कारण (Causes) : लर्निंग डिसऑर्डर्स के लिए फैमिली हिस्ट्री और जेनेटिक्स (Family History and Genetics) , प्रीनेटल और नियोनेटल रिस्क (Prenatal and Neonatal Risks) , साइकोलॉजिकल ट्रामा (Psychological Trauma) , फिजिकल ट्रामा (Physical Trauma), एनवायर्नमेंटल एक्सपोज़र (Environmental Exposure) आदि को जिम्मेदार माना जाता है।
उपचार (Treatment): अगर आपके बच्चे को लर्निंग डिसऑर्डर है, तो डॉक्टर आपको निम्नलिखित उपचार के तरीकों और थेरेपी की सलाह दें सकते हैं:
- व्यक्तिगत एजुकेशन प्रोग्राम (Individualized Education Program)
- थेरेपी (Therapy)
- दवाईयां (Medication)
- पूरक और वैकल्पिक चिकित्सा Complementary and Alternative Medicine)
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6 -10 साल के बच्चों में बिहेवियरल और डेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स (Behavioural and Developmental Disorders in Children :6-10 years)
6 -10 साल का बच्चा टीनएज में कदम रखने वाला होता है। यह उम्र बच्चे के जीवन में बहुत महत्व रखती है क्योंकि इस दौरान उनके शरीर और दिमाग में बहुत अधिक बदलाव आते हैं। ऐसे में व्यवहार में परिवर्तन भी सामान्य है। जानिए 6 -10 साल के बच्चों में बिहेवियरल और डेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स (Behavioral and Developmental Disorders in Children) इस प्रकार हैं :
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ओपोजीशनल डेफिएंट डिसऑर्डर (Oppositional Defiant Disorder)
ऐसा माना जाता है कि 11 साल से कम उम्र के कम दस में एक से एक बच्चा इस डिसऑर्डर का शिकार होता है। अगर आपके बच्चे का व्यवहार बहुत अच्छा है, तब भी वो अपने जीवन में कभी न कभी मुश्किल और चुनौतीपूर्ण समय जरूर गुजरेगा। ओपोजीशनल डिफिएंट डिसऑर्डर के लक्षण इस प्रकार हैं
- गुस्से या परेशान रहना (Angry and irritable mood)
- जल्दी या बार-बार गुस्सा हो जाना (Often and easily loses Temper)
- अन्य लोगों से जल्दी नाराज हो जाना (Easily annoyed by Others
- बड़े लोगों से बहस करना (Often argues with Adults)
- दूसरे लोगों को नाराज या परेशान करना (deliberately annoys or upsets People)
- दूसरों को अपने व्यवहार के लिए जिम्मेदार मानना (Blames Others for his or her Mistakes or Misbehavior)
कारण (Causes) : ओपोजीशनल डिफिएंट डिसऑर्डर का कोई स्पष्ट कारण नहीं है। लेकिन एक्सपर्ट्स के अनुसार इसके कुछ कारण यह हो सकते हैं:
उपचार : बच्चों में बिहेवियरल और डेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स (Behavioral and Developmental Disorders in Children) में ओपोजीशनल डेफियांट डिसऑर्डर के इलाज में फैमिली बेस्ड इंटरवेंशन शामिल हैं। इसके साथ ही बच्चों को अन्य तरह कि साइकोथेरेपी या ट्रेनिंग भी दी जा सकती हैं। इसका इलाज कराना जरूरी है, क्योंकि अगर इस डिसऑर्डर का इलाज न कराया जाए, तो इसके लक्षण बदतर हो सकते हैं। इसका इलाज इस तरह से किया जा सकता है:
- पैरेंट ट्रेनिंग (Parent training)
- पैरेंट-चाइल्ड इंटरेक्शन थेरेपी (Parent-child interaction therapy)
- इंडिविजुअल और फॅमिली थेरेपी (Individual and family therapy)
- कॉग्निटिव प्रॉब्लम-सॉल्विंग ट्रेनिंग (Cognitive problem-solving training)
- सोशल स्किल्स ट्रेनिंग (Social skills training)
एंग्जायटी डिसऑर्डर्स (Anxiety Disorders)
इस बारे में फोर्टिस अस्पताल मुलुंड के न्यूरोलॉजी विभाग के सलाहकार डॉ धनुश्री चोंकर का कहना है कि बच्चों का मन बहुत कोमल होता है। उनके मन में कोई भी बात बहुत जल्दी लग जाती है। आजकल बच्चों में भी तनाव की समस्या अधिक देखने को मिल रही है। इस कारण कई बच्चें परेशान हो कर सुसाइड जैसे विचारों की तरफ अपने कदम बढ़ाने लगते हैं। बच्चों को पढ़ाई से ज्यादा सोशल ग्रुप का प्रेशर इतना ज्यादा बढ़ता जा रहा है कि वो बदलाव उनके व्यवहार देखने को मिलता है। जिसमें सबसे पहले उनका चिड़चिड़ा व्यवहार और किसी से बात न करना शामिल है।
एंग्जायटी डिसऑर्डर्स के कारण बच्चे के व्यवहार, सोने, खाने और मूड में परिवर्तन, अधिक ड़र और चिंता पैदा होती है। बच्चों में कई तरह के एंग्जायटी डिसऑर्डर्स होते हैं जैसे :
- जनरलाइज्ड एंग्जायटी डिसऑर्डर (Generalized Anxiety Disorder)
- सेपरेशन एंग्जायटी डिसऑर्डर (Separation Anxiety Disorder)
- सोशल फोबिया (Social Phobia)
- सेलेक्टिव मुटिस्म (Selective Mutism)
- स्पेसिफिक फोबिया (Specific Phobia)