टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज (Type 1 and Type 2 Diabetes) के नाम भले ही एक जैसे हैं। लेकिन, इन दोनों को अलग-अलग तरह की बीमारिया माना जाता है। टाइप 1 डायबिटीज एक ऑटोइम्यून डिजीज है। इसे कई बार जुवेनाइल डायबिटीज भी कहा जाता है। क्योकि, इसका निदान अक्सर बच्चों और टीनएजर्स में होता है। इस तरह की डायबिटीज में हमारा इम्यून सिस्टम (Immune System) शरीर के हेल्दी सेल्स पर गलती से अटैक कर देता है और अग्नाश्य के इंसुलिन बनाने वाले सेल्स को नष्ट कर देता है। सही मात्रा में इंसुलिन के बिना सेल्स जितनी ऊर्जा चाहिए, उसे प्राप्त नहीं कर पाते हैं जिससे ब्लड शुगर लेवल (Blood Glucose level) बढ़ता है और लगातार प्यास लगना, मूत्र त्याग आदि लक्षण नजर आ सकते हैं।
टाइप 2 डायबिटीज तब होती है जब हमारा शरीर इंसुलिन के लिए प्रतिरोधी हो जाता है या पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं कर पाता है। हार्मोन इंसुलिन, रोगी के ब्लड ग्लूकोज को आपकी कोशिकाओं में ले जाता है। रोगी की कोशिकाएं ग्लूकोज को ऊर्जा में परिवर्तित करती हैं। इंसुलिन के बिना सेल्स ग्लूकोज का प्रयोग नहीं कर पाते और डायबिटीज के लक्षण पैदा हो सकते हैं जिनमे थकावट, प्यास बढ़ना या थकावट आदि शामिल है। अब जानते हैं टाइप 2 डायबिटीज ऑटोइम्यून डिसऑर्डर (Diabetes Type 2 Autoimmune Disorder) के बारे में।
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क्या डायबिटीज टाइप 2 ऑटोइम्यून डिसऑर्डर है? (Diabetes Type 2 Autoimmune Disorder)
लंबे समय से डॉक्टर और शोधकर्ता यह मानते आए हैं कि टाइप 2 डायबिटीज एक मेटाबोलिक डिसऑर्डर है। यह डिसऑर्डर तब होता है जब हमारे शरीर की केमिकल प्रोसेस सही से काम नहीं करती हैं। लेकिन, हाल ही में हुई रिसर्च के अनुसार टाइप 2 डायबिटीज असल में एक ऑटोइम्यून डिसऑर्डर हो सकता है। हालांकि, अभी इसके पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो पाया है। लेकिन, अगर ऐसा हुआ तो इस स्थिति के उपचार के लिए नए ट्रीटमेंट और बचाव के तरीकों को विकसित किया जा सकता है। हालांकि अभी तक डॉक्टर टाइप 2 डायबिटीज का लाइफस्टाइल में बदलाव, दवाइयों और इंसुलिन की मदद से ही उपचार कर रहे हैं। जानिए टाइप 2 डायबिटीज ऑटोइम्यून डिसऑर्डर (Diabetes Type 2 Autoimmune Disorder) के बारे में क्या कहते हैं शोधकर्ता?
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टाइप 2 डायबिटीज ऑटोइम्यून डिसऑर्डर के बारे में शोधकर्ताओं का क्या कहना है? (Research about Diabetes Type 2 as Autoimmune Disorder)
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन और यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो (Stanford University School of Medicine and the University of Toronto) में कुछ समय पहले हुई एक रिसर्च के अनुसार रिसर्चर ने यह माना है कि टाइप 1 डायबिटीज की तरह टाइप 2 डायबिटीज (Type 2 Diabetes) भी एक ऑटोइम्यून डिजीज है। शोधकर्ताओं ने कुछ ऐसे सबूत मिले हैं कि इंसुलिन रेजिस्टेंस शरीर के सेल्स पर हमला करने वाले इम्यून सेल्स का परिणामस्वरूप हो सकता है। इन कोशिकाओं को एंटीबॉडी का उत्पादन करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। जो हमलावर बैक्टीरिया, कीटाणुओं और वायरस से लड़ते हैं। टाइप २ डायबिटीज से पीड़ित लोगों में यह सेल्स गलती से हेल्दी सेल्स पर अटैक कर देते हैं। अगर टाइप 2 डायबिटीज एक ऑटोइम्यून डिजीज है, तो इस डिस्कवरी से ओबेसिटी इंड्यूस्ड टाइप 2 डायबिटीज (Obesity-induced Type 2 Diabetes) के इलाज का तरीका भी प्रभावित होगा। अभी डॉक्टर टाइप 2 डायबिटीज को दो तरीकों से ट्रीट करते हैं। पहले वो हेल्दी लाइफस्टाइल पर फोकस करते हैं। हेल्दी डायट और लगातार व्यायाम इस ट्रीटमेंट का मुख्य हिस्सा है।
इसके बाद डॉक्टर ओरल मेडिकेशन्स की सलाह दे सकते हैं, जो शरीर की इंसुलिन को प्रयोग करने की क्षमता को बढ़ाती हैं। अगर दवाइयां काम नहीं करती है तो आपको इंसुलिन की जरूरत हो सकती है। इंसुलिन के इंजेक्शन सेल्स को ग्लूकोज को अब्सॉर्ब करने और एनर्जी जनरेट करने में मदद कर सकते हैं। कुछ डायबिटीज से पीड़ित लोग दवाईयों और जीवनशैली में बदलाव से इंसुलिन इंजेक्शन में परिवर्तन कर सकते हैं। अगर आपको टाइप 2 डायबिटीज ऑटोइम्यून डिजीज की समस्या है, तो आप ट्रीटमेंट स्ट्रेटेजी भी बदल सकते हैं। व्यायाम और इंसुलिन के बजाय, डॉक्टर इम्यूनोसप्रेसेन्ट दवाओं पर विचार कर सकते हैं। शोधकर्ता यह भी मानते हैं की एक दिन वो टाइप 2 डायबिटीज के लिए वैक्सीन को विकसित कर लेंगे, जो हानिकारक इम्यून रीसपॉन्स के बजाय प्रोटेक्टिव इम्यून रीसपॉन्स को ट्रिगर करेंगे।