किसी ने सच ही तो कहा है “कैंसर को हराना है, हारना नहीं … सभी को समझाना है घबराना नहीं! दरअसल कैंसर का नाम सुनते ही ज्यादातर लोगों का मानना है कि इससे बचना संभव है, जो बिलकुल भी सच नहीं है। कैंसर हो या कोई और बीमारी अगर शुरुआती स्टेज में इसकी जानकारी मिल जाए, तो एक नई जिंदगी की शुरुआत की जा सकती है। इसलिए हमारा आज का टॉपिक है एनल कैंसर (Anal cancer)। नैशनल कैंसर इंस्टिट्यूट ऑफ यूएसए (National Cancer Institute of USA) में पब्लिश्ड रिपोर्ट के अनुसार बढ़ती उम्र में एनल कैंसर (Anal cancer) का खतरा बढ़ जाता है। हालांकि ऐसा नहीं है कि एनल कैंसर का इलाज नहीं किया जा सकता, लेकिन इस बीमारी की जानकारी बीमारी को हारने में आपका सबसे महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। इसलिए इस आर्टिकल में जानेंगे-
- एनल कैंसर क्या है?
- एनल कैंसर के प्रकार कौन-कौन से हैं?
- एनल कैंसर के लक्षण क्या हैं?
- एनल कैंसर के कारण क्या हैं?
- एनल कैंसर का निदान कैसे किया जाता है?
- एनल कैंसर का इलाज कैसे किया जाता है?
- एनल कैंसर के स्टेज कौन-कौन से हैं?
- एनल कैंसर से बचाव कैसे संभव है?
चलिए अब इन सवालों के जवाब जानते हैं।
एनल कैंसर (Anal cancer) क्या है?
एनल कैंसर को हिंदी में गुदा कैंसर कहते हैं। एनल डायजेस्टिव सिस्टम का सबसे अंतिम हिस्सा है, जहां से स्टूल पास होता है। जब एनल के अंदुरुनी हिस्से में मौजूद कोशिकाएं अनियंत्रित होकर बढ़ने लगती हैं और असामान्य कोशिकाओं में बदलने लगती हैं, तो इसे एनल कैंसर कहते हैं। एनल कैंसर रेयर कैंसर की लिस्ट में शामिल है, लेकिन यह शरीर के एक अंग यानी एनस से दूसरे अंगों की कोशिकाओं में भी फैल सकता है। एनल कैंसर अलग-अलग तरह के होते हैं, जिसके बारे में आगे जानेंगे।
और पढ़ें : कैंसर को दावत दे सकता है ऐसोफैजाइटिस
एनल कैंसर के प्रकार कौन-कौन से हैं? (Types of Anal cancer)
एनल कैंसर के प्रकार निम्नलिखित हैं। जैसे:
- ट्यूमर (tumors)- ट्यूमर शुरुआती स्टेज में कैंसरस नहीं होते हैं। एनस में कई बार पॉलीप्स, स्किन टैग्स, ग्रैनुलर सेल ट्यूमर और जेनाइटल वार्ट्स (Condylomas) की समस्या हो सकती है।
- कैंसर के पहले की अवस्था (Precancerous conditions)- बॉडी में मौजूद सेल्स जब किसी भी कारण से असामान्य तरीके से बढ़ने लगें, तो यह कैंसर की ओर इशारा करते हैं। ऐसा दरअसल एनल इंट्राएपिथेलियल नियोप्लेसिया (Anal intraepithelial neoplasia [AIN]) एवं एनल स्क्वैमस इंट्राएपिथेलियल नियोप्लेसिया (Anal squamous intraepithelial neoplasia [ASIL]) के कंडिशन के दौरान होता है।
- स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा (Squamous cell carcinoma)- यह एनल कैंसर का ही प्रकार है। ऐसा एनल टिशू के एब्नॉर्मल होने की वजह से होता है।
- बॉवेंस डिजीज (Bowen’s disease)- इस कंडिशन को भी स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा इन सीटू (Squamous Cell Carcinoma in Situ) के नाम से जाना जाता है। यह भी एब्नॉर्मल सेल्स की वजह से होने वाली बीमारी है।
- बैसल सेल कर्सिनोमा (Basal cell carcinoma)- यह स्किन कैंसर (Skin cancer) का एक प्रकार है और यह उन शारीरिक अंगों को ज्यादा अपना शिकार बनाता है, जहां सनलाइट पड़ती हो। हालांकि एनल कैंसर में बैसल सेल कर्सिनोमा काफी रेयर माना जाता है।
- एडेनोकार्सिनोमा (Adenocarcinoma)- यह भी रेयर एनल कैंसर की लिस्ट में शामिल है और यह एनस के आसपास के ग्लैंड्स (Glands) को अपना शिकार बनाता है।
ये एनल कैंसर (गुदा कैंसर) के अलग-अलग प्रकार हैं। एनल कैंसर के दौरान शरीर में होने वाले कुछ बदलाव को अगर इग्नोर ना किया जाए, तो कैंसर से लड़ना आसान हो सकता है।
और पढ़ें : इचिंग यानी खुजली को न करें नजरअंदाज, क्योंकि यह हो सकती हैं कैंसर की निशानी!
एनल कैंसर के लक्षण क्या हैं? (Symptoms of Anal cancer)
एनल कैंसर के लक्षण बवासीर (Hemorrhoids), इर्रिटेबल बॉवेल सिंड्रोम (IBS) और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल डिजीज (Gastrointestinal diseases) के लक्षणों के सामान हैं। जैसे:
- बॉवेल हेबिट्स में बदलाव आना।
- दस्त होना।
- रेक्टम (Rectum) से ब्लीडिंग होना।
- एनस के पास दर्द (Pain) महूसस होना या दाना (Lump) आना।
- एनस से डिस्चार्ज होना या एनस के आसपास की त्वचा में खुजली होना।
ये लक्षण गुदा कैंसर की ओर इशारा करते हैं। कई बार इन ऊपर बताये लक्षणों को पाइल्स समझकर इग्नोर कर दिया जाता है और जब तकलीफ ज्यादा बढ़ जाती है, तो एनल कैंसर की जानकारी मिलती है। इसलिए अगर ऐसे लक्षण महसूस हों, तो इग्नोर करने की बजाये डॉक्टर से कंसल्ट करें।
और पढ़ें : कुछ ऐसे किया जाता है रेक्टल बायोप्सी से कई समस्याओं का निदान
एनल कैंसर के कारण क्या हैं? (Cause of Anal cancer)
नैशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन (NCBI) में पब्लिश्ड रिपोर्ट के अनुसार एनल कैंसर का मुख्य कारण इंफेक्शस डिजीज ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (Human Papillomavirus [HPV]) हो सकता है। रिपोर्ट्स में ये भी कहा गया है कि महिलाओं में होने वाले सर्वाइकल कैंसर और एनल कैंसर के ज्यादातर केसेस ह्यूमन पैपिलोमा वायरस ही होते हैं। एनल कैंसर के अन्य कारण निम्नलिखित हैं। जैसे:
- 50 साल से ज्यादा उम्र होना।
- सेक्शुअल पार्टनर एक से ज्यादा होना।
- एनल इंटरकोर्स करना।
- स्मोकिंग करना।
- सर्वाइकल कैंसर (Cervical), वल्वर कैंसर (Vulvar cancer) या वजायनल कैंसर (Vaginal cancer) होना।
- ह्यूमन पैपिलोमा वायरस से इंफेक्टेड व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध बनाना।
- इम्यूनोसप्रेसेंट ड्रग्स (Immunosuppressant Drugs) जैसे टैक्रोलिमस (Tacrolimus) और साइक्लोस्पोरिन (Cyclosporine) का सेवन करना।
ये कारण भी एनल कैंसर को इन्वाइट करने के लिए काफी हैं।
नोट: एनल कैंसर के कारणों में शामिल इम्यूनोसप्रेसेंट ड्रग्स (Immunosuppressant Drugs) जैसे टैक्रोलिमस (Tacrolimus) और साइक्लोस्पोरिन (Cyclosporine) का नाम सिर्फ आपकी जानकारी के लिए दी गईं हैं। अगर डॉक्टर ने आपको किसी भी कारण से इन ड्रग्स के सेवन की सलाह दी है और प्रिस्क्राइब किया है, तो जितनी डोज लेने के लिए बताई गई है, उतनी ही दवाओं का सेवन करें। कई बार प्रिस्क्रिप्शन पास में होने की वजह से दवा की कोर्स खत्म होने के बावजूद अगर परेशानी फिर से हुई, तो फिर से दवा खरीदकर दवा का सेवन करने लगते हैं। अगर आपभी ऐसा करते हैं, तो ऐसा कभी भी ना करें और डॉक्टर से सलाह लेने के बाद ही इन दवाओं का सेवन करना फिर से शुरू करें।
और पढ़ें : हॉजकिन्स डिजीज: 20-40 उम्र के लोगों में होता है ये ब्लड कैंसर, बेहद कॉमन हैं लक्षण
एनल कैंसर का निदान कैसे किया जाता है? (Diagnosis of Anal cancer)
एनल कैंसर के निदान के लिए निम्नलिखित टेस्ट की सलाह दी जाती है। जैसे:
- एंडोस्कोपी (Endoscopy)- छोटे वीडियो कैमरे की मदद से एंडोस्कोपी प्रक्रिया की जाती है। इससे एनल की जांच की जाती है।
- एनोस्कोपी (Anoscopy)- इस टेस्ट के दौरान एक ट्यूब का इस्तेमाल किया जाता है। यह ट्यूब खोखली होती है। 3 से 4 इंच लंबे इस ट्यूब से एनल की जांच की जाती है।
- प्रोक्टोस्कोपी (Proctoscopy)- यह टेस्ट भी एनोस्कोपी की तरह ही है। सिर्फ इस दौरान 10 इंच लंबी होलो ट्यूब का इस्तेमाल किया जाता है। इस टेस्ट की मदद से रेक्टम और सिग्मोइड कोलन के निचले हिस्से को भी देखना और बीमारी की स्थिति को समझने में आसानी होती है।
- अल्ट्रासाउंड (Ultrasound)- अल्ट्रासाउंड की मदद से कैंसरस सेल्स को समझने और कैंसर के फैलने की स्थिति को समझा जाता है।
- बायोप्सी (Biopsy)- कैंसर के निदान के लिए बायोप्सी करना बेहद जरूरी होता है। इस टेस्ट के दौरान इंफेक्टेड एरिया के टिशू की जांच की जाती है।
इन ऊपर बताये गए टेस्ट गुदा कैंसर (Anal cancer) के दौरान की जाती है। हालांकि पेशेंट के हेल्थ कंडिशन को देखते हुए अन्य टेस्ट करवाने की भी सलाह दी जाती है।
और पढ़ें : स्मॉल सेल लंग कैंसर क्या है? क्या हैं इसके कारण, लक्षण और उपचार?
एनल कैंसर का इलाज कैसे किया जाता है? (Treatment of Anal cancer)
एनल कैंसर (गुदा कैंसर) का इलाज निम्नलिखित तरह से किया जाता है। जैसे:
सर्जरी (Surgery)
एनल कैंसर का इलाज सर्जरी की मदद ली जाती है। सर्जरी की मदद से कैंसरस ट्यूमर को रिमूव कर दिया जाता है। इस दौरान विशेष रूप से एब्डोमिनोपेरियल रिसेक्शन (Abdominoperineal (AP) resection) की सहायता ली जाती है।
रेडिएशन थेरिपी (Radiation therapy)
रेडिएशन थेरिपी को मेडिकल टर्म में रेडियोथेरिपी भी कहा जाता है और एनल कैंसर के इलाज के लिए अलग-अलग तरह की रेडिएशन थेरिपी की सहायता ली जाती है। लिम्फ नॉड्स (Lymph nodes) की रिमूव करने के लिए रेडिएशन थेरिपी की मदद ली जा सकती है। रेडिएशन थेरिपी के एक से ज्यादा सेशन हो सकते हैं।
कीमोथेरिपी (Chemotherapy)
एनल कैंसर के इलाज के लिए कीमोथेरिपी की मदद ली जा सकती है। कभी-कभी कैंसर ट्रीटमेंट के दौरान कीमोथेरिपी के साथ-साथ रेडिएशन थेरिपी की भी मदद ली जा सकती है।
सर्जरी, कीमोथेरिपी या रेडिएशन थेरिपी की मदद पेशेंट की हेल्थ कंडिशन एवं एनल कैंसर के स्टेज को ध्यान में रखकर किया जाता है।
एनल कैंसर के स्टेज कौन-कौन से हैं? (Stages of Anal cancer)
कैंसर के स्टेज मुख्य रूप से 4 भागों में बटे होते हैं। जैसे:
- स्टेज 1 (Stage 1)- एनल कैंसर यानी जब गुदा में कैंसर की स्थिति शुरू होती, तो यह 2 cm या इससे छोटा होता है।
- स्टेज 2 (Stage 2)- कैंसरस ट्यूमर 2 cm से बड़ा हो जाता है, लेकिन इस स्टेज के दौरान ट्यूमर एनल कैनाल से बाहर नहीं निकल पाता है।
- स्टेज 3(Stage 3)- इस स्टेज में एनल कैंसर के कैंसरस टिशू एनस (Anus) और लिम्फ नॉड्स (Lymph nodes) तक फैल जाता है। यही नहीं इस स्टेज में कैंसरस सेल ब्लैडर और यूरिनरी ट्रैक्ट में भी अपनी जगह बनाने में सफल हो सकता है।
- स्टेज 4 (Stage 4)- एनल कैंसर का यह लास्ट स्टेज होता है और इस स्टेज में कैंसर सेल्स शरीर के दूसरे हिस्सों को भी अपना शिकार बना लेते हैं।
नैशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन (NCBI) में पब्लिश्ड रिपोर्ट के अनुसार एनल कैंसर के इलाज के बाद भी समय-समय पर डॉक्टर से कंसल्टेशन करते रहना चाहिए, क्योंकि इससे हेल्थ कंडिशन और एनल कैंसर (Anal cancer) के कैंसरस टिशू फिर से अपनी जगह ना बना लें।
एनल कैंसर से बचाव कैसे संभव है? (Prevention from Anal cancer)
एनल कैंसर (गुदा कैंसर) से बचाव के लिए नीचे दिए इन 4 बातों को हमेशा ध्यान रखें। जैसे:
- हमेशा सेफ सेक्स (Safe sex) का विकल्प चुने।
- समय-समय पर सर्वाइकल स्मीयर टेस्ट (Cervical Smear Tests) करवाएं।
- ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (HPV) के शिकार ना हों, इसलिए HPV वैक्सिनेशन करवाएं।
- स्मोकिंग (Smoking) ना करें।
कैंसर (Cancer) से जुड़ी जानकरी छिपी है नीचे दिए इस क्विज में। क्विज खेलिए और जानिए अपना स्कोर।