इम्प्लांटेशन क्रैम्पिंग (Implantation Cramping)
कुछ महिलाओं के लिए क्रैम्पिंग, प्रेग्नेंसी का पहला संकेत हो सकता है। यह एग के फर्टिलाइज होने के कारण होता है। इसे इम्प्लांटेशन क्रैम्पिंग (Implantation cramping) कहा जाता है।
यूटरिन ग्रोथ (Uterine Growth)
पहले दो ट्रायमेस्टर में लगातार यूटरिन ग्रोथ होती है, जिससे पेट में पुल्लिंग सेंसेशन हो सकती है। यह सेंसेशन क्रैम्पिंग का कारण बनती है।
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गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल इशूज (Gastrointestinal Issues)
प्रेग्नेंसी में क्रैम्पिंग (Cramping During Pregnancy) हार्मोनल लेवल में बदलाव के कारण भी हो सकती है। फर्स्ट ट्रायमेस्टर में हार्मोनल लेवल में बदलाव गैस, ब्लोटिंग और कब्ज की वजह बन सकता है। यह सभी गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल इशूज क्रैम्पिंग सेंसेशंस का कारण बन सकते हैं।
एक्टॉपिक प्रेग्नेंसी (Ectopic Pregnancy)
दुर्लभ मामलों में फर्स्ट ट्रायमेस्टर क्रैम्पिंग, एक्टॉपिक प्रेग्नेंसी के कारण भी हो सकती है। एक्टॉपिक प्रेग्नेंसी आमतौर पर वन-साइडेड क्रैम्पिंग, ब्लीडिंग, चक्कर आना या कंधे में दर्द आदि का कारण बनती हैं। इस स्थिति में तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।
प्रेग्नेंसी में क्रैम्पिंग: गर्भपात (Miscarriage)
गर्भपात आमतौर पर एग के असामान्य विकास के कारण होता है। इसके कारण भी गर्भावस्था में क्रैम्पिंग हो सकती है। अब जानते हैं सेकंड ट्रायमेस्टर में क्रैम्पिंग के बार में।
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सेकंड ट्रायमेस्टर और क्रैम्पिंग (Second trimester and cramping)
प्रेग्नेंट वीमेन सेकंड ट्रायमेस्टर में अन्य ट्रायमेस्टर्स के मुकाबले कम क्रैम्पिंग का सामना करती हैं। अगर गर्भ में एक से अधिक शिशु हों, तो उन्हें समस्या हो सकती है क्योंकि यूटरस बहुत अधिक बढ़ जाता है। सेकंड ट्रायमेस्टर में इसके कारण इस प्रकार हैं:
राउंड लिगमेंट पैन (Round Ligament Pain)
यह बिनाइन पैन तेरहवें हफ्ते के आसपास होती है, जब वो लिगामेंट्स जो यूटरस को सपोर्ट करते हैं, स्ट्रेच हो जाते हैं। क्योंकि, यूटरस ऊपर की ओर ग्रो होता है। राउंड लिगमेंट पैन आमतौर पर क्विक, शार्प और वन-साइडेड होती है।
यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शंस (Urinary Tract Infections)