स्टूल में ब्लड (Blood in Stool) आना एक डरा देने वाली स्थिति है। अगर किसी को भी यह परेशानी होती है तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लेना जरूरी है। पॉटी में खून आना किसी गंभीर समस्या की तरफ संकेत हो सकता है। हालांकि, हमेशा ऐसा होना जरूरी नहीं है। लेकिन अगर ऐसा होता है तो सबसे पहले आवश्यक है इसके सही कारणों के बारे में जानना। क्योंकि, कई बार यह इमरजेंसी भी हो सकती है। स्टूल में ब्लड (Blood in Stool) आने की स्थिति को नजरअंदाज कभी न करें। आइए, जानते हैं पॉटी में खून आने के कारणों के बारे में और जानते हैं कैसे संभव है इसका उपचार।
स्टूल में ब्लड के क्या कारण हैं? (Causes of Blood in Stool)
स्टूल में ब्लड (Blood in Stool) आने का अर्थ है कि आपके डायजेस्टिव ट्रैक्ट (Digestive Tract) में कहीं ब्लीडिंग हो रही है। कई बार यह खून की मात्रा इतनी कम होती है कि इसके बारे में पूरी जानकारी केवल फीकल अकल्ट टेस्ट (fecal occult test) के माध्यम से ही हो सकती है। कई बार यह खून मल त्याग के बाद टॉयलेट पेपर या टॉयलेट में ब्राइट रेड ब्लड के रूप में दिखाई देता है। डायजेस्टिव ट्रैक्ट में अधिक ब्लीडिंग होने से मल काला और टारी दिखाई दे सकता है। स्टूल में ब्लड (Blood in Stool) आने के कारण इस प्रकार है:
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डायवर्टिकुलर डिजीज (Diverticular Disease)
डायवर्टिकुला बॉवेल की लायनिंग में मौजूद स्माल पाउच है। अधिकतर डायवर्टिकुला से कोई समस्या नहीं होती है लेकिन कई बार इनसे ब्लीडिंग हो सकती है या यह संक्रमित हो सकते हैं और स्टूल में ब्लड (Blood in Stool) का कारण बन सकते हैं।
एनल फिशर (Anal Fissure)
एनस के टिश्यू में एक छोटा सा कट या दरारें होंठों के फटने के कारण होने वाली दरारों की तरह होते हैं। यह फिशर अक्सर बड़े, सख्त मल के गुजरने के होते हैं और यह स्थिति दर्दनाक हो सकती हैं। इसकी वजह से भी मल में खून आ सकता है।
कोलाइटिस (Colitis)
कोलाइटिस यानी कॉलन की सूजन। यह इंफेक्शन या इन्फ्लेमेटरी बॉवेल डिजीज में से सबसे सामान्य है। इस समस्या की वजह से भी स्टूल में ब्लड (Blood in Stool) आ सकता है।
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एंजियोडिसप्लासिया (Angiodysplasia)
यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें नाजुक असामान्य ब्लड वेसल्स में ब्लीडिंग हो सकती है। यह स्टूल में ब्लड (Blood in Stool) आने का एक कारण हो सकता है।
हिमोरॉइड्स (Hemorrhoids)
हिमोरॉइड्स (Hemorrhoid) स्टूल में खून का सबसे मुख्य कारण है। यह समस्या तब सामने आती है जब रेक्टम या एनस सूज जाते हैं और उसमें जलन होती है। इससे होने वाली ब्लीडिंग आमतौर पर लाल रंग की होती है।
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कॉलन पॉलीप्स (Colon Polyps)
कॉलन पॉलीप्स कॉलन में होने वाली वो ग्रोथ है जिनमें कैंसरस ट्यूमर के विकसित होने की संभावना अधिक होती है। आमतौर पर पॉलीप्स के कोई लक्षण नहीं होते हैं लेकिन इसके कारण ब्लीडिंग हो सकती है। जो मल में दिखाई दे सकती है।
कॉलन कैंसर (Colon Cancer)
स्टूल में ब्लड (Blood in Stool) कॉलन कैंसर का सबसे पहले लक्षण हो सकता है। इसलिए पॉटी में खून दिखाई देने पर तुरंत डॉक्टर से मेडिकल हेल्प लेनी जरूरी है।
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स्टूल कलर में बिनाइन बदलाव (Benign Changes in Stool Color)
कई बार स्टूल का रंग कुछ खास खाद्य पदार्थों या सप्लीमेंट्स का सेवन करने पर बदल सकता है। ऐसे में मल के रंग बदलने पर आपको ऐसा लग सकता है कि यह खून है। इसके उदाहरण इस प्रकार है:
- आयरन सप्लीमेंट (Iron Supplements)
- खाद्य पदार्थ जिनमें काले या लाल रंग का फूड कलर हो (Foods with Black or Red Food Coloring)
- बीटरूट या अन्य लाल सब्जियां (Beetroot and other Red Vegetables)
स्टूल में ब्लड के रिस्क फैक्टर क्या हैं (Symptoms of Blood in Stool)?
U.S. नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन (U.S. National Library of Medicine) के अनुसार ब्लैक और टारी स्टूल में दुर्गंध होना अपर डायजेस्टिव ट्रैक्ट (Upper Digestive Tract) में समस्या का लक्षण हो सकता है। यह अक्सर इस बात का संकेत होता है कि पेट, स्माल इंटेस्टाइन या कॉलन के राइट साइड में ब्लीडिंग हो रही है। अगर स्टूल में ब्लड (Blood in Stool) या पॉटी के रंग का बदलना, खून की उल्टी या चक्कर आना जैसी समस्याओं का सामना कर रहे हों तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लें। मल में मौजूद रक्त ब्राइट रेड, काला और टारी दिखाई दे सकता है। इस समस्या का जोखिम इन स्थितियों में बढ़ सकता है:
- पेट में दर्द या हिमोरॉइड्स का इतिहास होना (History of Stomach Bleeding or Hemorrhoids)
- पहले से ही पेप्टिक अल्सर होना (Had Previous Peptic Ulcers)
- इन्फ्लैमटॉरी बॉवेल डिजीज (Inflammatory Bowel Disease)
- कोलोरेक्टल या अपर GI कैंसर के लिए प्रीडिस्पोज्ड, जेनेटिक रिस्क (Genetic, Predisposed Risk for Colorectal or Upper GI Cancers)
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स्टूल में ब्लड का निदान कैसे किया जा सकता है? (Diagnosis of Blood in Stool)
जैसे ही आप अपने स्टूल में ब्लड (Blood in Stool) नोटिस करते हैं, तुरंत डॉक्टर की सलाह जरूरी है। आपके द्वारा ब्लीडिंग के बारे में दी गई जानकारी उनके लिए समस्या के निदान में मदद करेगी। जैसे अगर यह ब्लड काला या टारी (Tarry) है तो ऐसा अल्सर या डायजेस्टिव ट्रैक्ट के अपर पार्ट में होने वाली समस्या हो सकती है। ब्राइट रेड या मैरून रंग का स्टूल डायजेस्टिव ट्रैक्ट के निचले हिस्से की समस्या जैसे बवासीर की तरफ इशारा करती है।
मेडिकल हिस्ट्री या फिजिकल एग्जाम के बाद डॉक्टर आपको ब्लीडिंग का कारण जानने के लिए निम्नलिखित टेस्ट कराने के लिए कह सकते हैं:
नेसोगैस्ट्रिक लैवेज (Nasogastric Lavage)
यह टेस्ट अपर या लोअर डायजेस्टिव ट्रैक्ट (Lower Digestive Tract) में ब्लीडिंग के बारे में बताता है। इस प्रक्रिया में नाक के माध्यम से पेट में डाली गई ट्यूब से पेट के कंटेंट्स को निकालना भी शामिल है। अगर इससे पेट में ब्लीडिंग का कोई सबूत नहीं मिलता है तो इसका अर्थ है कि या तो ब्लीडिंग रुक गई है या डायजेस्टिव ट्रैक्ट के निचले हिस्से में है।
एसोफागोगैस्ट्रोडुओडेनोस्कॉपी यानी EGD (Esophagogastroduodenoscopy or EGD)
एसोफागोगैस्ट्रोडुओडेनोस्कॉपी यानी EGD वो प्रक्रिया है। जिसमें मुंह के माध्यम से और अन्नप्रणाली (Esophagus ) के नीचे पेट और पाचनांत्र (Duodenum) तक एक छोटे कैमरे के साथ एंडोस्कोप या लचीली ट्यूब को डालना शामिल है। डॉक्टर इसका प्रयोग ब्लीडिंग का स्रोत जानने के लिए करते हैं। एंडोस्कोपी (Endoscopy) का प्रयोग जांच के लिए छोटे टिश्यू सैम्पल्स को इकट्ठा करने के लिए किया जाता है।
कोलोनोस्कोपी (Colonoscopy)
यह प्रक्रिया एसोफागोगैस्ट्रोडुओडेनोस्कॉपी के जैसी होती है। फर्क यह है कि इसमें में कॉलन को देखने के लिए स्कोप को रेक्टम के माध्यम से इन्सर्ट किया जाता है। कोलोनोस्कोपी बायोप्सी (Colonoscopy Biopsy) के लिए टिश्यू सैम्पल्स को कलेक्ट करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
बेरियम एक्स-रे (Barium X-Ray)
बेरियम एक्स-रे वो प्रक्रिया है, जिसमे एक कंट्रास्ट मेटेरियल जिसे बेरियम कहा जाता है, का प्रयोग किया जाता है। ताकि एक्स-रे पर डायजेस्टिव ट्रैक्ट अच्छे से दिखाई दें। इस टेस्ट में मरीज को बेरियम को निगलने के लिए दिया जाता या रेक्टम में इन्सर्ट किया जा सकता है।
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रेडियोन्यूक्लाइड स्कैनिंग (Radionuclide Scanning)
रेडियोन्यूक्लाइड स्कैनिंग वो प्रक्रिया है जिसमे नस में थोड़ी सी मात्रा में एक रेडियोएक्टिव मटेरियल इन्सर्ट किया जाता है। इसके बाद एक खास कैमरे का प्रयोग कर के डायजेस्टिव ट्रैक्ट में ब्लड फ्लो की तस्वीरें ली जाती है ताकि जाना जा सके कि ब्लीडिंग कहां हो रही है।
एंजियोग्राफी (Angiography)
यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें एक खास डाई नस में इंजेक्ट की जाती है जिससे ब्लड वेसल्स एक्स-रे या कंप्यूटराइज्ड टोमोग्राफी स्कैन(CT Scan) पर साफ दिखाई देते हैं। यह प्रक्रिया ब्लीडिंग का पता लगाती है क्योंकि ब्लीडिंग साइट पर ब्लड वेसल्स से डाई का रिसाव होता है।
लैपरोटोमी (Laparotomy)
यह एक सर्जिकल प्रक्रिया है जिसमे डॉक्टर पेट की जांच करते हैं। इस तरीके का प्रयोग तब किया जाता है, जब ब्लीडिंग के बारे में जानने के अन्य टेस्ट फैल हो जाते हैं। इसके साथ ही डॉक्टर अन्य लैब टेस्ट भी करा सकते हैं जिससे स्टूल में ब्लड (Blood in Stool) के बारे में पता चल सके। यह टेस्ट क्लॉटिंग प्रॉब्लम (Clotting Problem), एनीमिया (Anemia) आदि के निदान के लिए किया जाता है।
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कैसे संभव है स्टूल में ब्लड का उपचार? (Blood in Stool Treatments)
डॉक्टर एक्यूट ब्लीडिंग को रोकने के लिए कई तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं। आमतौर पर एंडोस्कोपी का प्रयोग ब्लीडिंग की जगह पर केमिकल, ब्लीडिंग साइट का इलेक्ट्रिक करंट या लेजर के माध्यम से उपचार या ब्लीडिंग वेसल को किसी बैंड या क्लिप की मदद से बंद करने के लिए किया जाता है। अगर एंडोस्कोपी से यह ब्लीडिंग बंद नहीं होती है तो डॉक्टर एंजियोग्राफी का प्रयोग करते हैं ताकि ब्लड वेसल्स में दवा इंजेक्ट की जा सके और ब्लीडिंग को कंट्रोल किया जा सके।
तुरंत ब्लीडिंग को रोकने के साथ ही अगर जरूरी हो तो उस ब्लीडिंग के कारण का भी उपचार किया जाता है ताकि यह समस्या फिर से न हो। इसका उपचार कारण पर निर्भर करता है। जिसमें हेलिकोबैक्टर पाइलोरी इंफेक्शन (Helicobacter Pylori Infection) के उपचार के लिए एंटीबायोटिक दवाइयां या कोलाइटिस (Colitis) के उपचार के लिए एंटी-इन्फ्लामेट्री दवाईयां आदि शामिल हैं। पोलिप्स या कैंसर, इन्फ्लेमेटरी बॉवेल डिजीज (Inflammatory Bowel Disease) आदि समस्याओं के कारण खराब हुए कॉलन के हिस्से को निकालने के लिए सर्जरी की जरूरत हो सकती है
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स्टूल में ब्लड को कैसे करें मैनेज?
कारण के अनुसार आप इस समस्या का उपचार खुद भी कर सकते हैं। आपको इसके लिए केवल अपने लाइफस्टाइल में थोड़ा बदलाव लाना है। हाय फायबर युक्त आहार का सेवन करने से कब्ज दूर होती है जिससे बवासीर और एनल फिशर की समस्या में काफी राहत मिलती है। इसके साथ ही सिट्ज (Sitz bath) बाथ से भी इन बीमारियों में काफी हद तक आराम मिलता है। निदान के अनुसार डॉक्टर आपको यह उपचार कराने के लिए भी कह सकते हैं। अगर आपको पता है कि स्टूल में ब्लड (Blood in Stool) आने का कारण बवासीर है तो आप इन तरीकों से आसानी से इसका उपचार कर सकते हैं।
- बॉवेल मूवमेंट के बाद अपने एनस को साफ करने के लिए सूखे नहीं बल्कि थोड़े गीले टिश्यू का प्रयोग करें।
- हर बार मल त्याग के बाद पंद्रह मिनटों तक गर्म पानी के टब में बैठे या सिट्ज बाथ लें।
- अपनी डायट में फायबर की मात्रा बढ़ाएं।
- अधिक पानी और अन्य तरल पदार्थों का सेवन करें।
- ओवर-द-काउंटर स्टूल सॉफ्टनर का प्रयोग करें। लेकिन, इसका प्रयोग डॉक्टर की सलाह के बाद ही करें।
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स्टूल में ब्लड (Blood in Stool) एक चिंता का विषय होने के साथ ही किसी गंभीर समस्या की तरफ इशारा भी हो सकता है। हालांकि, हो सकता है कि यह समस्या हानिरहित हो और खुद ही ठीक हो जाए। लेकिन, अगर ब्लीडिंग लगातार हो रही है, तो डॉक्टर की सलाह लें। यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, अगर ब्लीडिंग के साथ दर्द भी हो रही हो। अगर कोई भी इस समस्या को अनुभव करता है, तो उसे तुरंत मेडिकल हेल्प की जरूरत हो सकती है। खासतौर पर अगर आप ब्लीडिंग के साथ थकावट, हार्ट बीट का तेज होना, चक्कर आना या सांस लेने में परेशानी अनुभव करें।
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