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क्या लिवर की समस्याओं की वजह हो सकता है हाय कोलेस्ट्रॉल?

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Nikhil deore द्वारा लिखित · अपडेटेड 03/12/2021

    क्या लिवर की समस्याओं की वजह हो सकता है हाय कोलेस्ट्रॉल?

    क्या आप जानते हैं कि हमारे शरीर में अधिकतर कोलेस्ट्रॉल लिवर में बनता है और अच्छी सेहत के लिए यह जरूरी भी है। लेकिन, कोलेस्ट्रॉल के कुछ प्रकार, कई हेल्थ इशूज का कारण बन सकते हैं जिसमें लिवर का डैमेज होने भी शामिल है। कोलेस्ट्रॉल फैट की तरह का एक वैक्सी सब्सटांस है ,जो शरीर को सेल मेम्ब्रेन (Cell Membranes) , कई हॉर्मोन्स (Hormone) और विटामिन डी (Vitamin D) बनाने में मदद करता है। वहीं खून में कोलेस्ट्रॉल दो स्रोतों से आता है- एक जो हम खाना खाते हैं उससे और दूसरा हमारे लिवर से। हमारा लिवर हमारे शरीर को जितना कोलेस्ट्रॉल चाहिए होता है, उसे बनाता है। आज हम लिवर और कोलेस्ट्रॉल (Liver and Cholesterol) के बारे में आपको कुछ महत्वपूर्ण चीजें बताने वाले हैं। जानिए लिवर और कोलेस्ट्रॉल (Liver and Cholesterol) के बारे में विस्तार से।

    लिवर और कोलेस्ट्रॉल (Liver and Cholesterol) क्या हैं?

    कोलेस्ट्रॉल के दो प्रायमरी प्रकार हैं, एक जो शरीर के लिए लाभदायक है और दूसरा जो हेल्थ प्रॉब्लम्स  का कारण बनता है। कोलेस्ट्रॉल लेवल को बनाए रखना अच्छे स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। लिवर हमारे शरीर का सबसे बड़ा ग्लैंड है, जो पेट के ऊपरी दाहिने हिस्से में स्थित होता है। यह शरीर का ड्रग्स और अन्य फॉरेन पदार्थों के लिए मास्टर डिटॉक्सर (Master Detoxer) है। यह ग्लाइकोजन (Glycogen) को स्टोर करता है, जिसका प्रयोग शरीर की एनर्जी के लिए करता है।

    यह फैट, कार्बोहाइड्रेट्स और प्रोटीन्स को मेटाबॉलाइज करने के लिए भी महत्वपूर्ण है। लिवर का सबसे महत्वपूर्ण काम है शरीर में कोलेस्ट्रॉल को बनाना और उसे क्लियर करना। कोलेस्ट्रॉल को अधिकतर हमारे शरीर के लिए हानिकारक माना जाता है। लेकिन, कोलेस्ट्रॉल को हार्मोन (Hormone), विटामिन डी (Vitamin D) और पाचन के लिए जरूरी एंजाइम के निर्माण के लिए आवश्यक माना जाता है। अब जान लेते हैं कोलेस्ट्रॉल के लेवल के बारे में।

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    कोलेस्ट्रॉल का लेवल कितना होना चाहिए?

    हाय-डेंसिटी लिपोप्रोटीन (High-density Lipoprotein) और लो-डेंसिटी लिपोप्रोटीन (Low-density Lipoprotein) दो मुख्य तरह के कोलेस्ट्रॉल हैं। कोलेस्ट्रॉल के लेवल को खून में मिलीग्राम पर डेसीलीटर (mg/dL) के रूप में मापते हैं। सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल और प्रिवेंशन (Centers for Disease Control and Prevention) के अनुसार कोलेस्ट्रॉल के हेल्दी लेवल इस तरह से होना चाहिए:

  • LDL जो 100 mg/dL से कम होना चाहिए।
  • HDL जो 40 mg/dL या इससे अधिक होना चाहिए।
  • HDL यानी हाय-डेंसिटी लिपोप्रोटीन शरीर में सेल्स से कोलेस्ट्रॉल को लिवर में ले जाता है। लिवर इसे तोड़ देता है या वेस्ट प्रोडक्ट के रूप में शरीर से बाहर निकाल देता है। यह फंक्शन शरीर के लिए बहुत लाभदायक होता है और इसे कभी-कभी  गुड कोलेस्ट्रॉल (Good Cholestrol) भी कहा जाता है। जबकि लो-डेंसिटी लिपोप्रोटीन, कोलेस्ट्रॉल को लिवर से सेल्स तक ले कर जाता है। सेल्स इस कोलेस्ट्रॉल का प्रयोग करते हैं। लेकिन, इसकी अधिक मात्रा में होने पर यह आर्टरीज में जम सकते हैं। आर्टरीज में जमा यह बिल्ड-अप कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकते हैं, इसलिए इसे कई बार डॉक्टर बैड कोलेस्ट्रॉल (Bad Cholesterol) भी कहते हैं। जानिए कोलेस्ट्रॉल के प्रभाव के बारे में।

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    हाय कोलेस्ट्रॉल का प्रभाव (Effects of high Cholesterol)

    जब किसी व्यक्ति के शरीर में बैड कोलेस्ट्रॉल या  LDL का लेवल बढ़ता है तो उसे हाय कोलेस्ट्रॉल भी कहा जाता है। यह वो स्थिति है जो कई हेल्थ समस्याओं को बढ़ाने का कारण बन सकती है। आर्टरीज शरीर के मुख्य ब्लड वेसल्स हैं। जब कोलेस्ट्रॉल आर्टरीज में जम जाता है तो यह तंग हो जाते हैं। जिससे अंगों में खून और ऑक्सीजन की सप्लाई कम हो जाती है। आर्टरीज का तंग होना ब्लड क्लॉट के जोखिम को भी बढ़ा सकता है। अगर दिल में ब्लड फ्लो में बाधा आती है तो इससे कोरोनरी हार्ट डिजीज की संभावना बढ़ती है। इसमें हार्ट अटैक और हार्ट फेलियर भी शामिल हैं। अगर दिमाग में ब्लड फ्लो में बाधा आती है, तो इससे स्ट्रोक की संभावना बढ़ सकती है। जानते हैं लिवर और कोलेस्ट्रॉल (Liver and Cholesterol) के बीच के कनेक्शन को।

    अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन  (American Heart Association) के अनुसार कोलेस्ट्रॉल खून में सर्कुलेट करता है। जैसे ही ब्लड में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ती है यह स्वास्थ्य के लिए जोखिम भरा हो सकता है। हाय कोलेस्ट्रॉल दिल संबंधी कई समस्याओं का भी कारण बन सकता है। ऐसे में कोलेस्ट्रॉल के लेवल की समय-समय पर जांच कराना बेहद जरूरी है।

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    क्या लिवर के रोगों से कोलेस्ट्रॉल बढ़ सकता है ?

    लिवर और कोलेस्ट्रॉल (Liver and Cholesterol) के बीच में गहरा लिंक है। लिवर के रोग कई तरह के होते हैं जैसे हेपेटाइटिस (Hepatitis), अल्कोहल रिलेटेड लिवर डिजीज (Alcohol-related Liver Disease) और नॉन-एल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज (Non Alcoholic Fatty Liver Disease) आदि। लिवर डिजीज के कारण लिवर डैमेज हो सकता है। इसका अर्थ है कि लिवर को सही से काम करने में समस्या हो सकती है। लिवर का एक काम है कोलेस्ट्रॉल को ब्रेक डाउन करना। अगर लिवर सही से काम नहीं करता है तो इससे शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ सकती है।

    वहीं दूसरी तरफ अगर हमारी डायट में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा अधिक हो, तो इससे हमारे लिवर के आसपास फैट जमा हो सकती है। जिससे नॉन एल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज (Non Alcoholic Fatty Liver Disease ) हो सकती है, जो लिवर को डैमेज कर सकती है। नॉन एल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज से कई अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का जोखिम बढ़ता है जैसे स्ट्रोक और डायबिटीज आदि। अगर इसका निदान शुरुआत में हो जाए और उपचार भी सही समय पर हो, तो स्थिति बदतर होने से बच सकती है। कोई भी व्यक्ति अर्ली स्टेज में अपने लिवर में फैट की मात्रा को कम कर सकता है। अब जानते हैं लिवर और कोलेस्ट्रॉल (Liver and Cholesterol) संबंधित समस्याओं का निदान कैसे होता है?

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    लिवर और कोलेस्ट्रॉल संबंधित समस्याओं का निदान (Diagnosis of Liver and Cholesterol)

    डॉक्टर लिवर की समस्याओं का निदान रोगी के लक्षणों और मेडिकल हिस्ट्री के बाद कर सकते हैं। इसके लिए रोगी को लिवर फंक्शन टेस्ट्स भी कराने पड़ सकते हैं, जो इस प्रकार हैं:

    लिवर एंजाइम टेस्ट (Liver Enzyme Test):

    सबसे सामान्य एंजाइम होते हैं, एलेनिन ट्रांसएमिनेस (Alanine Transaminase), एस्पर्टेट ट्रांजएमिनेज (Aspartate Transaminase), ऐल्कलाइन फोस्फेटेज (Alkaline Phosphatase)। इन एंजाइम में से किसी के भी लेवल के अधिक होने से लिवर को नुकसान हो सकता है।

    लिवर प्रोटीन टेस्ट (Liver Protein Test):

    प्रोटीन ग्लोब्युलिन (Globulin) और एल्ब्यूमिन (Albumin) के कम लेवल होना लिवर फंक्शन में समस्या का संकेत है। प्रोथ्रॉम्बिन (Prothrombin) वो लिवर प्रोटीन है, जो क्लॉटिंग के लिए जरूरी है। यह सामान्य टेस्ट यह बताता है कि खून के थक्के बनने में कितना समय लगता है। स्लो क्लॉटिंग का अर्थ है कि रोगी के शरीर में प्रोथ्रॉम्बिन कम है और लिवर डैमेज हो सकता है।

    बिलीरुबिन टेस्ट (Bilirubin Test):

    ब्लड, बिलीरुबिन को लिवर और गॉलब्लेडर में पहुंचाता है। फिर यह मल के माध्यम से बाहर निकल जाता है। यूरिन में खून या खून में अधिक बिलीरुबिन लिवर डैमेज का प्रतीक हो सकता है।

    कोलेस्ट्रॉल के लेवल की जांच करने के लिए डॉक्टर ब्लड टेस्ट की सलाह दे सकते हैं जिसे लिपिड पैनल (Lipid Panel) या लिपिड प्रोफाइल (Lipid Profile) टेस्ट कहा जाता है। जानिए अब लिवर और कोलेस्ट्रॉल (Liver and Cholesterol) की समस्याओं के उपचार के बारे में।

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    लिवर और कोलेस्ट्रॉल की समस्याओं का उपचार कैसे संभव है? (Treatment of Liver and Cholesterol)

    हाय कोलेस्ट्रॉल के उपचार के लिए रोगी को अपने जीवनशैली में बदलाव करने और कई बार दवाइयां लेने की सलाह दी जाती है। डॉक्टर रोगी को उसकी डायट में परिवर्तन करने और व्यायाम करने के लिए भी कहते हैं। अगर रोगी का वजन अधिक है, तो उसे कम करने के लिए भी कहा जा सकता है। अगर लंबे समय तक जीवनशैली में बदलाव के बाद भी कोई परिवर्तन नहीं आता है तो डॉक्टर कुछ दवाइयों की सलाह भी दे सकते हैं। इसकी सबसे सामान्य दवा है स्टेटिन (Statins), जिसे मरीज को पूरी जिंदगी लेना पड़ सकता है। स्टेटिन वो दवाइयां हैं जो लिवर में उन केमिकल्स को ब्लॉक करती है, जो कोलेस्ट्रॉल बनाते हैं।

    इसके अलावा लिवर का समस्याओं का उपचार उस समस्या के आधार पर किया जाता है। जिसमें दवाइयां, लाइफस्टाइल में बदलाव शामिल है। लेकिन, अगर लिवर को अधिक नुकसान हुआ तो लिवर ट्रांसप्लांट भी किया जा सकता है। अब जान लेते हैं कि लिवर और कोलेस्ट्रॉल (Liver and Cholesterol) संबंधी समस्याओं में रोगी को अपनी डायट में क्या परिवर्तन करने चाहिए?

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    डायट (Diet)

    सही डायट से लिवर डिजीज के विकास का जोखिम कम करने में मदद मिलती है और इसका प्रभाव भी कम हो सकता है। हेल्दी वेट बनाए रखना भी सम्पूर्ण स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। लिवर संबंधी किसी बीमारी की स्थिति में डॉक्टर स्पेशल डायट फॉलो करने के लिए भी कह सकते हैं। इसके साथ ही डॉक्टर आपको सही व्यायाम के बारे में भी बता सकते हैं।

    इस दौरान क्या खाये और क्या न खाएं?

    फैटी लिवर या नॉन एल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज के प्रभाव को कम करने के लिए फैटी फ़ूड का सेवन करना कम करना चाहिए। इसके साथ ही पर्याप्त फल और सब्जियों का सेवन करें। प्रोटीन युक्त आहार का सेवन करने से न केवल आपको पर्याप्त ऊर्जा मिलेगी। बल्कि, इससे आपको हाय कोलेस्ट्रॉल फ़ूड खाने की जरूरत नहीं होगी। अंडे, मेवे, दालें आदि प्रोटीन का बेहतरीन स्त्रोत हैं। लिवर और कोलेस्ट्रॉल (Liver and Cholesterol) जैसी समस्याओं में क्या खाना चाहिए और किन चीजों को नहीं खाना चाहिए, इसके बारे में अधिक जानने के लिए अपने डॉक्टर और डायटिशन की मदद अवश्य लें।

    एल्कोहॉल (Alcohol)

    जिन लोगों को एल्कोहॉल रिलेटेड लिवर डिजीज (alcohol-related liver disease) होती है, उन्हें शराब न पीने की सलाह दी जाती है। इसके साथ ही पर्याप्त प्रोटीन (Protein) और कार्बोहाइड्रेट्स को भी डायट का हिस्सा बनाने के लिए कहा जा सकता है। जिससे हेल्दी वजन को मेंटेन  रखने में मदद मिल सके।

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    लिवर और कोलेस्ट्रॉल  बचाव किस तरह से संभव? (Prevention of Liver and Cholesterol)

    अगर किसी को लिवर और कोलेस्ट्रॉल (Liver and Cholesterol) संबंधित कोई भी समस्या है तो सबसे पहले जरूरी है रोगी का हेल्दी हैबिट्स को अपनाना। कोई भी रोगी सही डायट (जिसमें ज्यादा फल और सब्जियां शामिल है) को लेकर अपने कोलेस्ट्रॉल को कम कर सकता है। इसके साथ ही अन्य उपाय इस प्रकार हैं:

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    जैसा की पहले ही बताया गया है कि जीवन में हेल्दी आदतों को अपना कर न केवल आप हाय कोलेस्ट्रॉल लेवल को सही कर सकते हैं, बल्कि आपको फिर से यह समस्या भी नहीं होगी। लिवर भी एक खास पॉइंट पर खुद को रिपेयर कर लेता है। इसका अर्थ है कि रोगी अगर सही या शुरुआती स्टेज पर लिवर संबंधी समस्याओं का निदान कर लेता है, तो यह समस्या जल्दी ठीक हो सकती है। लिवर संबंधी समस्याओं से बचने के लिए भी सही खाएं, व्यायाम करें और एल्कोहॉल का सेवन न करें। लिवर और कोलेस्ट्रॉल (Liver and Cholesterol) संबंधी समस्याओं का कोई भी लक्षण नजर आने पर तुरंत मेडिकल हेल्प लें।

    डिस्क्लेमर

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