- बॉवेल हेबिट्स में बदलाव आना।
- दस्त होना।
- रेक्टम (Rectum) से ब्लीडिंग होना।
- एनस के पास दर्द (Pain) महूसस होना या दाना (Lump) आना।
- एनस से डिस्चार्ज होना या एनस के आसपास की त्वचा में खुजली होना।
ये लक्षण गुदा कैंसर की ओर इशारा करते हैं। कई बार इन ऊपर बताये लक्षणों को पाइल्स समझकर इग्नोर कर दिया जाता है और जब तकलीफ ज्यादा बढ़ जाती है, तो एनल कैंसर की जानकारी मिलती है। इसलिए अगर ऐसे लक्षण महसूस हों, तो इग्नोर करने की बजाये डॉक्टर से कंसल्ट करें।
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एनल कैंसर के कारण क्या हैं? (Cause of Anal cancer)
नैशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन (NCBI) में पब्लिश्ड रिपोर्ट के अनुसार एनल कैंसर का मुख्य कारण इंफेक्शस डिजीज ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (Human Papillomavirus [HPV]) हो सकता है। रिपोर्ट्स में ये भी कहा गया है कि महिलाओं में होने वाले सर्वाइकल कैंसर और एनल कैंसर के ज्यादातर केसेस ह्यूमन पैपिलोमा वायरस ही होते हैं। एनल कैंसर के अन्य कारण निम्नलिखित हैं। जैसे:
- 50 साल से ज्यादा उम्र होना।
- सेक्शुअल पार्टनर एक से ज्यादा होना।
- एनल इंटरकोर्स करना।
- स्मोकिंग करना।
- सर्वाइकल कैंसर (Cervical), वल्वर कैंसर (Vulvar cancer) या वजायनल कैंसर (Vaginal cancer) होना।
- ह्यूमन पैपिलोमा वायरस से इंफेक्टेड व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध बनाना।
- इम्यूनोसप्रेसेंट ड्रग्स (Immunosuppressant Drugs) जैसे टैक्रोलिमस (Tacrolimus) और साइक्लोस्पोरिन (Cyclosporine) का सेवन करना।
ये कारण भी एनल कैंसर को इन्वाइट करने के लिए काफी हैं।
नोट: एनल कैंसर के कारणों में शामिल इम्यूनोसप्रेसेंट ड्रग्स (Immunosuppressant Drugs) जैसे टैक्रोलिमस (Tacrolimus) और साइक्लोस्पोरिन (Cyclosporine) का नाम सिर्फ आपकी जानकारी के लिए दी गईं हैं। अगर डॉक्टर ने आपको किसी भी कारण से इन ड्रग्स के सेवन की सलाह दी है और प्रिस्क्राइब किया है, तो जितनी डोज लेने के लिए बताई गई है, उतनी ही दवाओं का सेवन करें। कई बार प्रिस्क्रिप्शन पास में होने की वजह से दवा की कोर्स खत्म होने के बावजूद अगर परेशानी फिर से हुई, तो फिर से दवा खरीदकर दवा का सेवन करने लगते हैं। अगर आपभी ऐसा करते हैं, तो ऐसा कभी भी ना करें और डॉक्टर से सलाह लेने के बाद ही इन दवाओं का सेवन करना फिर से शुरू करें।
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एनल कैंसर का निदान कैसे किया जाता है? (Diagnosis of Anal cancer)
एनल कैंसर के निदान के लिए निम्नलिखित टेस्ट की सलाह दी जाती है। जैसे:
- एंडोस्कोपी (Endoscopy)- छोटे वीडियो कैमरे की मदद से एंडोस्कोपी प्रक्रिया की जाती है। इससे एनल की जांच की जाती है।
- एनोस्कोपी (Anoscopy)- इस टेस्ट के दौरान एक ट्यूब का इस्तेमाल किया जाता है। यह ट्यूब खोखली होती है। 3 से 4 इंच लंबे इस ट्यूब से एनल की जांच की जाती है।
- प्रोक्टोस्कोपी (Proctoscopy)- यह टेस्ट भी एनोस्कोपी की तरह ही है। सिर्फ इस दौरान 10 इंच लंबी होलो ट्यूब का इस्तेमाल किया जाता है। इस टेस्ट की मदद से रेक्टम और सिग्मोइड कोलन के निचले हिस्से को भी देखना और बीमारी की स्थिति को समझने में आसानी होती है।
- अल्ट्रासाउंड (Ultrasound)- अल्ट्रासाउंड की मदद से कैंसरस सेल्स को समझने और कैंसर के फैलने की स्थिति को समझा जाता है।
- बायोप्सी (Biopsy)- कैंसर के निदान के लिए बायोप्सी करना बेहद जरूरी होता है। इस टेस्ट के दौरान इंफेक्टेड एरिया के टिशू की जांच की जाती है।