आमतौर पर लोग अक्सर बोल देते हैं कि कितना सोते हो या जब भी देखो सोते ही रहते हो। दरअसल, यह कोई आलसी रवैया नहीं है बल्कि यह नींद से जुड़ा एक मानसिक विकार है, जिसे नार्कोलेप्सी कहते है। नार्कोलेप्सी की बीमारी होने की स्थिति में नींद पर नियंत्रण कर पाना बहुत ही मुश्किल होता है और बीमारी ग्रसित कुछ लोग तो कहीं भी कभी भी सोने लगते हैं। इस समस्या की वजह से रोगी को दिन में ज्यादा नींद आती है।
नार्कोलेप्सी डिसऑर्डर होने पर दिन में हर थोड़ी देर में नींद आने लगती है। इस तरह की परेशानी 15 से 25 साल के व्यक्तियों के बीच में देखने को मिलती है। एक्सपर्ट्स के अनुसार हाइपोक्रेटीन हार्मोन की वजह से ज्यादा नींद आने लगती है।
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नार्कोलेप्सी क्या है?
नार्कोलेप्सी सारी उम्र रहने वाला एक प्रकार का नर्वस डिसऑर्डर है। नार्कोलेप्सी एक ऐसी नींद है जो मनुष्य के जीवन को पूरी तरह से प्रभावित कर देती है। ऐसे व्यक्ति को कभी भी कहीं भी नींद आ जाती है। 2000 में से किसी एक व्यक्ति को नार्कोलेप्सी की समस्या होती है। वहीं, पूरे भारत में लगभग दस लाख लोग इस समस्या से ग्रसित हैं। नार्कोलेप्सी की समस्या 10 साल से 25 साल के उम्र के लोगों में ज्यादा पाई जाती है। नार्कोलेप्सी को एक्सेसिव अनकंट्रोल्ड डे टाइम स्लीपीनेस (excessive uncontrollable daytime sleepiness) कहते हैं।
नार्कोलेप्सी के कारण कुछ समय के लिए हम मांसपेशियों पर नियंत्रण नहीं रहता है। जिसे कैटाप्लेक्सी के नाम से जाना जाता है। नार्कोलेप्सी दो प्रकार का होता है :
- कैटाप्लेक्सी के साथ नार्कोलेप्सी
- कैटप्लेक्सी के बिना नार्कोलेप्सी
कैटाप्लेक्सी के बिना नार्कोलेप्सी बहुत ही सामान्य है और मुख्य रूप से ये बच्चों में होता है। नार्कोलेप्सी कभी-कभी जानलेवा भी साबित हो सकता है। क्योंकि नार्कोलेप्सी से ग्रसित व्यक्ति ड्राइविंग करते हुए, चलते हुए कभी भी सो सकता है।
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नार्कोलेप्सी डिसऑर्डर के क्या लक्षण हैं?
- नार्कोलेप्सी को एक्ससेसिव डे टाइम स्लीपनेस भी कहा जाता है। दिन में ज्यादा सोना और कभी भी कहीं पर सोने की वजह से रोगी थका हुआ महसूस करता है। जिसके चलते सुबह के वक्त नींद से जागने में बहुत ज्यादा परेशानी हो सकती है।
- व्यक्ति को अधिकतर समय नींद आती रहती है, जिसको नियंत्रित नहीं किया जा सकता है।
- दिन के समय या दिन में किसी काम को करते समय नींद आने लगती है।
- व्यक्ति के सिर, चेहरे और जबड़े में दर्द शुरू हो सकता है। जो पूरे शरीर को हानि पहुंचा सकता है और शरीर थकावट के कारण कमजोर पड़ने लगता है।
- नार्कोलेप्सी न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर से ग्रसित व्यक्ति को इंसोमेनिया की परेशानी भी हो सकती है क्योंकि इस मानसिक विकार से ग्रसित इंसान को रात के समय ठीक से नींद नहीं आती है। ऐसे में व्यक्ति सो तो जाता है लेकिन थोड़े-थोड़े समय पर अपने आप उठ जाता है। जिसका बुरा असर स्वास्थ्य पर पड़ता है।
- जब आप सो या जाग रहे हों, तो कभी-कभी लकवाग्रस्त महसूस कर सकते हैं। हालांकि, यह स्थिति कुछ सेकंड या मिनट तक ही रहती है।
- नार्कोलेप्सी पीड़ित व्यक्ति को नींद की शुरुआत में मतिभ्रम (Hallucinations) होने जैसी परेशानी हो सकती है। मतिभ्रम आमतौर पर सोने के समय हो सकता है।
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नार्कोलेप्सी होने का क्या कारण है?
नार्कोलेप्सी होने के कारणों की अभी तक कोई सटीक जानकारी नहीं है। लेकिन नार्कोलेप्सी और कैटाप्लेक्सी होने का कारण ब्रेन प्रोटीन ‘हाइपोक्रेटिन’ का कम होना माना जाता है। हाइपोक्रेटिन हमारे स्लीप साइकिल को नियंत्रित रखने के लिए जिम्मेदार होती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि हाइपोक्रेटिन लेवल जीन म्यूटेशन के कारण कम हो जाता है। कुछ मामलों में नार्कोलेप्सी अनुवांशिक होता है।
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नार्कोलेप्सी का पता कैसे लगाया जाता है?
नार्कोलेप्सी का पता लगाने के लिए डॉक्टर सबसे पहले आपकी मेडिकल और पारिवारिक हिस्ट्री की जांच करते हैं। फिर आपकी नींद पर कुछ अध्ययन करते हैं।
पॉलीसॉम्नोग्राम [Polysomnogram (PSG or sleep study)]
पॉलीसॉम्नोग्राम में पूरी रात के लिए आपके ब्रेन और मांसपेशियों के एक्टिविटी, सांसों और आंखों के मूवमेंट को रिकॉर्ड किया जाता है। जिसके रिकॉर्डिंग के आधार पर ही नींद के कारणों का पता लगाया जाता है।
मल्टीपल स्लीप लैटेंसी टेस्ट [Multiple sleep latency test (MSLT)]
मल्टीपल स्लीप लैटेंसी टेस्ट से पता लगाया जाता है कि आप कैसे कितनी जल्दी और कैसे सो रहे हैं। इसके बाद अगले दिन आपको पांच बार हर दो घंटे पर थोड़े-थोड़े वक्त के लिए सुलाया जाता है। अगर व्यक्ति पांच बार नींद लेने के बाद भी आठ मिनट से पहले सो जा रहा है। तो इसका मतलब होता है कि व्यक्ति एक्सेसिव अनकंट्रोल्ड स्लीपीनेस से ग्रसित है।
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नार्कोलेप्सी होने पर क्या उपाय करें?
नार्कोलेप्सी होने पर आपको डॉक्टर द्वारा कुछ दवाएं दी जाती हैं। जिससे आप अपने नींद पर कुछ हद तक तो कंट्रोल पा सकते हैं।
- स्टीम्यूलेंट्स लें, जैसे- अर्मोडाफिनिल, मॉडिफिनिल और मेथाइलफेनिडेट। ये दवाएं आपको जागने में मदद करेंगी।
- ट्राइसाइक्लिक एंटीडिप्रेसेंट्स, जो कैटाप्लेक्सी को कम करते हैं। इन दवाओं के साइड इफेक्ट्स भी हैं, जैसे- कब्ज, मुंह का सूखना और बार-बार पेशाब आना।
- सेरोटोनिन-नॉर-एपिनेफ्रीन रिअपटेक इंहिबिटर्स (SNRIs) जैसे- वेनलफैक्सीन लेने से आपको नींद कम आएगी। साथ ही आपका मूड भी ठीक रहेगा।
- सेलेक्टिव सेरोटोनिन रिअपटेक इंहिबिटर्स (SSRIs) जैसे- फ्लूक्सेटाइन स्लीप साइकिल को ठीक करता है और सोने के क्रम को नियमित करता है।
नार्कोलेप्सी के लक्षण होने पर डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए और उनके द्वारा दी गई सलाह अपनानी चाहिए। डॉक्टरों के अनुसार नार्कोलेप्सी की दवा के कई साइड इफेक्ट्स भी हो सकते हैं, इसलिए इसे डॉक्टर की सलाह के बिना नहीं लेना चाहिए।
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नार्कोलेप्सी में रखें इन बातों का ध्यान
- एक ही समय पर सोएं और जागें– नियमित रूप से एक ही समय पर सोने के लिए बिस्तर पर जाएं और सुबह एक ही समय पर जागने की कोशिश करें। ध्यान रहे कि बेडरूम में न ही रीडिंग करें और न ही टीवी देखें।
- पावर नैप- दिन के समय छोटी-छोटी झपकियां लेना पावर नैप कहलाता है। झपकी लेने से ताजगी महसूस होगी और अगले तीन-चार घंटों तक नींद भी नहीं आएगी।
- अगर आप काम करते हैं तो अपने बॉस या सुपरवाइजर से आप अपनी स्थिति का जिक्र करें। क्योंकि आप कभी भी सो सकते हैं, ऐसे में आपकी स्थिति को वे समझेंगे।
- दिन में शाकाहारी और हल्का खाना ही खाएं। अगर आप हैवी खाते हैं तो आपको नींद जरूर आएगी।
- निकोटीन और एल्कोहॉल का सेवन न करें। इससे नार्कोलेप्सी के लक्षण और भी ज्यादा खराब हो जाएंगे।
- नियमित रूप से एक्सरसाइज करते रहें। इससे आपको रात में सोने में मदद मिलेगी।
- अपने वजन को नियंत्रित कर के रखें। क्योंकि नार्कोलेप्सी की समस्या ज्यादातर ओवरवेट लोगों में होता है।
- अगर आप नार्कोलेप्सी से ग्रसित हैं तो ड्राइविंग नहीं करें। क्योंकि आपको गाड़ी चलाते समय कभी भी नींद आ सकती है और यह आपके और दूसरों के लिए जानलेवा साबित हो सकता है।
हैलो स्वास्थ्य किसी भी तरह की मेडिकल सलाह नहीं दे रहा है। ज्यादा जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से बात करें।
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