कैंसर की बीमारी एक ऐसी बीमारी है जिसके नाम से ही लोगों के मन में डर पैदा होता है। दुनिया में 2 करोड़ से ज्यादा लोग इस गंभीर बीमारी की चपेट में हैं। हर साल 90 लाख व्यक्ति इस लिस्ट में जुड़ जाते हैं। वहीं प्रति वर्ष इसके चलते 40 लाख लोग अपनी जान गवां बैठते हैं। बात करें भारत की तो भारत में हर एक लाख लोगों में से 70 से 80 लोग इस बीमारी से ग्रसित हैं। यह शरीर के किसी भी अंग में हो सकता है। कैंसर एक व्यापक शब्द है जिसका इस्तेमाल कई विभिन्न बीमारियों का वर्णन करने के लिए किया जाता है। आमतौर पर यह तब होता है जब शरीर में असामान्य कोशिकाएं नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं।हेल्दी शरीर में खरबों कोशिकांए रोजाना विकसित और विभाजित होती हैं। ये हमारे शरीर को सुचारू रूप से काम करने के लिए बेहद जरूरी होती हैं
कैंसर की बीमारी (Cancer) क्या है?
कैंसर आज के समय में अधिक फैलने वाली बीमारी बनती जा रही है। इस बारे में डॉ अनिल हीरोर, हेड सर्जिकल ऑन्कोलॉजी, फोर्टिस अस्पताल मुलुंड और फोर्टिस हीरानंदानी अस्पताल, वाशी के डॉ अनिल हीरोर, हेड सर्जिकल ऑन्कोलॉजी का कहना है, “कैंसर एक घातक बीमारी है। सबसे ज्यादा चिंता का विषया यह है कि आजकल युवाओं में यह ज्यादा देखने को मिल रहा है। कैंसर में आसामन्य कोशिकाएं पनपने लगती हैं। स्वस्थ कोशिकाओं की एक लाइफ साइकिल होती है, जिसमें नई कोशिका बनती हैं और पूरानी नष्ट हो जाती हैं। इस प्रक्रिया में नई कोशिकाएं पुरानी या क्षतिग्रस्त कोशिकाओं की जगह ले लेती हैं क्योंकि वे नष्ट हो चुकी होती हैं। कैंसर इस प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करता है। डीएन में परिवर्तन के कारण कोशिकाओं में आसामान्य वृद्धि होती है, जिससे शरीर सामान्य रूप से कार्य नहीं कर पाता है।”
कैंसर की बीमारी 200 से अधिक प्रकार के होते हैं। कुछ कैंसर की बीमारी शरीर में बहुत धीरे बढ़ते हैं वहीं कुछ बहुत तेजी से बढ़ते हैं। ज्यादातर कैंसर शरीर के जिस हिस्से में होते हैं उसके नाम से जाने जाते हैं। जैसे ब्रेस्ट में होने वाले कैंसर को ब्रेस्ट कैंसर कहते हैं। ज्यादातर कैंसर ट्यूमर बनाते हैं लेकिन सभी ट्यूमर कैंसर वाले नहीं होते हैं।
नॉन-कैंसर ट्यूमर, बिनाइन ट्यूमर (benign tumor), या नॉन-मेलिग्नेंट ट्यूमर (non malignant tumor) शरीर के दूसरे हिस्से में नहीं फैलते हैं और न ही अन्य ट्यूमर बनाते हैं। जबकि कैंसर वाले ट्यूमर या मेलिग्नेंट ट्यूमर स्वस्थ कोशिकाओं को बाहर कर शरीर के कार्य में बाधा डालते हैं। इसके साथ ही शरीर के ऊतकों से पोषक तत्वों को निकालते हैं।
कैंसर मेटास्टेसिस प्रक्रिया के माध्यम से लगातार बढ़ता जाता है और फैलता जाता है, जिससे घातक कोशिकाएं लिमफेटिक और ब्लड वैसल्स के जरिए शरीर के दूसरे हिस्सों में नया ट्यूमर का निर्माण करता है।
कैंसर की बीमारी के प्रमुख प्रकार (Types of cancer)
कार्सिनोमा (carcinoma): कार्सिनोमा सबसे अधिक पाए जाने वाला कैंसर है। यह त्वचा, फेफड़े, स्तन, अग्न्याशय और अन्य अंगों और ग्रंथियों में उत्पन्न होता है।
सारकोमा (sarcoma): सारकोमा मांसपेशियों या हड्डी के टिशू से शुरू होता है। यह शरीर के किसी भी हिस्से में शुरू हो सकता है। शरीर के जिस हिस्से से इसकी शुरुआत होती है वहा सूजन और मामूली दर्द की शिकायत होती है। धीरे-धीरे उसके आसपास के अंगों पर असर पड़ने लगता है। सबसे ज्यादा सारकोमा कैंसर मांसपेशियों, जोड़ों और पेट में पनपता है।
मेलेनोमा (melanoma): मेलेनोमा एक तरह का स्किन कैंसर है जो बेहद खतरनाक होता है। इसकी शुरुआत तिल के रूप में होती है। वक्त के साथ यह स्किन के अंदर नसों, लिवर, दिमाग, हड्डियों, लंग्स तक पहुंच जाता है।
लिम्फोमा (lymphoma): लिम्फोमा कैंसर की शुरुआत इम्यून सिस्टम के लिम्फोसाइट सेल्स से होती है। ये सेल्स शरीर के कई हिस्सों में होती हैं। इस कैंसर में लिम्फोसाइट सेल्स अनियिंत्रित तरीके से बढ़ने लगती हैं।
ल्यूकेमिया (leukemia): ल्यूकेमिया एक तरह का ब्लड कैंसर होता है। इसमें शरीर में व्हाइट ब्लड सेल्स की संख्या में आसामान्य वृद्धि होने लगती है। इसके अलावा ब्लड सेल्स के साइज भी बदलने लगता है। ये मामले बढ़ती उम्र में ज्यादा देखने को मिलते हैं। इस कैंसर की बीमारी में शरीर की इम्यूनिटी अत्यधिक कमजोर हो जाती है, जिससे मामूली वायरस भी जान के लिए घातक साबित हो सकता है।
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पुरुषों में होनेवाले कैंसर के प्रकार (Cancer in men)
प्रोस्टेट कैंसर (Prostate Cancer) है एक गंभीर समस्या
अमेरिकन कैंसर सोसायटी में छपी एक स्टडी के मुताबिक प्रोस्टेट कैंसर पुरुषों में होनेवाला एक आम कैंसर है। इसका खतरा पुरुषों में उम्र के बढ़ने के साथ ही बढ़ता चला जाता है। आम तौर पर 65 की उम्र के आसपास लोगों में इस कैंसर का पता चलता है। साथ ही अगर व्यक्ति के परिवार में प्रोस्टेट कैंसर की हिस्ट्री रही हो, तो उन्हें प्रोस्टेट कैंसर होने के चांसेस बढ़ जाते हैं। प्रोस्टेट कैंसर (prostate cancer), पुरुषों की प्रोस्टेट ग्रंथि में होता है, जो अखरोट के आकार की होती है। ये ग्रंथि स्पर्म बनाने का काम करती है। प्रोस्टेट कैंसर बहुत तेजी से फैलता है और प्रोस्टेट के आसपास के अंगों को भी अपना शिकार बना लेता है।
प्रोस्टेट कैंसर में पेशाब करने में परेशानी, पेशाब का फ्लो कम हो जाना, स्पर्म में ब्लड आना, पेल्विक एरिया में दर्द और इरेक्टाइल डिसफंक्शनिंग (erectile dysfunction) जैसे लक्षण देखे जा सकते हैं।
पुरुषों में कैंसर: लंग कैंसर (Lung Cancer) से बचाव जरूरी
जैसा कि सभी जानते हैं आज के दौर में स्मोकिंग एक आम लाइफस्टाइल चॉइस बन गई है। ये एक ऐसा व्यसन है, जो व्यक्ति को अपनी गिरफ्त में लेता है और फिर इससे पीछा छुड़ाना मुश्किल हो जाता है। इन्ही आदतों के चलते पुरुषों में लंग कैंसर की समस्या देखी जा सकती है। लंग कैंसर (lung cancer) लंग में अचानक से कोशिकाएं डिवाइड होना शुरू हो जाती हैं तो इस कारण से ट्यूमर बन जाता है। जिसके कारण व्यक्ति को सांस लेने में समस्या होने लगती है। अगर व्यक्ति का सही समय पर इलाज हो जाए तो इस समस्या से निपटा जा सकता है। कैंसर ऐसी बीमारी है जो शरीर में धीरे-धीरे फैलती है और इसके लक्षणों का अक्सर देरी से ही पता चलता है। लंग कैंसर के साथ भी ऐसा ही होता है। इसलिए समय रहते इसके लक्षणों पर ध्यान देना और भी जरूरी बन जाता है।
लंग कैंसर के लक्षणों में भूख कम लगना, लिम्फ नोड्स में सूजन, किसी व्यक्ति की आवाज में बदलाव आ जाना, आवाज का बैठ जाना, चेस्ट में ब्रोंकाइटिस या निमोनिया की समस्या हो जाना, खांसी की समस्या हो जाना, सांस आने में समस्या होना, बिना किसी कारण के सिरदर्द महसूस होना, अचानक वजन घट जाना, सांस लेने के दौरान घरघराहट महसूस होना आदि देखे जा सकते हैं।
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पुरुषों में कैंसर : कोलोरेक्टल कैंसर (colorectal cancer) के लक्षणों को न करें अनदेखा
कोलोरेक्टल कैंसर कोलोन या रेक्टम से शुरू होता है। अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुसार, 22 पुरुषों में 1 और 24 महिलाओं में से 1 को कोलोरेक्टल कैंसर होता है। ये कैंसर कई कारणों के चलते हो सकता है, जिसमें मोटापा, शारीरिक गतिविधि की कमी, रेड मीट या प्रोसेस्ड मीट का अधिक सेवन, शराब का ज्यादा सेवन, स्मोकिंग, वृद्धावस्था या कोलोरेक्टल कैंसर की पारिवारिक हिस्ट्री आदि कारण देखे गए हैं। यदि समय पर कोलोरेक्टल कैंसर की जांच करवा ली जाए, तो इसे फैलने से रोका जा सकता है। जिससे इसका इलाज संभव हो सकता है।
कोलोरेक्टल कैंसर होने पर कई लक्षणों को आम तौर पर देखा जाता है, जिसमें दस्त, कब्ज, स्टूल में खून, पेट दर्द, पेट में सूजन, उल्टी, थकान, वजन कम होना, पेट में एक गांठ, एनीमिया, आदि लक्षण देखे जा सकते हैं।
पुरुषों में कैंसर : ब्लैडर कैंसर (Bladder cancer) को समय पर डायग्नोज करना है जरूरी
ब्लैडर कैंसर महिलाओं के मुकाबले पुरुषों में अधिक देखा जाता है। इसे पित्त का कैंसर भी कहा जाता है। इसकी शुरुआत ब्लैडर से होती है और ये धीरे-धीरे अन्य अंगों तक फैलने लगता है। यदि शुरुआती स्टेज में इसे पता लगा लिया जाए, तो इसका इलाज आसानी से किया जा सकता है। लेकिन ज्यादातर ब्लैडर कैंसर के बारे में आखिरी स्टेज में मालूम होता है, जब इसका इलाज बेहद मुश्किल होता है। ब्लैडर कैंसर का पता लगाना भी बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि ज्यादातर इसके किसी तरह के कोई लक्षण नजर नहीं आते हैं।
इंडियन पापुलेशन डेमोंस्ट्रेटेस (Indian population demonstrates) के आंकड़ों के मुताबिक ब्लैडर के कैंसर के सबसे अधिक मामले उत्तर और पूर्वी भारत में पाए जाते हैं। दी नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम ऑफ इंडिया (The National Cancer Registry Programme of India) से यह सामने आया है कि उत्तरी भारत में 1 लाख पुरुषों में से 4.5 पुरुष ब्लैडर के कैंसर से ग्रसित होते हैं। जबकि महिलाओं में ये आंकड़े और अधिक बढ़ कर 1 लाख में 10.1 हो जाते हैं।
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ब्लैडर के कैंसर के लक्षणों में पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द होना (Pain above the stomach area), पीलिया (Jaundice), बुखार (Fever), जी मिचलाना और उल्टी (Nausea and vomiting), सूजन, पेट में गांठ (Abdominal lumps), पेशाब का गहरा रंग (Dark urine), वजन घटना (Weight loss) आदि लक्षण देखे गए हैं।
महिलाओं में कैंसर के प्रकार
स्तन कैंसर (Breast Cancer)
स्तन कैंसर (Breast Cancer) एक प्रकार का घातक ट्यूमर है, जो स्तन की कोशिकाओं (Cells) में शुरू होता है। ब्रेस्ट कैंसर एक घातक ट्यूमर कोशिकाओं का समूह है, जो तेजी से आसपास के टिश्यू (Tissues) में विकसित हो जाता है और शरीर के दूसरे क्षेत्रों में भी फैल सकता है। यह बीमारी लगभग पूरी तरह से महिलाओं में होती है लेकिन, कुछ ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जिसमें पुरुष भी इस बीमारी से ग्रस्त हैं। महिलाओं में स्तन कैंसर बहुत आम है। एक जीवनकाल में, हर आठ में से एक महिला को यह बीमारी प्रभावित करती है। इस बीमारी के जोखिम कारणों को कम करके इसे रोका जा सकता है।
वजायनल कैंसर (Vaginal cancer)
जब कैंसर वजायना में होता है तो इसे वजायनल कैंसर कहा जाता है। वजायना को बर्थ कैनाल भी कहा जाता है। यह यूट्ररस के नीचे एक ट्यूब नुमा रचना होती है जो शरीर के बाहरी तरफ होती है। जब कैंसर वल्वा में होता है तो इसे वल्वर कैंसर कहा जाता है। वल्वा फीमेल जेनिटल ऑर्गन का आउटर पार्ट है। इसके ऊपर दो स्किन फोल्ड होते हैं जिन्हें लेबिया कहते हैं। वल्वर कैंसर लेबिया के अंदर के किनारे पर होता है। वजायनल और वल्वर कैंसर बहुत रेयर हैं। हालांकि सभी महिलाओं को इन कैंसर का रिस्क होता है, लेकिन केवल कुछ को ही यह कैंसर होता है। आपको वजायनल कैंसर होगा या नहीं इसके बारे में जानने का कोई तरीका नहीं है। हालांकि कुछ फैक्टर्स इसके होने की संभावना को बढ़ा सकते हैं।
कैंसर की बीमारी के लक्षण क्या हैं? (Symptoms of Cancer)
कैंसर की बीमारी के लक्षण जरूरी नहीं सभी में एक जैसे नजर आएं। यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि इससे शरीर का कौन सा हिस्सा प्रभावित है।
कैंसर की बीमारी के कुछ सामान्य लक्षण:
- थकान का एहसास (Fatigue)
- लगातार खांसी या सांस लेने में तकलीफ होना (Persistent cough or trouble breathing)
- गांठ (Lump)
- वजन में बदलाव होना (Weight changes)
- निगलने में परेशानी होना (Difficulty swallowing)
- आवाज बैठना (Hoarseness)
- स्किन के नीचे कुछ गाढ़ा महसूस होना (Thickenig under skin)
- त्वचा में बदलाव, जैसे त्वचा का पीला होना, काला पड़ना या लाल होना (Skin changes, such as yellowing, darkening or redness of the skin)
- घाव का ठीक न होना (sores that won’t heal)
- आंत्र या ब्लैडर की आदतों में परिवर्तन (Changes in bowel or bladder habits)
- खाने के बाद बेचैनी होना (discomfort after eating)
- लगातार मांसपेशियों या जोड़ों का दर्द (muscle or joint pain
Persistent)
- रात को पसीना आना (night sweats)
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कब दिखाएं डॉक्टर को?
यदि आपको उपरोक्त बताए लक्षणों में से या शरीर में किसी तरह का बदलाव नजर आए जो आपकी चिंता का कारण बन रहा हो तो तत्काल डॉक्टर से अपॉइंटमेंट लें। कई बार बीमारियों के लक्षण हर व्यक्ति में भिन्न नजर आते हैं। ऐसे में चिकित्सा परामर्श लेना सबसे बेहतर है।
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कैंसर की बीमारी के क्या कारण हैं? (Causes of Cancer)
आमतौर पर यह जानना संभव नहीं है कि एक व्यक्ति में कैंसर की बीमारी क्यों विकसित होता है और दूसरे में नहीं। लेकिन कुछ शोध में ऐसे जोखिम कारक खे बारे में बताया गया है जो किसी व्यक्ति में कैंसर की बीमारी के विकास की संभावना को बढ़ा सकते हैं। जोखिम वाले कारकों में रसायनों या अन्य पदार्थों के साथ-साथ कुछ आदते भी शामिल हैं। इनमें वे चीजें भी शामिल हैं जिन्हें लोग नियंत्रित नहीं कर सकते हैं, जैसे उम्र और फैमिली हिस्ट्री। कुछ कैंसर फैमिली हिस्ट्री के कारण कैंसर सिंड्रोम का संकेत हो सकते हैं।
नीचे दी गई सूची में कैंसर के लिए सबसे अधिक संदिग्ध जोखिम कारक शामिल हैं। इनमें कुछ जोखिम कारक ऐसे हैं जिनसे बचा जा सकता है। वहीं कुछ से बचा नहीं जा सकता जैसे उम्र। किसी की उम्र को कभी रोका नही जा सकता है।
- आयु (Age): कैंसर को विकसित होने में दशकों लग सकते हैं। इसलिए कैंसर से ग्रसित ज्यादातर लोग 65 और उससे अधिक उम्र के होते हैं।
- एल्कोहॉल (Alcohol) : एल्कोहॉल का सेवन करने भोजन नली, श्वास नली, लिवर या तालु में कैंसर की बीमारी हो सकता है।
- परिवार का इतिहास (family history): यदि आपके परिवार में कैंसर की बीमारी आम है तो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक म्युटेशन ट्रांसफर हो सकते हैं, जो कैंसर के जोखिम को बढ़ाते हैं। फैमिली हिस्ट्री से मिले म्यूटेशन का पता जेनेटिक टेस्टिंग से लगाया जा सकता है। एक बात का खास ख्याल रखें कि इनहेरिटेड जेनेटिक म्यूटेशन का मतलब यह नहीं है कि आपको कैंसर की बीमारी हो जाएगी
- कैंसर-कारण पदार्थ (Cancer-Causing Substances): कुछ रसायनों और खतरनाक पदार्थों के संपर्क में आने से कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। इनमें एस्बेस्टस (asbestos), निकल (nickel), कैडमियम (cadmium), रेडॉन (radon), विनाइल क्लोराइड (vinyl chloride), बेंजिडीन (benzidene) जैसे कार्सिनोजेन्स शामिल हैं।
- क्रोनिक इन्फलामेशन (Chronic Inflammation)
- पर्यावरण (Environment): आपके आस-पास के वातावरण में नुकसानदेह केमिकल हो सकते हैं जो कैंसर के खतरे को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं।
- आहार (Diet)
- हॉर्मोन (Hormones)
- हेल्थ कंडिशन (Health Condition): कुछ पुरानी स्वास्थ्य स्थितियां, जैसे कि अल्सरेटिव कोलाइटिस कैंसर के विकास के जोखिम को बढ़ा सकती हैं।
- इम्यूनोसप्रेशन (Immunosuppression)
- इनफेक्शियस एजेंट (Infectious Agents) : इनफेक्शियस एजेंट जैसे वायरस, बैक्टीरिया और पैरासाइट कैंसर के खतरे को बढ़ाते हैं।
- स्मोकिंग (Smoking): स्मोकिंग करने से मुंह, फेंफडे, पेट, गले और मूत्राशय का कैंसर होने की संभावना होती है।
- मोटापे की समस्या (Obesity)
- रेडिएशन (Radiation)
- सूरज की रोश्नी (Sunlight)
- तम्बाकू (Tobacco): तम्बाकू की सेवन, पान मसाला व गुटका खाने से मुंह, खाने की नली, पेट, जीभ, गले, पेनक्रियाज व गुर्दे का कैंसर हो सकता है।
कैंसर की बीमारी (Cancer) के बारे में कैसे पता लगाएं?
कैंसर की बीमारी का पता लगाने के लिए डॉक्टर निम्नलिखित में से कोई टेस्ट करने की सलाह दे सकते हैं:
फिजिकल एग्जाम (Physical exam): हो सकता है डॉक्टर को आपके शरीर में कई गांठ महसूस हो जो ट्यूमर का संकेत दे सकती है। फिजिकल एगजाम के दौरान हो सकता है वह असामान्यताओं की तलाश करें जैसे त्वचा की रंगत बदलना या किसी अंग का बढ़ना आदि। ये कैंसर होने का संकेत हो सकता है।
लेबोरेटरी टेस्ट (Laboratory tests): लेबोरेटरी टेस्ट जैसे यूरिन या ब्लड टेस्ट करा सकते हैं। इसमें डॉक्टर उन खामियों का पता लगा पाएंगे जो कैंसर का कारण हो सकते हैं। जैसे कॉमन ब्लड टेस्ट कराने से बल्ड काउंट मालूम होता है। ल्यूकेमिया से पीड़ित लोगों की रिपोर्ट में व्हाइट ब्लड सेल्स का काउंट असामान्य हो सकता है।
इमेजिंग टेस्ट (Imaging Test): इमेजिंग टेस्ट में आपके आंतरिक अंगों और हड्डियों की जांच होती है। इमेजिंग परीक्षणों में सीटी स्कैन का टेस्ट, बोन स्कैन, एमआरआई, पीईटी स्कैन, अल्ट्रासाउंड की प्रोसेस और एक्स-रे शामिल होते हैं।
बायोप्सी (Biopsy): बायोप्सी में टेस्ट के लिए डॉक्टर बारीकी से जांच के लिए शरीर से टिश्यू का सैंपल लेते हैं। सैंपल लेने के भी कई तरीके हैं। आपके लिए कौन-सा बायोप्सी का तरीका ठीक है यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपको कौन-सा कैंसर है।
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कैंसर को कैसे बचा जा सकता है? (Cancer Prevention)
वैसे तो कैंसर से बचाव का कोई निश्चित तरीका नहीं है। लेकिन शोधकर्ताओं ने इस खतरनाक बीमारी के जोखिम को कम करने के कई तरीकों के बारे में बताया है, जैसे:
धूम्रपान न करें: यदि आप सिगरेट पीते हैं तो उसे बंद कर दें। स्मोकिंग सिर्फ लंग्स कैंसर से ही नहीं और भी कई कैंसर से जुड़ा हुआ है। धूम्रपान न करके आप इस रोग के खतरे को कम कर सकते हैं।
हेल्दी डायट लें: अपनी डायट में सब्जियों और फलों को ज्यादा शामिल करें।
रोजाना व्यायाम करें: रोजाना एक्सरसाइज करके भी इसके जोखिम को कम किया जा सकता है। प्रतिदिन आधा घंटा एक्सरसाइज जरूर करें ।
धूप में ज्यादा न रहें: सूरज से आने वाली हानिकारक अल्ट्रावायलेट किरणें स्किन कैंसर के जोखिम को बढ़ाती हैं। इसलिए जितना हो सके धूप में जाने से बचें। साथ ही बाहर निकलते समय ऐसे कपड़े पहनें जिससे पूरा शरीर ढका हुआ हो और सनस्क्रीन लगाएं।
अपने वजन को मेंटेन करके रखें: ओवरवेट या मोटापे से ग्रसित होने से भी इसकी संभावना बढ़ती है। इसलिए हेल्दी डायट और रोजाना एक्सरसाइज करके अपने वजन को मेंटेन रखें।
एल्कोहॉल का सेवन न करें: शराब पीना हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है यह तो हम सभी जानते हैं। कई शोध के अनुसार, इसके सेवन से मुंह, ओसोफेगल, लिवर, कोलोरेक्टल और ब्रेस्ट कैंसर का जोखिम बढ़ जाता है।
स्क्रीनिंग टेस्ट: समय समय पर स्क्रीनिंग टेस्ट कराते रहें। इससे शरीर में बढ़ने वाली आसामान्य कोशिकाओं से जुड़ी जानकारी मिल सकेगी। जिससे डॉक्टर को आपकी मेडिकेशन निर्धारित करने में मदद होगी।
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कैंसर का उपचार कैसे किया जाता है? (Cancer treatment)
कैंसर मालूम होने के बाद डॉक्टर इसकी स्टेज का पता लगाते हैं। स्टेज का पता लगाने के बाद उसी अनुसार ट्रीटमेंट दिया जाता है। आमतौर पर कैंसर की पहली से लेकर चार स्टेज होती हैं। पहली स्टेज में इसका पता लगने पर आसानी से इलाज कर छुटकारा पाया जा सकता है।
कैंसर के इलाज के लिए नीचे बताएं ट्रीटमेंट ऑप्शन का उपयोग किया जाता है:
- सर्जरी (Surgery): सर्जरी इसलिए की जाती है जिससे जितना हो सके शरीर से कैंसर को हटा दिया जाए।
- कीमोथेरेपी (Chemotherapy): कीमोथेरेपी के जरिए कैंसर की कोशिकाओं को नष्ट किया जाता है। इसके साथ ही कैंसर को खत्म करने वाली दवाएं दी जाती हैं।
- रेडिएशन थेरेपी (Radiation therapy): रेडिएशन थेरेपी में हाई पावर एनर्जी बीम का इस्तेमाल कर कैंसर सेल्स को नष्ट किया जाता है।
- बोन मैरो ट्रांसप्लांट(Bone marrow transplant): इसे स्टेम सेल ट्रांसप्लांट भी कहा जाता है। बोन मैरो आपके हड्डियों के अंदर का पदार्थ होता है जो ब्लड सेल्स को बनाता है। इसमें रोग ग्रस्त या क्षतिग्रस्त बोन मैरो को हेल्दी स्टेम के साथ रिपेयर किया जाता है।
- इम्यूनोथेरेपी (Immunotherapy): इम्यूनोथेरेपी को बायोलॉजिकल थेरेपी भी कहते हैं। इसमें इम्यून सिस्टम के जरिए कैंसर से लड़ाई लड़ी जाती है।
- हॉर्मोन थेरेपी (Hormone therapy): कुछ प्रकार के कैंसर आपके शरीर के हॉर्मोन द्वारा हो जाते हैं। जैसे ब्रेस्ट कैंसर और प्रोस्टेट कैंसर।
- टारगेटेड ड्रग थेरेपी (Targeted drug therapy)
कैंसर और इसके उपचार में कई जटिलताएं हो सकती हैं, जिनमें शामिल हैं:
दर्द (Pain): कैंसर या कैंसर के इलाज के कारण आपको दर्द हो सकता है। हालांकि सभी कैंसर दर्दनाक नहीं होते हैं। दवाओं से आप कैंसर के कारण होने वाले दर्द से राहत पा सकते हैं।
सांस लेने में दिक्कत (Difficulty breathing): कैंसर या कैंसर के इलाज के दौरान हो सकता है आपको सांस की कमी का एहसास हो। उपचार से आपको इससे राहत मिल सकती है।
थकान (Fatigue): कैंसर पेशेंट्स में थकान की समस्या के कई कारण होते हैं लेकिन इसे मैनेज किया जा सकता है। कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी में थकान होना आम है।
शरीर में रासायनिक परिवर्तन (Chemical changes in body): कैंसर आपके शरीर में सामान्य रासायनिक संतुलन को डिस्टर्ब कर सकता है औऱ जोखिम को बढ़ा सकता है। रासायनिक असंतुलन के लक्षणों में अत्यधिक प्यास, लगातार यूरीन, कब्ज और कंफ्यूजन शामिल हो सकते हैं।
वजन कम होना (Weight loss): कैंसर सामान्य कोशिकाओं से भोजन चुराता है और उन्हें पोषक तत्वों से वंचित करता है। कई लोगों के कैंसर के इलाज के दौरान भारी डोसेज और थेरेपी के कारण वजन तेजी से गिर जाता है।
मतली (Nausea): कुछ कैंसर और कैंसर के उपचार मतली की स्थिति पैदा करते हैं। आपका डॉक्टर इस बात का अनुमान लगा सकता है कि उपचार के दौरान आपको मतली की दिक्कत होने की संभावना है। ऐसे में वह आपको दवा के जरिए इसे रोकने में मदद कर सकते हैं।
डायरिया और कब्ज (Diarrhea or constipation): कैंसर और कैंसर के इलाज से आपको डायरिया या कब्ज की शिकायत हो सकती है।
ब्रेन और नर्वस सिस्टम संबंधित परेशानियां(Brain and nervous system problems): कैंसर आस-पास की नसों पर दबाव डाल सकता है और आपके शरीर के एक हिस्से में दर्द या कार्य में बाधा डाल सकता है। मस्तिष्क को शामिल करने वाले कैंसर में सिरदर्द, शरीर में कमजोरी और स्ट्रोक की समस्या जैसे लक्षण हो सकते हैं।
कैंसर का वापस होना (Cancer that returns): कैंसर के ठीक होने के बाद उसके वापस होने की भी संभावना होती है। इसके लिए अपने डॉक्टर से बात करें कि कैसे आप कैंसर के वापस आने के खतरे को कम कर सकते हैं। कैंसर के वापस आने को ट्रेक करने के लिए समय समय पर स्कैन और टेस्ट कराते रहें।
हेयर लॉस (Hair loss): कैंसर के इलाज के लि कीमोथेरेपी काफी प्रचलित है। कीमो में कैंसर युक्त कोशिकाओं को नष्ट किया जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान बालों की जड़े कमजोर हो जाती हैं, जिस वजह से हेयरफॉल होता है। कैंसर के ट्रीटमेंट में दी जाने वाली कई दवाओं के साइड इफेक्ट से भी बाल झड़ने लगते हैं।
कैंसर की बीमारी के इलाज में होने वाली परेशानियों को कम करने में मदद करेंगी ये टिप्स:
एक्सरसाइज और कैंसर की बीमारी (Exercise and Cancer)
कैंसर से पीड़ित लोग एक्सरसाइज करके थकान, मांसपेशियों में तनाव और चिंता को नियंत्रित कर सकते हैं। इसके लिए आप सुबह सैर करने जा सकते हैं या स्वीमिंग भी ट्राय कर सकते हैं। ऐसा करने से आप बेहतर महसूस करेंगे। कई शोध में, कैंसर के उपचार के साथ एक्सरसाइज करने के अच्छे परिणाम देखे गए हैं। यदि आप कैंसर के इलाज के साथ एक्सरसाइज का प्लान कर रहे हैं तो ध्यान रखें कि आप ऐसा अपने चिकित्सक की देखरेख में ही करें।
न्युट्रिशन, डायट और कैंसर (Nutrition, Diet, and Cancer)
रिसर्च के अनुसार, न्यूट्रिशन कैंसर की रोकथाम में भूमिका निभा सकता है। कई शोधों के अनुसार कैंसर के कई मामले खानपान की आदत से जुड़े होते हैं। जैसे कोलोरेक्टल कैंसर उन लोगों में ज्यादा होता है जो आहार में सब्जियों और फलों की जगह रेड मीट ज्यादा खाते हैं।
माइंड थेरेपी और कैंसर (Mind Therapy and Cancer)
कैंसर पेशेंट्स पर किए गए एक शोध के अनुसार, माइंड थेरेपी से कैंसर पेशेंट्स के बिहेवियर में सुधार देखने को मिले हैं। उनके दर्द, मतली, उल्टी और एंग्जायटी में भी सुधार हुआ। काउंसलिंग में अपनी परेशानी बताकर उन्हें रिलैक्स महसूस होता है। ये थेरेपी उनके अकेलेपन और चिंता को दूर कर उनकी रिकवरी में मदद करती है।
एक्यूपंक्चर और एक्यूप्रेशर (Acupuncture and Acupressure)
कैंसर के इलाज के दौरान होने वाली परेशानियों को कम करने के लिए एक्यूपंक्चर और एक्यूप्रेशर मदद कर सकते हैं। हालांकि ये बीमारी को ठीक करने का दावा नहीं करते हैं, लेकिन कई शोध में यह पुष्टि हुई है कि ये ट्रीटमेंट के दौरान होने वाले लक्षणों और दुष्प्रभावों को कम करने में मदद करते हैं।
कैंसर से लड़ने के लिए हर्ब्स (Herbs to Fight Cancer)
कई ऐसे हर्ब्स हैं जो कैंसर के लक्षणों को दूर करने में मदद करते हैं। जैसे कैंसर के इलाज के दौरान उल्टी की शिकायत होता है। इसके लिए जिंजर और पेपरमिंट टी पीने की सलाह दी जाती है।
उपरोक्त दी गई जानकारी चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है। अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से परामर्श जरूर करें।