प्रेग्नेंसी के दौरान गर्भवती महिला को कई तरह की सावधानियां बरतनी पड़ती हैं। ताकि न सिर्फ होने वाली मां बल्कि होने वाले नवजात की सेहत पर भी कोई विपरीत प्रभाव न पड़े। प्रेग्नेंट महिला को अपने खान-पान से लेकर रहन-सहन में भी काफी बदलाव करने की जरूरत पड़ती है। डॉक्टर इस दौरान उन्हें किसी भी तरह की भारी चीज उठाने से और ऐसे काम करने से मना करते हैं, जिससे उनको या बच्चे को किसी प्रकार खतरा हो। इसके अलावा प्रेग्नेंसी में स्ट्रेस लेने को मना किया जाता है क्योंकि इस दौरान लिया गया तनाव और चिंता गर्भपात के खतरा को बढ़ा सकता है। देखा जाता है कि पहली बार गर्भवती हुई को महिला प्रेग्नेंसी का डर रहता है।
2017 में लंदन में हुए एक रिसर्च में यह बताया गया कि प्रेग्नेंसी में तनाव से महिलाओं में गर्भपात का खतरा बढ़ने की संभावना कई फीसदी रहती है। चीन में किए गए एक ऐसे ही अन्य शोध में भी दावा किया गया कि प्रेग्नेंसी के दौरान तनाव में रहने वाली महिलाओं में प्रेग्नेंसी के होने वाली समस्याएं कई गुना बढ़ सकती हैं। इसमें दावा किया गया कि गर्भधारण के दौरान चिंता करने से गर्भपात होने का खतरा 42 प्रतिशत तक बढ़ जाता है।
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गर्भावस्था के दौरान चिंता के क्या लक्षण हैं?
प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाली चिंताओं में सामान्य लक्षण इस प्रकार हैं:
- बार-बार घबराहट होना
- बेचैनी या अकेलापन महसूस करना
- अपने स्वास्थ्य या बच्चे के बारे में ज्यादा सोचना
- चिड़चिड़ापन
- दुर्घटनाओं का डर महसूस करना
- किसी चीज पर फोकस नहीं हो पाना
- सोने में कठिनाई
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आप डिलिवरी से पहले चिंता के साथ-साथ इन लक्षणों को भी महसूस कर सकते हैं:
- दिल की धड़कन का बढ़ जाना
- तेजी से सांस लेना
- चक्कर आना
- बेहोश होना
- सांस में परेशानी
- बहुत ज्यादा पसीना आना
- मांसपेशियों में तनाव, दर्द
- शरीर का कांपना
- अंगों, उंगलियों, पैर की उंगलियों या होंठों में एक झुनझुनाहट होना
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प्रेग्नेंसी में चिंता किन कारणों से होता है?
ज्यादातर महिलाएं अपनी गर्भावस्था के दौरान कई तरह की मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी चिंता करती हैं। गर्भावस्था यानी प्रेग्नेंसी के दौरान किसी भी महिला को प्रेग्नेंसी का डर सताता है लेकिन, प्रेग्रेंसी की चिंता में लगातार डूबे रहने से कई परेशानियां हो सकती हैं।
ये कुछ ऐसे खतरनाक कारण हैं जो एक प्रेग्नेंट महिला को गर्भावस्था के दौरान ज्यादा चिंता करने से गंभीर एंग्जायटी का शिकार बना सकते हैं, यदि:
- कभी किसी प्रकार की घटना से सदमा पहुंचा हो
- पूर्व में अवसाद/डिप्रेशन का उपचार चला हो
- मानसिक विकार का परिवार में हिस्ट्री रही हो
- पिछली गर्भावस्था के दौरान चिंता
- पिछली प्रेग्नेंसी में बच्चे की डेथ
- प्रजनन के लिए लंबा संघर्ष
- घर या नौकरी में तनाव
- जीवन की घटनाएं, जैसे किसी अपने की मृत्यु या बीमारी से जुड़ी बातों का दिमाग में आते रहना
- प्रेग्नेंसी के दौरान पार्टनर की कमी या इस दौरान सोशल सपोर्ट की कमी
- घरेलू हिंसा
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प्रेग्नेंसी में चिंता/डर का इलाज कैसे किया जा सकता है?
इलाज कई स्थितियों पर निर्भर करता है। अगर प्रेग्नेंसी में चिंता सामान्य हो तो किसी खास उपचार की आवश्यकता नहीं होगी लेकिन किसी चिंता, समस्या या डर के किसी पॉइंट पर गंभीर लक्षण का अनुभव करते हैं, तब डॉक्टर को बताएं ताकि आपको सुरक्षित और प्रभावी ढंग से इस ट्रॉमा से निकलने में मदद मिल सके।
परामर्श या चिकित्सा:
प्रेग्नेंसी में चिंता का होना सामान्य है लेकिन, यदि आप इसे लगातार महसूस कर रही हैं तो प्रेग्नेंसी की समस्याओं के बारे में चिकित्सक से मिलें। वे आपकी भावनाओं को समझने और आपकी चिंताओं से निपटने में मदद करेंगे। आप कॉग्नीटिव बिहेवियर थेरिपी और पारस्परिक मनोचिकित्सा (Interpersonal psychotherapy) जैसी स्पेशल तकनीक का अभ्यास करना सीख सकते हैं। यह प्रेग्नेंसी में चिंता और डर को कम करने में सहायक हो सकता है।
दवा:
यदि आपकी चिंता बहुत गंभीर है, तो आपको डॉक्टर दवा का सेवन करने लिए कह सकते हैं। ऐसी स्थिति में आप उनसे प्रेग्नेंसी के दौरान इन मेडिकेशन के इस्तेमाल और इसके खतरे के बारे में जरूर जान लें। यदि आप गर्भवती होने से पहले चिंता या तनाव संबंधी दवा ले रही थीं तो उन्हें लेना बंद न करें। प्रेग्नेंसी जैसी नाजुक स्थिति में अचानक से किसी तरह का दवा रोकना आपके और बच्चे के स्वास्थ्य के लिए जोखिम खड़ा कर सकता है।
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सहायता समूह:
यह प्रेग्नेंसी में चिंता व तनाव से गुजरने वाली महिलाओं का समूह हो सकता है। ये ग्रुप्स इन परिस्थितियों में रहने वाली गर्भवती महिलाओं से मिलते हैं। किसी खास समस्याओं के बारे में अपनी भावनाओं और अनुभवों को शेयर करके प्रेग्नेंसी की समस्याओं और डर से बचने में मदद करते हैं।
अगर आप किसी चिंता में हैं तो घरवालों की मदद से उसको मात दे सकती हैं। अपने पार्टनर, परिवार, दोस्तों को अपनी प्रॉब्लम्स बताएं और सपोर्ट के लिए कहें। बच्चे की देखभाल करने के लिए खुद का ख्याल रखना बहुत महत्वपूर्ण है।
कुछ अन्य बदलाव जो प्रेग्नेंसी में चिंता से निपटने में मदद कर सकते हैं। वे इस प्रकार हैं:
व्यायाम:
व्यायाम सेरोटोनिन के स्तर को बढ़ाने और कोर्टिसोल के स्तर को कम करने का एक प्राकृतिक तरीका है। अपने डॉक्टर से बात कर ऐसे बेस्ट वर्कआउट का पता लगाएं जो प्रेग्नेंसी के दौरान की जाने वाली सुरक्षित एक्सरसाइज हो। गर्भवती महिलाओं के लिए डिजाइन की गई व्यायाम और योगा क्लासेज आपके लिए सहायक हो सकती हैं।
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स्वस्थ आहार का सेवन:
कई आहार प्रेग्नेंसी के दौरान मूड को प्रभावित करने, तनाव को कम करने ,ध्यान केंद्रित करने में मदद करते हैं। कैफीन, चीनी, प्रोसेस्ड कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन की कमी आपके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है। एक हेल्दी डायट प्लान के लिए एक रिलाएबल न्यूट्रशनिस्ट से बात करना अधिक फायदेमंद होगा।
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पर्याप्त नींद:
नींद की कमी तनाव को बढ़ाने और दिमाग की क्षमता को प्रभावित कर सकती है। वहीं चिंता आपकी नींद लेने की क्षमता को प्रभावित कर सकती है, नींद की रूटीन को बनाए रखने का प्रयास करें ताकि आप हर दिन एक ही समय पर सोएं और उठें।
प्रेग्नेंसी में चिंता शिशु और मां दोनों के लिए नुकसानदायक हो सकती है। इसलिए इससे निपटने के लिए डॉक्टर की मदद लेना सही होगा।
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