टाइप 2 डायबिटीज तब होती है जब हमारा शरीर इंसुलिन के लिए प्रतिरोधी हो जाता है या पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं कर पाता है। हार्मोन इंसुलिन, रोगी के ब्लड ग्लूकोज को आपकी कोशिकाओं में ले जाता है। रोगी की कोशिकाएं ग्लूकोज को ऊर्जा में परिवर्तित करती हैं। इंसुलिन के बिना सेल्स ग्लूकोज का प्रयोग नहीं कर पाते और डायबिटीज के लक्षण पैदा हो सकते हैं जिनमे थकावट, प्यास बढ़ना या थकावट आदि शामिल है। अब जानते हैं टाइप 2 डायबिटीज ऑटोइम्यून डिसऑर्डर (Diabetes Type 2 Autoimmune Disorder) के बारे में।
और पढ़ें : टाइप 2 डायबिटीज के मरीज कभी इग्नोर न करें इन स्किन कंडीशंस को
क्या डायबिटीज टाइप 2 ऑटोइम्यून डिसऑर्डर है? (Diabetes Type 2 Autoimmune Disorder)
लंबे समय से डॉक्टर और शोधकर्ता यह मानते आए हैं कि टाइप 2 डायबिटीज एक मेटाबोलिक डिसऑर्डर है। यह डिसऑर्डर तब होता है जब हमारे शरीर की केमिकल प्रोसेस सही से काम नहीं करती हैं। लेकिन, हाल ही में हुई रिसर्च के अनुसार टाइप 2 डायबिटीज असल में एक ऑटोइम्यून डिसऑर्डर हो सकता है। हालांकि, अभी इसके पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो पाया है। लेकिन, अगर ऐसा हुआ तो इस स्थिति के उपचार के लिए नए ट्रीटमेंट और बचाव के तरीकों को विकसित किया जा सकता है। हालांकि अभी तक डॉक्टर टाइप 2 डायबिटीज का लाइफस्टाइल में बदलाव, दवाइयों और इंसुलिन की मदद से ही उपचार कर रहे हैं। जानिए टाइप 2 डायबिटीज ऑटोइम्यून डिसऑर्डर (Diabetes Type 2 Autoimmune Disorder) के बारे में क्या कहते हैं शोधकर्ता?

और पढ़ें : बच्चों में यह लक्षण हो सकते हैं टाइप 2 डायबिटीज का संकेत, नजरअंदाज करना पड़ सकता है भारी!
टाइप 2 डायबिटीज ऑटोइम्यून डिसऑर्डर के बारे में शोधकर्ताओं का क्या कहना है? (Research about Diabetes Type 2 as Autoimmune Disorder)
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन और यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो (Stanford University School of Medicine and the University of Toronto) में कुछ समय पहले हुई एक रिसर्च के अनुसार रिसर्चर ने यह माना है कि टाइप 1 डायबिटीज की तरह टाइप 2 डायबिटीज (Type 2 Diabetes) भी एक ऑटोइम्यून डिजीज है। शोधकर्ताओं ने कुछ ऐसे सबूत मिले हैं कि इंसुलिन रेजिस्टेंस शरीर के सेल्स पर हमला करने वाले इम्यून सेल्स का परिणामस्वरूप हो सकता है। इन कोशिकाओं को एंटीबॉडी का उत्पादन करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। जो हमलावर बैक्टीरिया, कीटाणुओं और वायरस से लड़ते हैं। टाइप २ डायबिटीज से पीड़ित लोगों में यह सेल्स गलती से हेल्दी सेल्स पर अटैक कर देते हैं। अगर टाइप 2 डायबिटीज एक ऑटोइम्यून डिजीज है, तो इस डिस्कवरी से ओबेसिटी इंड्यूस्ड टाइप 2 डायबिटीज (Obesity-induced Type 2 Diabetes) के इलाज का तरीका भी प्रभावित होगा। अभी डॉक्टर टाइप 2 डायबिटीज को दो तरीकों से ट्रीट करते हैं। पहले वो हेल्दी लाइफस्टाइल पर फोकस करते हैं। हेल्दी डायट और लगातार व्यायाम इस ट्रीटमेंट का मुख्य हिस्सा है।
इसके बाद डॉक्टर ओरल मेडिकेशन्स की सलाह दे सकते हैं, जो शरीर की इंसुलिन को प्रयोग करने की क्षमता को बढ़ाती हैं। अगर दवाइयां काम नहीं करती है तो आपको इंसुलिन की जरूरत हो सकती है। इंसुलिन के इंजेक्शन सेल्स को ग्लूकोज को अब्सॉर्ब करने और एनर्जी जनरेट करने में मदद कर सकते हैं। कुछ डायबिटीज से पीड़ित लोग दवाईयों और जीवनशैली में बदलाव से इंसुलिन इंजेक्शन में परिवर्तन कर सकते हैं। अगर आपको टाइप 2 डायबिटीज ऑटोइम्यून डिजीज की समस्या है, तो आप ट्रीटमेंट स्ट्रेटेजी भी बदल सकते हैं। व्यायाम और इंसुलिन के बजाय, डॉक्टर इम्यूनोसप्रेसेन्ट दवाओं पर विचार कर सकते हैं। शोधकर्ता यह भी मानते हैं की एक दिन वो टाइप 2 डायबिटीज के लिए वैक्सीन को विकसित कर लेंगे, जो हानिकारक इम्यून रीसपॉन्स के बजाय प्रोटेक्टिव इम्यून रीसपॉन्स को ट्रिगर करेंगे।
और पढ़ें : अनियंत्रित डायबिटीज से जुड़ी स्थिति “डायबिटिक कोमा” का इस तरह से संभव है सही उपचार!
टाइप 2 डायबिटीज ऑटोइम्यून डिसऑर्डर: इम्यूनोसप्रेसेंट दवाइयां क्या हैं? (Immunosuppressant Medications)
एक इम्यूनोसप्रेसेंट दवाई है रिटक्सिमैब (Rituximab)। यह एंटी-CD20 एंटीबॉडीज (Anti-CD20 Antibodies) नामक दवाईयों के समूह से संबंधित हैं। यह दवाईयां उन इम्युनिटी सेल्स को टारगेट और नष्ट करने के लिए बनाई जाती हैं जो हेल्दी सेल्स पर अटैक करती हैं। कुछ रिसर्च यह भी बताती हैं कि जो दवाईयां इम्यून सिस्टम पर प्रभाव डालती हैं, वो टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित लोगों के लिए फायदेमंद हो सकती है। इम्यूनोसप्रेसेंट दवाईयां जैसे एंटी-CD20 एंटीबॉडीज (anti-CD20 antibodies) इम्यून सिस्टम सेल्स जैसे बी सेल्स को हेल्दी टिश्यू पर अटैक करने से बचाती हैं ।
नेशनल इंस्टीटूट्स ऑफ हेल्थ (National Institutes of Health) के अनुसार नॉन-इंसुलिन-डिपेंडेंट डायबिटीज मेलिटस (Non-Insulin-Dependent Diabetes Mellitus) में सर्कुलेटिंग ऑटोएंटीबाडीज (Circulating Autoantibodies) की उपस्थिति चालीस साल पहले पहचानी जा चुकी थी। अब इन ऑटोएंटीबाडीज की उपस्थिति को एक स्थिति जिसे लटेंट ऑटोइम्यून डायबिटीज ऑफ एडल्ट्स (Latent Autoimmune Diabetes of the Adults) के रूप में जाना जाता है।
और पढ़ें: प्रेग्नेंसी के दौरान कितना होना चाहिए नॉर्मल ब्लड शुगर लेवल?
यह तो थी डायबिटीज और टाइप 2 डायबिटीज ऑटोइम्यून डिसऑर्डर (Diabetes Type 2 Autoimmune Disorder) के बारे में पूरी जानकारी। रिसर्च यह बताती हैं कि टाइप 2 डायबिटीज ऑटोइम्यून डिसऑर्डर (Diabetes Type 2 Autoimmune Disorder) है, जो मेडिसिन और कंडीशन को समझने में लाभदायक सिद्ध हो सकती है। टाइप 2 डायबिटीज का कारण क्या हो सकता है, इसकी बेहतर समझ सही और सबसे प्रभावी उपचार प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण है। भविष्य में होने वाली रिसर्च यह बात साबित कर सकती है कि क्या यह सच में ऑटोइम्यून डिजीज है या नहीं? इस शोध से इस बारे में व्यापक रूप से पता चल सकता है कि डायबिटीज क्यों और कैसे विकसित होती है और इसे रोकने के लिए क्या किया जा सकता है। यानी भविष्य में यह रिसर्च बेहद लाभदायक सिद्ध होने वाली है।
क्या आप जानते हैं कि डायबिटीज को रिवर्स कैसे कर सकते हैं? तो खेलिए यह क्विज!
यही नहीं, डायबिटीज का कोई भी लक्षण नजर आने पर तुरंत डॉक्टर की सलाह जरूरी है क्योंकि इससे जुडी जटिलताएं बेहद भयानक सिद्ध हो सकती है। यह समस्या जानलेवा भी हो सकती है। हालांकि, टाइप 2 डायबिटीज को ऑटोइम्यून डिसऑर्डर मानने से पहले अभी और अधिक रिसर्च की जानी जरूरी है। अगर आपके मन में इसके बारे में कोई भी सवाल है तो आप अपने डॉक्टर से इस बारे में बात कर सकते हैं। अभी के लिए आप डायबिटीज और अन्य समस्याओं से बचने के लिए आप नियमित रूप से अपनी ब्लड शुगर लेवल की जांच करें, डॉक्टर की सलाह के अनुसार दवाइयां लें, सही आहार का सेवन करें, व्यायाम करें और तनाव से दूर रहें।