना
    • ध्यान केंद्रित (कॉन्सन्ट्रेशन) करने में परेशानी महसूस होना
    • दैनिक कार्यों में रूचि न लेना
    • अपने आपको छोटा महसूस करना (Poor self-esteem)
    • नकारात्मक विचारधारा रखना या धीरे-धीरे नकारात्मक होना
    • सोशल एक्टिविटी में शामिल न होना
    • अकेले रहना
    • नींद नहीं आना
    • चिड़चिड़ापन या अत्यधिक गुस्से में रहना 
    • अपने आपको सक्षम महसूस न करना

    डिस्थीमिया के लक्षण अक्सर बचपन या किशोरावस्था के दौरान आने लगते हैं। वहीं बच्चों या युवाओं में चिड़चिड़ापन, मूडी या निराश रहने जैसे लक्षण देखे जा सकते हैं। बच्चे या युवा पढ़ाई में बेहतर प्रदर्शन से दूर रह सकते हैं, जिस वजह से वो अपने दोस्तों या अन्य लोगों से बातचीत करने में भी घबराहट महसूस कर सकते हैं। इसलिए इन लक्षणों को समझना बेहद जरूरी है और ऐसे लक्षण अगर नजर आते हैं, तो नजरअंदाज न करते हुए जल्द से जल्द हेल्थ एक्सपर्ट से संपर्क करना चाहिए। 

    डिस्थीमिया के कारण क्या हैं? 

    रिसर्च के अनुसार परसिस्टेंट डिप्रेसिव डिसऑर्डर के मुख्य कारण क्या हो सकते हैं, इसपर शोध जारी है। लेकिन परसिस्टेंट डिप्रेसिव डिसऑर्डर एक तरह का डिप्रेशन (अवसाद) होता है। इसलिए इसके कारण निम्नलिखित हो सकते हैं। जैसे:

    इन ऊपर बताये कारणों के अलावा डिस्थीमिया के अन्य कारण भी हो सकते हैं। शोधकर्ता उन जींस (Genes) का पता लगाने की कोशिश भी कर रहें हैं, जिससे डिप्रेशन (अवसाद) के कारणों का पता चल सके।

    एक रिसर्च के अनुसार डिस्थीमिया की समस्या 105 मिलियन लोगों में देखी गई है। डिस्थीमिया की समस्या पुरुषों के तुलना में महिलाओं में ज्यादा देखी जाती है। आंकड़ों के अनुसार महिलाओं में 1.8 प्रतिशत महिला इस समस्या से पीड़ित हैं, तो वहीं पुरुषों की संख्या 1.3 प्रतिशत है। रिसर्च में यह भी बताया गया है कि 3 से 6 प्रतिशत भारतीय भी डिस्थीमिया यानि क्रोनिक डिप्रेशन की समस्या से पीड़ित हैं।

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    परसिस्टेंट डिप्रेसिव डिसऑर्डर (PDD) के जोखिम क्या हो सकते हैं?

    क्रोनिक डिप्रेशन या डिस्थीमिया से पीड़ित लोगों में निम्लिखित शारीरिक या मानसिक परेशानियां हो सकते हैं। जैसे:

    • मेजर डिप्रेशन, एंग्जाइटी डिसऑर्डर या अन्य मूड डिसऑर्डर की समस्या शुरू हो सकती है
    • मादक द्रव्यों का सेवन करना (Substance abuse)
    • पारिवारिक तालमेल न होना
    • रिलेशनशिप में परेशानी होना
    • स्कूल या किसी काम को सही तरह से न कर पाना
    • कोई पुरानी शारीरिक परेशानी शुरू होना
    • आत्महत्या की प्रवृति होना
    • पर्सनालिटी डिसऑर्डर या अन्य मानसिक शारीरिक डिसऑर्डर होना

    डिस्थीमिया का निदान कैसे संभव है?

    अगर कोई व्यक्ति डिस्थीमिया से पीड़ित हैं या डिस्थीमिया के लक्षण समझ पा रहें हैं, तो बिना देर किये डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। डॉक्टर परसिस्टेंट डिप्रेसिव डिसऑर्डर के निदान के लिए आपसे निम्नलिखित सवाल पूछ सकते हैं। जैसे:

    1. आप कितने घंटे सोते हैं?
    2. क्या आप  थकावट महसूस करते हैं?
    3. क्या आपको ध्यान केंद्रित करने में परेशानी होती है?
    4. आपकी मेडिकल हिस्ट्री क्या है? (कोई पुरानी बीमारी)
    5. क्या आपको थायरॉइड की समस्या है या आप इससे जुड़ी कोई दवा लेते हैं?

    इन ऊपर बताये गए सवालों के साथ-साथ डॉक्टर पेशेंट से अन्य पारिवारिक मेडिकल हिस्ट्री की भी जानकारी ले सकते हैं।

    डिस्थीमिया (क्रोनिक डिप्रेशन) की समस्या से कैसे बचा सकता है?

    स्वास्थ्य विशेषज्ञों एवं रिसर्च के अनुसार डिस्थीमिया लाइफस्टाइल में बदलाव ला कर इस परेशानी से बचा जा सकता है। जैसे:

    1. आठ से नौ घंटे की पूरी नींद रोजाना लेने की आदत डालें
    2. पौष्टिक आहार का सेवन करें
    3. नियमित व्यायाम करें
    4. एल्कोहॉल का सेवन कम करें या न करें
    5.  गैर-कानूनी ड्रग्स सेवन न करें
    6. डॉक्टर द्वारा बताये गए निर्देशों का पालन करें
    7. अपने आपको व्यस्त रखें
    8. वैसे लोगों से बातचीत करें, जिनसे बात कर आप अच्छा महसूस करते हों
    9. सकारात्मक सोच रखने वाले लोगों के संपर्क में रहें

    इन ऊपर बताये नौ बातों को ध्यान रखकर डिस्थीमिया या किसी भी तरह के डिप्रेशन की समस्या से बचा जा सकता है।

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    परसिस्टेंट डिप्रेसिव डिसऑर्डर का इलाज कैसे किया जाता है?

    हेल्थ एक्सपर्ट के अनुसार डिस्थीमिया का इलाज एंटीडिप्रेसेंट मेडिसिन से किया जाता है। एंटीडिप्रेसेंट मेडिसिन के सेवन से डिप्रेशन की परेशानी दूर होती है। हालांकि ऐसा नहीं है कि दवा के सेवन से तुरंत लाभ मिले। एक सप्ताह से कई महीने भी डिस्थीमिया के पेशेंट को ठीक होने में लग सकता है। ट्रीटमेंट के दौरान दवा का सेवन ठीक वैसे ही करना चाहिए जैसे मनोचिक्त्सक ने आपको दी हो। अपनी मर्जी से दवा का सेवन बंद करना, ज्यादा करना या कम करना पेशेंट की परेशानी को बढ़ा सकता है। कुछ केसेस में एंटीडिप्रेसेंट मेडिसिन के साइड इफेक्ट्स भी हो सकते हैं, तो ऐसी स्थिति में  जल्द से जल्द डॉक्टर से संपर्क करें।

    डिस्थीमिया के पेशेंट को काउंसलर से मिलना चाहिए?

    शोध के अनुसार कुछ रोगियों का मानना है की काउंसलिंग से परसिस्टेंट डिप्रेसिव डिसऑर्डर से लड़ना आसान होता है। क्योंकि काउंसलर के पास आप अपने विचारों या भावनाओं को व्यक्त कर सकते हैं। वहीं हेल्थ एक्सपर्ट का मानना ​​है कि पीडीडी और अन्य प्रकार के अवसाद के इलाज के लिए चिकित्सा के साथ-साथ टॉक थेरिपी लाभकारी होता है। 

    परसिस्टेंट डिप्रेसिव डिसऑर्डर से पीड़ित लोगों को क्या करना चाहिए? 

    परसिस्टेंट डिप्रेसिव डिसऑर्डर क्रोनिक कंडीशन है, जो लंबे वक्त तक भी रह सकता है। लेकिन ऐसा नहीं है की इस समस्या से निकला नहीं जा सकता है। इसलिए मेडिकेशन या काउंसलिंग के अलावा निम्नलिखित गतिविधि अपने जीवन में अपनाएं। जैसे: 

    • फिल्म देखें
    • समय निकाल कर लॉन्ग ड्राइव पर जाएं
    • इनडोर एवं आउटडोर गेम्स में हिस्सा लें
    • गार्डनिंग करें
    • अपनी पसंदीदा एक्टिविटी में हिस्से लें

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    परसिस्टेंट डिप्रेसिव डिसऑर्ड से जुड़े अहम कुछ सवालों के जवाब के लिए हमने बात की मुंबई की मशहूर साइकेट्रिस्ट एवं फिजियोथेरेपिस्ट डॉ. अंजली छाब्रिया एवं  डेथ इज नॉट दी आंसर: अंडरस्टैंड सुसाइड एंड दी वेस टू प्रिवेंट इट (Death is Not The Answer: Understanding Suicide and the Ways to Prevent It) की लेखिका। 

    डिस्थीमिया ठीक होने में कई साल लग जाते हैं। इलाज के बावजूद भी अगर लक्षण नजर आये या इलाज के बाद भी अगर परेशानी कम न हो, तो ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए? डॉ. छाब्रिया कहती हैं, “हर पेशेंट का इलाज अलग तरह से किया जाता है। इसलिए साइकेट्रिस्ट के द्वारा दिये गए निर्देश का पालन करें। अपनी मर्जी से दवा के सेवन का डोज न बढ़ाये और न ही कम करें और साइकेट्रिस्ट के संपर्क करें’। 

    परसिस्टेंट डिप्रेसिव डिसऑर्डर का कारण क्या है? डॉ. छाब्रिया कहती हैं, “जिस तरह से हर पेशेंट का इलाज अलग तरह से किया जाता है, ठीक वैसे ही हर पेशेंट के डिप्रेशन का कारण भी अलग-अलग होता है। इन कारणों में शामिल है रिलेशनशिप, आर्थिक तंगी, पारिवारिक परेशानी, सफलता न मिलना, कोई अप्रिय घटना या किसी करीबी की मृत्यु’।
    यदि किसी व्यक्ति को कम उम्र या बचपन से ही डिप्रेशन की समस्या हो और यह परेशानी किसी पारिवारिक सदस्य की वजह से हो, तो ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए? डॉ. छाब्रिया कहती हैं, “अगर किसी को कम उम्र से ही डिप्रेशन की समस्या हो और अगर ऐसा किसी पारिवारिक सदस्य की वजह से होता है, जो उनके साथ रहते हैं, तो ऐसी स्थिति में पेशेंट की काउंसलिंग के साथ-साथ परिवार के सदस्य की भी काउंसलिंग की जाती है। माता-पिता के साथ-साथ अगर घर में अन्य सदस्य रहते हैं, तो उन्हें भी ऐसी परिस्थिति से होने वाली परेशानियों को समझाया जाता है। क्योंकि इलाज एवं काउंसलिंग के साथ-साथ परिवार वालों का सकारात्मक रवैया डिप्रेशन, तनवा, एंग्जायटी या चिंता को दूर करने में अहम भूमिका होती है’।  
    क्या माइल्ड डिप्रेशन या डिप्रेशन के किसी भी स्टेज से बाहर निकलने के लिए सिर्फ काउंसलिंग कारगर है?  सिर्फ काउंसलिंग के सवाल डॉ. छाब्रिया कहती हैं, “इलाज के लिए सिर्फ काउंसलिंग का चयन करना सही तरीका नहीं है। इसे एक एग्जाम्पल के माध्यम से समझना आसान होगी की आज के वक्त में कुछ कोरोना पेशेंट को अस्पताल में एडमिट करना पड़ता है, तो वहीं कुछ पेशेंट्स ऐसे भी हैं, जिन्हें सिर्फ कॉरेन्टाइन किया जाता है और वह व्यक्ति ठीक हो जाता है। मेंटल इलनेस से पीड़ित पेशेंट्स के साथ भी यही प्रक्रिया अपनाई जाती है। कुछ पेशेंट्स को इलाज के तौर पर सिर्फ दवा से ठीक किया जाता है, वहीं कुछ लोग सिर्फ काउंसलिंग से ठीक हो जाते हैं, तो कइयों को इलाज और काउंसलिंग दोनों की जरूरत पड़ती है’।  

    परसिस्टेंट डिप्रेसिव डिसऑर्डर से पीड़ित लोगों का खानपान कैसा होना चाहिए?

    परसिस्टेंट डिप्रेसिव डिसऑर्डर की समस्या से बचने के लिए या इससे पीड़ित लोगों को आहार पर विशेष ध्यान देना चाहिए। इसलिए निम्नलिखित खाद्य एवं पेय पदार्थों का सेवन करना चाहिए। जैसे:

    प्रोटीन (Protein)

    प्रोटीन शरीर के सेल्स के निर्माण में अहम भूमिका निभाता है और साथ सही मात्रा में प्रोटीन के सेवन से डिप्रेशन जैसी मानसिक परेशानी भी दूर रहती है। इसलिए प्रोटीन से भरपूर खाद्य पदार्थ जैसे चना (Chickpeas), टर्की (Turkey) या टूना का सेवन लाभकारी हो सकता है।

    ओमेगा-3 फैटी एसिडस (Omega-3 fatty acids)

    डिप्रेसिव डिसऑर्डर की समस्या को दूर करने में ओमेगा-3 फैटी एसिडस की अहम भूमिका होती है। इसलिए मछली (जैसे सैल्मन, टूना एवं छोटी समुद्री मछली), चिया सीड, फ्लैक्स सीड (अलसी) या अखरोट का सेवन किया जा सकता है।

    विटामिन-डी (Vitamin D)

    नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफोर्मशन (NCBI) के अनुसार रिकरेन्ट डिप्रेसिव डिसऑर्डर की समस्या से लड़ने में या ऐसी किसी तरह की परेशानी से बचे रहने के लिए अपने आहार में विटामिन-डी युक्त खाद्य पदार्थ जैसे गाय का दूध, दही, दलीय, अंडा, फैटी फिश या मशरूम का सेवन करना लाभकारी हो सकता है।

    एंटीऑक्सिडेंट (Antioxidants)

    शरीर में एंटीऑक्सिडेंट की कमी को दूर करने के लिए विटामिन-ए, विटामिन-सी या विटामिन-ई युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करना लाभदायक माना जाता है।

    विटामिन-बी (Vitamins-B)

    रिकरेन्ट डिप्रेसिव डिसऑर्डर (सतत अवसादग्रस्तता विकार) की समस्या न हो या अगर आप इस परेशानी से पीड़ित हैं, तो अपने डेली डायट में विटामिन-बी, विटामिन-बी 12, विटामिन-बी 9 युक्त खाद्य पदार्थ जैसे अंडा, मीट, मछली, हरी पत्तेदार सब्जी, ताजे फल-जूस, साबूत अनाज एवं नट्स का सेवन करना चाहिए।

    जिंक (Zinc)

    स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार जिंक एंटीडिप्रेसेंट की तरह काम करता है। इसलिए बॉडी में जिंक की मात्रा बैलेंस्ड बनाये रखने के लिए साबूत अनाज, चिकेन, बीफ, पोर्क, पम्पकिन सीड एवं नट्स का सेवन करना चाहिए।

    क्रोनिक डिप्रेशन की समस्या से दूर रहने के लिए क्या है थेरिपी?

    क्रोनिक डिप्रेशन, एंग्जाइटी, चिंता, तनाव या डिप्रेशन इन समस्याओं से बचने के लिए टॉक थेरिपी बेहतर विकल्प माना जाता है। इसलिए इनसभी परेशानियों से बचने के लिए निम्नलिखित बातों को अपनाएं। जैसे:
    1. अपने विचारों और भावनाओं को स्वस्थ तरीके से व्यक्त करें
    2. जीवन में आ रहे चैलेंज या परेशानियों का सामना करना सीखें
    3. नकारात्मक सोच न रखें
    4. सकारात्मक सोच रखने वाले व्यक्तियों के संपर्क में रहें
    5. अपने जीवन का लक्ष्य तय करें

    क्रोनिक डिप्रेशन की समस्या से बचने के लिए लाइफस्टाइल में क्या बदलाव करें?

    क्रोनिक डिप्रेशन की समस्या लंबे वक्त तक चलने वाली मानसिक परेशानी है। इसलिए जीवनशैली में कुछ बदलाव कर इस समस्या से बचा जा सकता है। जैसे:

    • सप्ताह में कम से कम 3 बार एक्सरसाइज करें
    • ताजे फल और सब्जियों का सेवन करें
    • एल्कोहॉल या ड्रग्स का सेवन न करें
    • एक्यूपंक्चर का सहारा लें 
    • योग या मेडिटेशन की आदत डालें

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    डिस्थीमिया से दूर रहने में कौन-कौन से योग किये जा सकते हैं?

    परसिस्टेंट डिप्रेसिव डिसऑर्डर से बचने के लिए निम्लिखित योग अपनाना लाभकारी माना जाता है। इनमें शामिल है:

    1. शिशुआसान (Child Pose)
    2. हलासन (Plow Pose)
    3. सवासन (Corpse Pose)
    4. अधोमुख श्वानासन (Downward-facing Dog Pose)
    5. सेतु बंधासन (Bridge Pose)
    6. भ्रामरी प्राणायाम (Humming Bee breathing exercise)
    7. नाड़ी शोधन प्राणायाम (Alternate nostril breathing technique)

    1. शिशुआसन (Child Pose)

    डिस्थीमिया-Dysthymia
    डिस्थीमिया की परेशानी को दूर करने के लिए ‘शिशुआसान’

    शिशुआसन को बालासन के नाम से भी जाना जाता है। यह आसान आसनों में से एक है। शिशुआसन एक से तीन मिनट तक करना चाहिए। इस योगासन की मदद से हिप्स, जांघों और घुटनों में खिंचाव पैदा होता है। इस आसान से रिलैक्स की अनुभूति होने के साथ-साथ कमर दर्द, गर्दन दर्द और कंधों के दर्द से राहत मिलने के साथ ही कमर, कंधे एवं गर्दन मजबूत होते हैं।

    2. हलासन (Plow Pose)

    डिस्थीमिया-Dysthymia
    डिस्थीमिया की परेशानी को दूर करने के लिए ‘हलासन’

    हलासन नियमित रूप से करने पर पूरा शरीर ऊर्जावान रहता है। इस योगासन से शरीर में रक्त संचार बढ़ने के साथ ही गले और पेट के आसपास के अंग लचीले रहते हैं। हलासन शरीर से तनाव और चिंता को दूर करने के लिए मददगार साबित होता है। गले या गर्दन में होने वाले दर्द से भी राहत मिलती है।

    3. शवासन (Corpse Pose)

    डिस्थीमिया-Dysthymia
    डिस्थीमिया की परेशानी दूर करने के लिए ‘शवासन’

    शवासन मानसिक तनाव और शारीरिक थकान दूर करने के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। नियमित रूप से शवासन करने से शरीर में नयी ऊर्जा का संचार होता है। यही नहीं इस आसन को नियमित करने से हृदय गति की समस्या दूर भी दूर हो सकती है।

    4. अधोमुख श्वानासन (Downward-facing Dog Pose)

    डिस्थीमिया-Dysthymia
    डिस्थीमिया की परेशानी को दूर करने के लिए ‘अधोमुख श्वानासन’

    अधोमुख श्वानासन आपको रिलैक्स रहने में मदद करता है और मस्तिष्क को शांति प्रदान करता है। रिसर्च के अनुसार अधोमुख श्वानासन एंग्जाइटी की परेशानी को दूर करने के लिए बेहतर माना जाता है।

    5. सेतु बंधासन (Bridge Pose)

    डिस्थीमिया-Dysthymia
    डिस्थीमिया की परेशानी को दूर करने के लिए ‘सेतु बंधासन’

    नियमित रूप से सेतु बंधासन करने से एंग्जाइटी, थकान, कमर दर्द, सिरदर्द और नींद न आने की परेशानी दूर होती है, जो परसिस्टेंट डिप्रेसिव डिसऑर्डर के पेशेंट्स के लिए लाभकारी माना जाता है।

    6. भ्रामरी प्राणायाम (Humming Bee breathing exercise)

    भ्रामरी प्राणायाम के दौरान आंख और मुंह बंद रखें और इस दौरान मुंह से ओम बोलें। इस प्राणायाम से चिड़चिड़ाहट, तनाव, गुस्सा, चिंता या एंग्जाइटी की परेशानी धीरे-धीरे ठीक हो सकती है।

    7. नाड़ी शोधन प्राणायाम (Alternate nostril breathing technique)

    डिस्थीमिया-Dysthymia
    डिस्थीमिया की परेशानी को दूर करने के लिए ‘नाड़ी शोधन प्राणायाम’

    नाड़ी शोधन प्राणायाम से सभी प्रकार की नाड़ियों को  लाभ मिलता है। इस प्राणायाम से आंखों की रोशनी बढ़ती है, ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है। नींद न आने की परेशानी भी दूर होती है। इस प्राणायाम  को करने से तनाव कम होता है और मन-मस्तिष्क शांत रहने के साथ ही व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा का विकास करता है।

    इन ऊपर बताये गए योगासन एवं प्राणायाम से क्रोनिक डिप्रेशन की समस्या दूर होती है। अगर आप इन योगासन को अपने डेली रूटीन में शामिल करना चाहते हैं, तो सबसे पहले इन आसनों या प्राणायाम को करने का सही तरीका क्या है, यह एक्सपर्ट से जरूर समझें।

    अगर आप परसिस्टेंट डिप्रेसिव डिसऑर्डर (Dysthymia) से जुड़े किसी तरह के कोई सवाल का जवाब जानना चाहते हैं, तो विशेषज्ञों से समझना बेहतर होगा।

    डिप्रेशन से जुड़ी खास जानकारी के लिए क्लिक करें ये वीडियो लिंक:

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    Nidhi Sinha द्वारा लिखित · अपडेटेड 20/11/2020

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