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रसल सिल्वर सिंड्रोम : इस कंडिशन में हो सकती है बच्चे के विकास में देरी, समय रहते इसे पहचानना है जरूरी

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. हेमाक्षी जत्तानी · डेंटिस्ट्री · Consultant Orthodontist


Nikhil deore द्वारा लिखित · अपडेटेड 02/12/2021

    रसल सिल्वर सिंड्रोम : इस कंडिशन में हो सकती है बच्चे के विकास में देरी, समय रहते इसे पहचानना है जरूरी

    शिशु का सही विकास माता-पिता के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय होता है। इसके लिए माता पिता हर संभव कोशिश करते हैं। लेकिन कई ऐसे डिसऑर्डर या सिंड्रोम होते हैं, जिन्हें न केवल पहचानना मुश्किल होता है, बल्कि इनसे पीड़ित बच्चों को जीवन में कई मुश्किलों का भी सामना करना पड़ता है। इन डिसऑर्डर्स के कारण बच्चों की ग्रोथ नहीं हो पाती है या कुछ स्थितियों में तो वो कुछ भी समझने या बोलने तक में सक्षम नहीं होते। आज हम ऐसे ही एक सिंड्रोम के बारे में बात करने वाले हैं, जिसे रसल सिल्वर सिंड्रोम (Russell Silver Syndrome) कहा जाता है। अगर आप इसके बारे में नहीं जानते हैं, तो इसके बारे में आपको जानकारी होना बेहद जरूरी है। जानिए क्या हैं रसल सिल्वर सिंड्रोम (Russell Silver Syndrome)? इसके उपचार के बारे में जानना न भूलें। सबसे पहले जानते हैं कि क्या है यह सिंड्रोम?

    रसल सिल्वर सिंड्रोम (Russell Silver Syndrome) क्या है?

    रसल सिल्वर सिंड्रोम (Russell Silver Syndrome)

    रसल सिल्वर सिंड्रोम (Russell Silver Syndrome) एक ग्रोथ डिसऑर्डर है, जो शिशु के जन्म से पहले और बाद में स्लो ग्रोथ का कारण बनता है। इस स्थिति से पीड़ित बच्चों का वजन कम होता है। ऐसे बच्चे सामान्य रूप से ग्रो होने में असमर्थ होते हैं। यही नहीं, उनका वजन भी सामान्य बच्चों की तरह नहीं बढ़ता है। ऐसे बच्चों की हेड ग्रोथ असामान्य होती है। उनका सिर, शरीर की तुलना में बड़ा और असामान्य लगता है। रसल सिल्वर सिंड्रोम (Russell Silver Syndrome) से प्रभावित बच्चे पतले होते हैं और उन्हें भूख बहुत कम लगती है

    इससे पीड़ित कुछ बच्चों को लो ब्लड शुगर (Low Blood Sugar) की समस्या भी हो सकती है। इस सिंड्रोम से प्रभावित बच्चे छोटे होते हैं, उनका चेहरा ट्रायएंगुलर होता है। उनके फीचर्स भी सामान्य बच्चों से अलग होते हैं जैसे उनकी ठोड़ी चौड़ी होती है और जबड़ा छोटा होता है आदि। इस ग्रोथ डिसऑर्डर के अन्य फीचर्स में छोटी उंगली का मुड़ा हुआ होना, शरीर के कुछ हिस्सों का असामान्य होना और डायजेस्टिव सिस्टम एब्नॉर्मलटिस (Digestive System Abnormalities) आदि शामिल हैं। रसल सिल्वर सिंड्रोम (Russell Silver Syndrome) देरी से विकास, स्पीच और भाषा की समस्याओं और सीखने की अक्षमता के बढ़ते जोखिम से भी जुड़ा हुआ है।

    नैशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफोर्मेशन (National Center for Biotechnology Information) के अनुसार यह एक हेट्रोजिनियस कंडिशन (Heterogeneous Condition )है। आनुवंशिक परीक्षण लगभग 60% प्रभावित व्यक्तियों में क्लीनिकल निदान की पुष्टि करता है। इस सिंड्रोम से पीड़ित वयस्कों की ऊंचाई भी कम होती है। अब जानिए क्या हैं इसके लक्षण?

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    रसल सिल्वर सिंड्रोम के लक्षण (Symptoms of Russell Silver Syndrome)

    रसल सिल्वर सिंड्रोम (Russell Silver Syndrome) के कई लक्षण होते हैं, जिनमें से अधिकतर बच्चों में जन्म के समय नजर आते हैं और अन्य उनके बचपन में दिखाई देते हैं। इससे प्रभावित अधिकतर लोग सामान्य रूप से बुद्धिमान होते हैं, लेकिन उन्हें हर चीज को सीखने में थोड़ा समय लगता है। वो डेवलपमेंट माइलस्टोन को प्राप्त करने में सामान्य से अधिक समय लेते हैं। रसल सिल्वर सिंड्रोम (Russell Silver Syndrome) के लिए प्रमुख लक्षण हो सकते हैं:

    • इंटरयूट्रीयेन ग्रोथ रेटार्डेशन (Intrauterine Growth Retardation) / जन्म के समय छोटा कद (10 प्रतिशत से कम लोगों में यह लक्षण देखने को मिलते हैं)
    • लंबाई या ऊंचाई के लिए जन्म के बाद की औसत से कम ग्रोथ (तीसरे प्रतिशत से भी कम लोगों में यह लक्षण देखने को मिलते हैं)
    • सामान्य हेड सरकम्फ्रेंस (General Head Circumference)
    • लिंब्स, शरीर, या चेहरे में एसिमिट्री (Asymmetry in the limbs, body, or face)
    • बोलने में समस्या (Speech difficulties)
    • कम वजन (Low weight)

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    रसल सिल्वर सिंड्रोम (Russell Silver Syndrome) के सामान्य लक्षण इस प्रकार हो सकते हैं:

    • बाजुओं का स्पैन कम होना (Short arm span)
    • छोटी उंगली का अस्‍वाभाविक टेढ़ापन (Fifth-finger clinodactyly)
    • चेहरे का आकार ट्रायएंगुलर होना (Triangular shaped face)
    • माथे का चौड़ा होना (Prominent forehead)

    इसके अन्य लक्षण इस प्रकार हो सकते हैं:

    दुर्लभ मामलों में रसल सिल्वर सिंड्रोम (Russell Silver Syndrome), कार्डियक डिफेक्ट्स  (cardiac defects) जैसे जन्मजात हृदय रोग (Congenital heart disease) और अंडरलायिंग मलिग्नैंट कंडिशंस (Underlying malignant conditions) जैसे  विल्म्स ट्यूमर (Wilms’ Tumor)  से भी जोड़ कर देखा जाता है। अब जानिए क्या हैं इसके कारण?

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    रसल सिल्वर सिंड्रोम के कारण (Causes of Russell Silver Syndrome)

    रसल सिल्वर सिंड्रोम (Russell Silver Syndrome) से पीड़ित अधिकतर लोगों में इसकी कोई फैमिली हिस्ट्री नहीं होती है। रसल सिल्वर सिंड्रोम (Russell Silver Syndrome) के 7 प्रतिशत मामले एक विशेष क्रोमोजोम के डिफेक्ट के कारण होते हैं। इसके सात से लेकर दस प्रतिशत मामले क्रोमोजोम 7 के मैटरनल युनिपैरेंटल डायसोमी (Maternal uniparental disomy) के कारण होते हैं। जिसमें बच्चा हरेक पैरेंट से क्रोमोजोम 7 प्राप्त करने की जगह दोनों नंबर 7 क्रोमोसोम्स को अपने मां से प्राप्त करता है। इस बीमारी से पीड़ित कुछ लोग क्रोमोजोम 11 से भी प्रभावित हो सकते हैं। हालांकि, इस समस्या से पीड़ित अधिकतर लोगों में इसके अंडरलायिंग जेनेटिक डिफेक्ट्स के कारणों के बारे में जानकारी नहीं होती है। पुरुष और महिलाएं दोनों इस समस्या से समान रूप से प्रभावित होते हैं। जानिए कैसे होता है इसका निदान?

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    रसल सिल्वर सिंड्रोम का निदान (Diagnosing Russell Silver Syndrome)

    रसल सिल्वर सिंड्रोम (Russell Silver Syndrome) के निदान के लिए डॉक्टर को कई स्पेशलिस्ट्स से सलाह लेनी पड़ती है। रसल सिल्वर सिंड्रोम (Russell Silver Syndrome) के लक्षणों का निदान बचपन और अर्ली चिलडुल में किया जाना जरूरी है। क्योंकि, बाद में इसका निदान मुश्किल हो जाता है। अपने बच्चे में इस स्थिति में आपको सबसे पहले डॉक्टर से यह जानना होगा कि आपको जांच के लिए किन डॉक्टर्स की सलाह लेनी चाहिए। डॉक्टर आपको जेनेटिसिस्ट (Geneticist), गैस्ट्रोएन्टेरोलॉजिस्ट (Gastroenterologist), न्यूट्रिशनिस्ट (Nutritionist) के पास जाने की सलाह दे सकते हैं। इस सिंड्रोम को अन्य कुछ समस्याओं के रूप में भी पहचाना जा सकता है, क्योंकि इनके लक्षण एक जैसे होते हैं, यह सिंड्रोम इस प्रकार हैं

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    जैसा की आप जानते ही हैं कि इस स्थिति का निदान बचपन में ही होना जरूरी है। इसके निदान के लिए डॉक्टर सबसे पहले रोगी की शारीरिक जांच करते हैं। मेडिकल हिस्ट्री, लक्षणों आदि के बारे में भी जाना जाता है। हालांकि, रसल सिल्वर सिंड्रोम (Russell Silver Syndrome) के निदान के लिए कोई खास लेबोरेटरी टेस्ट नहीं है। इसका निदान डॉक्टर की जजमेंट पर निर्भर करता है। हालांकि, इसके निदान के लिए यह टेस्ट कराएं जा सकते हैं:

    • ब्लड शुगर (Blood sugar): कुछ बच्चों को लो ब्लड शुगर की समस्या हो सकती है, जो इस रोग का एक लक्षण है।
    • बोन एज टेस्टिंग (Bone age testing ): हड्डियों की उम्र आमतौर पर बच्चों की असली उम्र से कम होती है।
    • जेनेटिक टेस्टिंग (Genetic testing ): जेनेटिक टेस्टिंग से क्रोमोसोमल प्रॉब्लम के बारे में जाना जा सकता है।
    • ग्रोथ हॉर्मोन (Growth hormone): कुछ पीड़ित बच्चों में कोई कमी हो सकती है, जिससे इस रोगी का निदान हो सकता है।
    • ग्रोथ वेलोसिटी (growth velocity): इस टेस्ट से बच्चों की इस उम्र में ग्रोथ के बारे में जाना जा सकता है।

    इसके अलावा भी डॉक्टर अन्य कुछ टेस्ट्स की सलाह दे सकते हैं। यह एक दुर्लभ सिंड्रोम है जिसका निदान थोड़ा मुश्किल हो सकता है। लेकिन, उपचार से ग्रोथ और डेवलपमेंट में मदद मिल सकती है। अब जानिए कैसे संभव है इसका उपचार।

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    रसल सिल्वर सिंड्रोम के उपचार (Treatment of Russell Silver Syndrome)

    रसल सिल्वर सिंड्रोम (Russell Silver Syndrome) के उपचार में इसके लक्षणों को मैनेज करना शामिल है। जैसे-जैसे रोगी बड़ा होता है इसके कई लक्षण सुधरते हैं, जिससे लोग इस सिंड्रोम से पीड़ित हैं और माता-पिता बनना चाहते हैं तो उन्हें इससे पहले जेनेटिक काउंसलर की सलाह अवश्य लेनी चाहिए। यह समस्या जन्म से ही मौजूद होती है और शुरू के कुछ साल ही बच्चों के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। ऐसे में इसके लक्षणों का उपचार जरूरी है ताकि शिशु का विकास सामान्य तरह से हो सके। इसके उपचार के कुछ तरीके इस प्रकार हैं:

    • एक न्यूट्रिशन शेड्यूल (Nutrition Schedule): अगर आप अपने बच्चे का सही विकास चाहते हैं तो उसे शुरू से ही पौष्टिक आहार की आदत डालें। रसल सिल्वर सिंड्रोम (Russell Silver Syndrome) के उपचार में भी यह शामिल है।
    • ग्रोथ हॉर्मोन इंजेक्शंस (Growth hormone injections)
    • ल्यूटिनाइजिंग हॉर्मोन-रिलजिंग ट्रीटमेंट्स (Luteinizing hormone-releasing treatments)

    रसल सिल्वर सिंड्रोम (Russell Silver Syndrome) में अंगों के टेड़े-मेढ़े होने की समस्या को सही करने के लिए भी डॉक्टर कई तरीकों का सुझाव दे सकते हैं। यह तरीके इस प्रकार हैं:

    • शू लिफ्ट्स (Shoe lifts)
    • करेक्टिव सर्जरी (Corrective surgery)

    मेंटल और सोशल डेवलपमेंट्स का उपचार

    इस समस्या से पीड़ित बच्चों की मेंटल और सोशल डेवलपमेंट्स के ट्रीटमेंट में यह सब शामिल है:

    • स्पीच थेरिपी (Speech therapy)
    • फिजिकल थेरिपी (Physical therapy)
    • लैंग्वेज थेरिपी (Language therapy)
    • अर्ली डेवलपमेंट इंटरवेंशन प्रोग्राम्स (Early development intervention programs)

    इस बीमारी को आरएसएस (RSS), एसआरएस (SRS), सिल्वर-रसल डवारफिस्म (Silver-Russell dwarfism) या सिल्वर-रसल सिंड्रोम (Silver-Russell syndrome) आदि नाम से भी जाना जाता है। रसल सिल्वर सिंड्रोम (Russell Silver Syndrome) से प्रभावित बच्चों को नियमित मॉनिटरिंग और टेस्टिंग की जरूरत हो सकती है। इससे इस बात को सुनिश्चित करने में मदद मिलती है कि उनका विकास सही हो रहा है। इस सिंड्रोम से प्रभावित कई लोग जैसे ही वो युवावस्था में कदम रखते हैं, तो अपने लक्षणों में सुधर महसूस करते हैं। इस समस्या से जुड़ी जटिलताओं में अगर जबड़े छोटे हों तो चबाने और बोलने में समस्या और लर्निंग डिसेबिलिटी (Learning disability) शामिल है।

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    रसल सिल्वर सिंड्रोम से जुड़े रिस्क्स (Risks of Russell Silver Syndrome)

    रसल सिल्वर सिंड्रोम (Russell Silver Syndrome) से पीड़ित व्यक्ति एक सामान्य जीवन व्यतीत कर सकता है। लेकिन, यह इस चीज पर निर्भर करता है कि यह ग्रोथ डिसऑर्डर कितना गंभीर है और इससे जुड़ी जटिलताएं क्या हैं। इस समस्या से पीड़ित लोग जन्म से लेकर वयस्क होने तक कई चुनौतियों का सामना करते हैं। ऐसा भी माना जाता है कि ऐसे लोगों को युवावस्था तक पहुंचने में कई हेल्थ इशूज और रिस्क्स से गुजरना पड़ता है। यह रिस्क्स इस प्रकार हैं:

    • मेटाबोलिक सिंड्रोम (Metabolic syndrome)
    • महिलाओं में गर्भाशय और योनि रोगजनन (Uterine and vaginal dysgenesis)
    • पुरुषों में गोनाडल हायपोफंक्शन या टेस्टिकुलर कैंसर (Gonadal hypofunction or testicular cancer)
    • लो मसल मास या लो बोन मिनरल डेंसिटी (Low muscle mass or low bone mineral density)
    • मायोक्लोनस डिस्टोनिया (Myoclonus dystonia)

    रसल सिल्वर सिंड्रोम (Russell Silver Syndrome)

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    यह तो थी रसल सिल्वर सिंड्रोम (Russell Silver Syndrome) के बारे में पूरी जानकारी। रसल सिल्वर सिंड्रोम (Russell Silver Syndrome) एक जेनेटिक ग्रोथ डिसऑर्डर है और इससे प्रभावित व्यक्ति को इस समस्या के कारण कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। रोगी को जेनेटिक काउंसलर की सलाह लेनी चाहिए, ताकि वो जान पाए कि किन स्थितियों में आपके बच्चे को भी यह समस्या होने की संभावना हो सकती है। इसका उपचार लक्षणों को मैनेज करने पर निर्भर करता है। जब रोगी बड़ा होता तो वो अपने लक्षणों में सुधर को महसूस कर सकता है।

    बड़े बच्चों और वयस्कों में शिशु या छोटे बच्चों की तरह इसके स्पष्ट लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। उनकी इंटेलिजेंस सामान्य हो सकती है, लेकिन उन्हें कुछ भी सीखने में समय लगता है। लेकिन, इस डिसऑर्डर के लक्षणों को पहचानना बेहद जरूरी है ताकि उपचार संभव हो सके। इसके साथ ही इस समस्या से पीड़ित बच्चों के लिए हेल्दी लाइफस्टाइल को अपनाना बेहद जरूरी है। इसके साथ ही नियमित जांच और डॉक्टर की सलाह का पालन करना भी अनिवार्य है।

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