माइट्रल वॉल्व रिगर्जेटेशन (Mitral Valve Regurgitation) को माइट्रल रिगर्जेटेशन (Mitral Regurgitation), माइट्रल इंसफिशिएंसी (Mitral Insufficiency ) या माइट्रल इंकॉम्पेटेंस (Mitral Incompetence) भी कहा जाता जाता है। जब हमारा हार्ट खून को पंप करता है, तो ऐसा माना जाता है कि हमारा ब्लड एक ही डायरेक्शन में सही दिशा में फ्लो करेगा। लेकिन कई बार ऐसा नहीं होता है। माइट्रल वॉल्व रिगर्जेटेशन (Mitral Valve Regurgitation) वो स्थिति है, जिसमे हार्ट का माइट्रल वॉल्व अच्छे से बंद नहीं होता है, जिससे ब्लड हार्ट में वापस फ्लो हो जाता है।
इस स्थिति में खून शरीर के अन्य भागों तक फ्लो होने की जगह बैकवार्ड लीक करता है। जिसके कारण पीड़ित लोग थकान महसूस करते हैं और उन्हें सांस लेने में समस्या होती है। यही नहीं, इसकी वजह से हाय ब्लड प्रेशर (High Blood Pressure) और लंग्स में फ्लूइड के बिल्डअप की समस्या भी हो सकती है। जानिए, इस कंडीशन के बारे में विस्तार से। सबसे पहले जान लेते हैं इसके लक्षणों के बारे में।
माइट्रल वॉल्व रिगर्जेटेशन के लक्षण (Symptoms of Mitral Valve Regurgitation)
हो सकता है कि माइट्रल वॉल्व रिगर्जेटेशन (Mitral Valve Regurgitation) से पीड़ित कुछ लोगों को इसका कोई भी लक्षण महसूस न हो। इस समस्या के लक्षण इस समस्या के गंभीरता और किस तेजी से यह समस्या बढ़ती है, इस पर निर्भर करते हैं। इसके कुछ सामान्य लक्षण इस प्रकार हैं
- एब्नार्मल हार्ट साउंड (Abnormal heart sound)
- सांस लेने में समस्या (Shortness of breath)
- थकावट (Fatigue)
- हार्ट पल्पिटेशन (Heart Palpitations )
- सूजे हुए पैर या टखने (Swollen feet or ankles)
माइट्रल वॉल्व रिगर्जेटेशन (Mitral Valve Regurgitation) की समस्या अक्सर माइल्ड होती है और धीरे-धीरे बढ़ती है। हो सकता है कि सालों तक आपको इसका कोई भी लक्षण नजर ना आए और आपको पता भी न हो कि आपको यह बीमारी है। डॉक्टर को भी इस समस्या का संदेह तब होता है जब वो रोगी में हार्ट मर्मर (Heart murmur) कि पहचान करते हैं। हालांकि, कई लोगों में समस्या बहुत जल्दी विकसित होती है और इसके लक्षण भी अचानक भी महसूस किए जा सकते हैं। अब जानिए माइट्रल वॉल्व रिगर्जेटेशन (Mitral Valve Regurgitation) के कारणों के बारे में।
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माइट्रल वॉल्व रिगर्जेटेशन के कारण (Causes of Mitral Valve Regurgitation)
माइट्रल वॉल्व रिगर्जेटेशन की बीमारी माइट्रल वॉल्व में समस्या के कारण होती है। इसे प्रायमरी माइट्रल वॉल्व रिगर्जेटेशन (Primary Mitral Valve Regurgitation) भी कहा जाता है। लेफ्ट वेंट्रिकल (Left ventricle )से जुडी समस्याएं सेकेंडरी और फंक्शनल माइट्रल वॉल्व रिगर्जेटेशन(Functional Mitral Valve Regurgitation)का कारण बन सकती हैं। माइट्रल रिगर्जेटेशन, हार्ट वॉल्व डिसऑर्डर का सबसे सामान्य प्रकार है। खून जो हार्ट के विभिन्न चैम्बर्स के बीच में से बहता है, उसका वॉल्व के माध्यम से फ्लो होना भी जरूरी है।
हार्ट के लेफ्ट साइड के दो चैम्बर्स के बीच के वॉल्व को माइट्रल वॉल्व कहा जाता है। जब माइट्रल वॉल्व सही से क्लोज नहीं हो पाता है, तो इसके पूरा कॉन्ट्रैक्ट न होने के कारण ब्लड लोअर चैम्बर से अपर चैम्बर तक बैकवर्ड फ्लो करता है। इससे शरीर के बाकी हिस्सों में बहने वाले रक्त की मात्रा कम हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप, हार्ट को पंप करने में मुश्किल होती है। इससे कंजेस्टिव हार्ट फेलियर congestive heart failure. हो सकता है। यह बीमारी एकदम से शुरू हो सकती है और अक्सर हार्ट अटैक के बाद हो सकती है। अगर इस समस्या का उपचार न हो, तो यह क्रॉनिक बन सकती है। अन्य समस्याएं और डिजीज भी वॉल्व के आसपास के हार्ट टिश्यू या वॉल्व को डैमेज व कमजोर कर सकती हैं। माइट्रल वॉल्व रिगर्जेटेशन (Mitral Valve Regurgitation) का जोखिम इन स्थितियों में और भी अधिक बढ़ सकता है:
- कोरोनरी हार्ट डिजीज (Coronary heart disease)
- हाय ब्लड प्रेशर (High blood pressure)
- हार्ट वॉल्व में इंफेक्शन (Infection of heart valves)
- माइट्रल वॉल्व प्रोलैप्स (Mitral valve prolapse)
- कुछ दुर्लभ कंडिशंस जैसे अनट्रीटेड सिफलिस (Syphilis) या मार्फन सिंड्रोम (Marfan syndrome)
- रयुमाटिक हार्ट डिजीज (Rheumatic heart disease)
- लेफ्ट लोअर हार्ट चैम्बर में सूजन (Swelling of left lower heart chamber)
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रिस्क फैक्टर्स (Risk Factors)
कई ऐसे फैक्टर्स हैं जो माइट्रल वॉल्व रिगर्जेटेशन (Mitral Valve Regurgitation) के रिस्क फैक्टर्स को बढ़ा सकते हैं, जानिए इन रिस्क फैक्टर्स के बारे में :
माइट्रल वॉल्व प्रोलैप्स (mitral valve prolapse ) या माइट्रल वॉल्व स्टेनोसिस ( mitral valve stenosis) की हिस्ट्री : हालांकि, ऐसा जरूरी नहीं है कि इनमें से कोई भी समस्या होने से आपको माइट्रल वॉल्व रिगर्जेटेशन (Mitral Valve Regurgitation) की संभावना बढ़ जाए। लेकिन, वॉल्व डिजीज की फैमिली हिस्ट्री होने पर यह जोखिम बढ़ सकता है।
- हार्ट अटैक (Heart attack) : हार्ट अटैक के कारण हार्ट डैमेज हो सकता है, जिससे माइट्रल वॉल्व का फंक्शन प्रभावित होता है।
- हार्ट डिजीज (Heart disease) : कुछ हार्ट डिजीज जैसे कोरोनरी आर्टरी डिजीज (Coronary Artery Disease) माइट्रल वॉल्व रिगर्जेटेशन (Mitral Valve Regurgitation) के जोखिम को बढ़ा सकती है।
- कुछ दवाईयों का प्रयोग (Use of medications): जो लोग कुछ दवाईयां लेते हैं जैसे कैबरगोलीन (Cabergoline) उन्हें भी यह समस्या होने की संभावना बढ़ जाती है। यह नहीं, कुछ अन्य दवाइयाँ भी इसके जोखिम को बढ़ा सकती हैं।
- इंफेक्शंस (Infections) : कुछ इंफेक्शंस जैसे एंडोकार्डाइटिस (Endocarditis) या रयुमाटिक फीवर (Rheumatic Fever) भी इस समस्या के रिस्क फैक्टर्स हो सकते हैं। इंफेक्शंस या सूजन के कारण माइट्रल वॉल्व डैमेज हो सकते हैं।
- कंजेनिटल हार्ट डिजीज (Congenital Heart Disease) : कुछ लोग जो एब्नॉर्मल माइट्रल वॉल्व के साथ पैदा होते हैं। उनमें भी इस समस्या का रिस्क अधिक होता है।
- उम्र (Age) उम्र के बढ़ने पर वॉल्व के प्राकृतिक रूप से बिगड़ने के कारण माइट्रल वॉल्व रिगर्जेटेशन (Mitral Valve Regurgitation) की समस्या बढ़ सकती है। यह तो थे इसके कारण और रिस्क फैक्टर्स। अब जानिए किस तरह से किया जाता है इस रोग का निदान?
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माइट्रल वॉल्व रिगर्जेटेशन का निदान (Diagnosis of Mitral Valve Regurgitation)
सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (Centers for Disease Control and Prevention) के अनुसार माइट्रल वॉल्व रिगर्जेटेशन (Mitral Valve Regurgitation) के निदान में सबसे पहले डॉक्टर हार्ट मर्मर के लिए रोगी की हार्टबीट को सुनेंगे। मर्मर की लोकेशन, इसकी आवाज और रिदम के अनुसार डॉक्टर यह निदान करने में सक्षम होते हैं कि रोगी का कौन सा वॉल्व प्रभावित है और किस तरह की समस्या है। इसके साथ ही डॉक्टर रोगी की मेडिकल हिस्ट्री (Medical History) और हार्ट डिजीज (Heart Disease) की फैमिली हिस्ट्री के बारे में भी जानेंगे। इस समस्या के निदान के लिए रोगी की शारीरिक जांच की जानी जरुरी है। यही नहीं, माइट्रल वॉल्व रिगर्जेटेशन (Mitral Valve Regurgitation) के निदान के लिए अन्य टेस्ट्स भी कराए जा सकते हैं। जो इस प्रकार हैं:
इकोकार्डियोग्राम (Echocardiogram)
यह टेस्ट माइट्रल वॉल्व रिगर्जेटेशन (Mitral Valve Regurgitation) के निदान के लिए सबसे सामान्य रूप से कराया जाता है। इस टेस्ट में हार्ट की वीडियो इमेज बनाने के लिए साउंड वेव्स (Sound Waves) का प्रयोग किया जाता है। ताकि, हार्ट कंडिशन के बारे में सही जानकारी प्राप्त की जा सके।
इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (Electrocardiogram)
इस टेस्ट में स्किन पर एडहेसिव पैड्स को अटैच किया जाता है ताकि हार्ट की इलेक्ट्रिकल इम्पल्स (Electrical Impulse) को मापा जा सके। इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम से डॉक्टर हार्ट के एंलार्जड चैम्बर्स (Enlarged Chambers), हार्ट डिजीज (Heart Disease) और एब्नार्मल हार्ट रिदम्स (Abnormal Heart Rhythm) आदि के बारे में भी जान सकते हैं।
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छाती का एक्स-रे (Chest X-ray)
छाती के एक्स-रे से डॉक्टर हार्ट के अंदर की तस्वीरों को लिया जाता है। इसके साथ ही डॉक्टर कार्डिएक मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (Cardiac Magnetic Resonance Imaging) के लिए भी कह सकते हैं। जिसमें मेग्नेटिक फ़ील्ड्स (Magnetic Fields) और रेडियो वेव्स (Radio Waves) का प्रयोग करते हैं। ताकि हार्ट की डिटेल्ड इमेज बनाई जा सकें। इससे कंडिशन की गंभीरता और लेफ्ट हार्ट चैम्बर के फंक्शन और साइज का पता चल सकती है।
एक्सरसाइज या स्ट्रेस टेस्ट (Exercise tests or Stress tests)
विभिन्न एक्सरसाइज टेस्ट एक्टिविटी टॉलरेंस (Activity tolerance) को मापने में मदद करते हैं और इनसे हार्ट की फिजिकल एक्सेरशन (Physical exertion) के रिस्पांस को भी मॉनिटर किया जा सकता है। अगर रोगी एक्सरसाइज नहीं कर पाता है, तो उसकी जगह रोगी को कुछ दवाईयां दी जा सकती हैं।
कार्डिएक कैथेटेराइजेशन (Cardiac catheterization)
अक्सर माइट्रल वॉल्व रिगर्जेटेशन (Mitral Valve Regurgitation) के निदान के लिए यह टेस्ट नहीं किया जाता है। लेकिन, इस टेस्ट से हार्ट आर्टरीज की डिटेल्ड पिक्चर ली जा सकती है और हार्ट फंक्शन के बारे में जाना जा सकता है। इस टेस्ट से हार्ट चैम्बर के अंदर के प्रेशर को भी जांच जा सकता है। यह तो थे इस कंडिशन के निदान की जानकारी। जानिए इस समस्या का उपचार किस तरह से संभव है?
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माइट्रल वॉल्व रिगर्जेटेशन के उपचार (Treatment of Mitral Valve Regurgitation)
इस समस्या का उपचार रोगी के लक्षणों, हार्ट की कंडिशन आदि पर निर्भर करता है। हाय ब्लड प्रेशर या कमजोर हार्ट मसल्स वाले लोगों के हार्ट के प्रेशर और लक्षणों को कम करने के लिए दवाएं दी जा सकती हैं। माइट्रल वॉल्व रिगर्जेटेशन (Mitral Valve Regurgitation) के लक्षणों को कम करने के लिए यह दवाईयां भी दी जा सकती है:
- बीटा-ब्लॉकर्स (Beta-blockers), ACE इन्हिबिटर्स (ACE inhibitors), या कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स (Calcium channel blockers)
- ब्लड थिनर्स (Blood thinners) ताकि एट्रियल फायब्रिलेशन (Atrial fibrillation) से पीड़ित व्यक्ति में ब्लड क्लॉट्स को दूर करने में मदद मिल सके।
- अनइवन या एब्नार्मल हार्टबीट्स को कंट्रोल करने में मदद करने वाली दवाईयां।
- वाटर पिल्स (Water pills) या डाययुरेटिक्स (Diuretics) ताकि लंग्स में से अत्याधिक फ्लूइड को रिमूव किया जा सके। एक बार जब निदान हो जाता है, तो आपको नियमित रूप से डॉक्टर से चेकअप कराना होगा। ताकि, सिम्पटम्स और हार्ट फंक्शन को ट्रैक किया जा सके।
सर्जरी (Surgery)
दवाईयों के साथ ही रोगी को वॉल्व को रिपेयर या रिप्लेस करने के लिए सर्जरी की जरूरत हो सकती है। इन स्थितियों में सर्जरी की सलाह दी जा सकती है, अगर:
- हार्ट फंक्शन पुअर हो
- हार्ट एंलार्ज हो गया हो
- लक्षण बदतर हो गए हों
यह सर्जरीज इस प्रकार हो सकती हैं :
- माइट्रल वॉल्व रिपेयर (Mitral valve repair)
- माइट्रल वॉल्व रिप्लेसमेंट (Mitral valve replacement)
जिसमें डॉक्टर माइट्रल वॉल्व (Mitral valve) को रिपेयर या रिप्लेस करने की सलाह देते हैं। दवाईयों और सर्जरी के साथ ही रोगी के ट्रीटमेंट के लिए डॉक्टर रोगी को जीवन शैली में बदलाव के लिए भी कहेंगे। जानिए इनके बारे में विस्तार से।
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जीवनशैली में बदलाव
डॉक्टर रोगी को माइट्रल वॉल्व रिगर्जेटेशन (Mitral Valve Regurgitation) के लक्षणों को मैनेज करने के लिए रोगी को इन बदलावों की सलाह दे सकते हैं:
- ब्लड प्रेशर को कंट्रोल में रखें (Control Blood Pressure)
- हार्ट हेल्दी डायट का सेवन करें (Healthy Heart Diet)। ऐसा आहार लें जिसमें सैचुरेटेड और ट्रांस फैट्स, शुगर, साल्ट, रिफायंड अनाज की मात्रा कम हो। अधिक से अधिक सब्जियों, फल, साबुत अनाज और प्रोटीन युक्त आहार का सेवन करें।
- अपने वजन को सही रखें (Manage Right Weight)
- इंफेक्टिव एंडोकार्डाइटिस से बचें (Avoid Infective endocarditis)
- एल्कोहॉल को कम मात्रा में लें या इसे बिलकुल न लें (Limit Alcohol)
- तम्बाकू का सेवन कम से कम करें (Don’t Take Tobacco)
- नियमित रूप से फिजिकल एक्टिविटी को करें (Regular Physical Activity )
- तनाव से बचें (Avoid Stress)
- नियमित रूप से डॉक्टर से अपनी जांच कराएं (Regular Doctor Visit) और डॉक्टर की सलाह का पालन करें (Follow Doctor’s Advice)
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अगर आप एक महिला हैं और आपको माइट्रल वॉल्व रिगर्जेटेशन (Mitral Valve Regurgitation) की समस्या है, तो गर्भवती होने से पहले डॉक्टर की सलाह लें। यही नहीं, अगर आपको हार्ट वॉल्व डिजीज (Heart Valve Disease) की हिस्ट्री या कंजेनिटल हार्ट डिजीज (Congenital heart Disease) है। तो डॉक्टर या अपने डेंटिस्ट को उपचार से पहले ही सब कुछ बता दें। ऐसे में आपको डेंटल प्रोसीजर या सर्जरी से पहले एंटीबायोटिक्स दी जा सकती हैं। यही नहीं, नियमित डॉक्टर की सलाह लेना और जांच भी जरूरी है। दवाईयां और सर्जरी तो आपके उपचार का केवल हिस्सा हैं अगर आप हमेशा हेल्दी रहना चाहते हैं, तो हेल्दी लाइफस्टाइल का पालन करना न भूलें।
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