मेंटल हेल्थ हमारे रोजाना के जीवन का एक अभिन्न अंग है। हर किसी के जीवन में कभी न कभी वो समय अवश्य आता है, जब हम मानसिक समस्या को महसूस करते हैं। ऐसा ही एक समय है प्रसव के बाद का। जिसमे अधिकांश महिलाएं तनाव, चिंता या डिप्रेशन का अनुभव करती हैं। आज हम ऐसी ही एक स्थिति के बारे में बात करने वाले हैं जिसे पोस्टपार्टम साइकोसिस (Postpartum Psychosis) कहा जाता है। हालांकि, कई बार इसे पोस्टपार्टम डिप्रेशन भी समझ लिया जाता है। लेकिन पोस्टपार्टम साइकोसिस (Postpartum Psychosis) इससे अलग है। आइए जानते हैं कि क्या है पोस्टपार्टम साइकोसिस (Postpartum Psychosis) और किस तरह से संभव है इसका उपचार
क्या है पोस्टपार्टम साइकोसिस? (What is Postpartum Psychosis)
पोस्टपार्टम साइकोसिस (Postpartum Psychosis) एक मेडिकल इमरजेंसी है। शिशु के जन्म के बाद नई मां कई समस्याओं का सामना करती हैं। उन्ही में से एक है पोस्टपार्टम साइकोसिस (Postpartum Psychosis), जो एक गंभीर समस्या है। उन महिलाओं में यह बीमारी होने की संभावना अधिक होती है, जिन्हें पहले कोई मानसिक समस्या जैसे बायपोलर डिसऑर्डर हो। यह बीमारी शिशु के जन्म के बाद पहले कुछ दिनों या हफ्तों में शुरू हो सकती है। पोस्टपार्टम साइकोसिस की बीमारी बहुत जल्दी बदतर हो सकती है और मेडिकल इमरजेंसी बन सकती है। हालांकि, सही उपचार से रोगी का इलाज संभव है लेकिन पूरी तरह से ठीक होने में रोगी को कुछ समय लगता है। यह बीमारी रोगी और उसके परिवार के लिए हैरान करने और डरा देने वाली हो सकती है।
जिन महिलाओं को यह समस्या है उनके पार्टनर, दोस्तों या परिवार के लिए इसके लक्षणों, कारणों और उपचार के बारे में पता होना चाहिए। ताकि, सही समय पर निदान और उपचार संभव हो। जानते हैं सबसे पहले पोस्टपार्टम ब्लूज (Postpartum Blues), पोस्टपार्टम साइकोसिस (Postpartum Psychosis और पोस्टपार्टम डिप्रेशन (Postpartum Depression) में क्या अंतर है।
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पोस्टपार्टम साइकोसिस, पोस्टपार्टम डिप्रेशन और पोस्टपार्टम ब्लूज में अंतर (Difference between Postpartum psychosis, postpartum depression and Postpartum blues)
डॉक्टरों ने कई प्रकार की पोस्टपार्टम साइकियाट्रिक इलनेस (Postpartum Psychiatric Illness) की पहचान की है। इनमें से कुछ के बारे में आपने अवश्य सुना होगा जैसे पोस्टपार्टम ब्लूज या पोस्टपार्टम डिप्रेशन। यह सभी मानसिक विकार अलग-अलग हैं। जानिए क्या है इनमें अंतर:
पोस्टपार्टम साइकोसिस: पोस्टपार्टम ब्लूज (Postpartum Blues)
प्रसव के बाद कुछ हफ्तों के बीच पचास से लेकर अस्सी प्रतिशत महिलाएं पोस्टपार्टम ब्लूज का सामना करती हैं। इसे बेबी ब्लूज भी कहा जाता है। इसके लक्षण इस प्रकार हैं:
- हमेशा दुखी रहना (Tearfulness)
- एंग्जायटी (Anxiety)
- चिड़चिड़ापन (Irritability)
- मूड का तेजी से बदलना (Quick Changes in Mood)
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पोस्टपार्टम डिप्रेशन (Postpartum Depression)
जब डिप्रेशन के लक्षण दो या तीन हफ्तों तक रहते हैं और महिला के काम करने में भी बाधा बनने लगते हैं तो उन्हें पोस्टपार्टम डिप्रेशन कहा जाता है। इसके लक्षण इस प्रकार हैं:
- लगातार दुखी रहना (Consistently Sad Mood)
- अपराध की भावना महसूस होना (Feelings of Guilt)
- एंग्जायटी (Anxiety)
- नींद में समस्या या थकावट (Sleep Disturbances and Fatigue)
- ध्यान लगाने में समस्या (Difficulty Concentrating)
- भूख में बदलाव (Appetite Changes)
इस समस्या से पीड़ित महिला को सुसाइड के ख्याल भी आ सकते हैं
पोस्टपार्टम साइकोसिस (Postpartum Psychosis)
अधिकतर डॉक्टर पोस्टपार्टम साइकोसिस (Postpartum Psychosis) को सबसे गंभीर मेंटल हेल्थ इफेक्ट मानते हैं। नई बनी महिलाओं का बार-बार दुखी होना या उनमें एंग्जायटी असामान्य नहीं है। लेकिन, जब यह लक्षण लगातार रहते हैं और संभावित खतरनाक विचारों में बदल जाते है, तो ऐसे भी मदद लेना जरूरी है।
पोस्टपार्टम साइकोसिस के लक्षण कौन से हैं? (Symptoms of Postpartum Psychosis)
जिन महिलाओं को पास्ट में कुछ मानसिक समस्याएं होती है, उनमें प्रसव के बाद इस बीमारी के होने की संभावना अधिक रहती है। हालांकि, कई ऐसी महिलाओं को भी यह बीमारी हो सकती है, जिन्हें पास्ट में कोई मेंटल प्रॉब्लम नहीं थी। पोस्टपार्टम साइकोसिस की समस्या शिशु के जन्म के कई दिनों के भीतर नई मां को हो सकती है। आमतौर पर यह समस्या अचानक होती है। हर महिला में इसके अलग-अलग लक्षण देखने को मिल सकते हैं, जो इस प्रकार हैं:
- भ्रम (Delusions)
- मतिभ्रम (Hallucinations)
- व्याकुलता (Agitation)
- एनर्जी का या सेक्स ड्राइव का अधिक होना (Heightened energy or Sex drive)
- डिप्रेशन, एंग्जायटी या बैचैनी (Depression, Anxiety or Confusion)
- गंभीर इंसोम्निया (Severe Insomnia)
- व्यामोह और संदिग्ध भावनाएं (Paranoia and Suspicious Feelings)
- लगातार मूड स्विंग्स (Constant mood Swings)
- शिशु से डिस्कनेक्टेड महसूस करना (Feeling Disconnected from your Baby)
कई बार यह बताना मुश्किल हो सकता है कि यह लक्षण शिशु के जन्म के बाद मां के ठीक होने का नार्मल हिस्सा है या कोई गंभीर समस्या है। इसलिए शुरुआती कुछ दोनों या हफ्तों तक महिला के परिवार वालों को उनका खास ख्याल रखना चाहिए।
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पोस्टपार्टम साइकोसिस के कारण और रिस्क्स के बारे में जानें (Causes and Risk Factors of Postpartum Psychosis)
अगर नई मां के परिवार में किसी को मानसिक समस्या या बायपोलर डिसऑर्डर हो। तो उन्हें भी पोस्टपार्टम साइकोसिस (Postpartum Psychosis) होने की संभावना अधिक होती है या अगर उन्हें पास्ट में कोई मानसिक समस्या हो तो भी उनके यह बीमारी होने का जोखिम अधिक होता है। डॉक्टर यही मानते हैं कि महिलाओं में शिशु के जन्म से पहले या बाद में होने वाला अधिक हार्मोनल बदलाव भी पोस्टपार्टम साइकोसिस (Postpartum Psychosis) का कारण हो सकता है। इन स्थितियों में इस बीमारी का जोखिम बढ़ जाता है, अगर:
- यह आपका पहला शिशु हो (This is your First Baby)
- आपकी प्रेग्नेंसी अनप्लांड हो (Your Pregnancy was Unplanned)
- गंभावस्था में अधिक मूड स्विंग्स हो रहे हों (You have Big Mood Swings while Pregnant)
- आपने गर्भावस्था के दौरान अपनी मानसिक दवाएं लेना बंद कर दी हो (You Stopped your Psychiatric Medications during your Pregnancy)
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कैसे संभव है पोस्टपार्टम साइकोसिस का निदान? (Diagnosis of Postpartum Psychosis)
पोस्टपार्टम साइकोसिस (Postpartum Psychosis) के निदान के लिए सबसे पहले डॉक्टर आपसे लक्षणों के बारे में जानेंगे और यह भी पूछेंगे कि आप कितने समय से इनका अनुभव कर रहे हैं। इसके साथ ही वो आपकी पास्ट मेडिकल हिस्ट्री जानेंगे जैसे आपको पहले कभी यह समस्याएं तो नहीं थी:
- डिप्रेशन (Depression)
- बायपोलर डिसऑर्डर (Bipolar Disorder)
- एंग्जायटी (Anxiety)
- अन्य मेंटल इलनेस (Other Mental Illness)
- फैमिली मेंटल हेल्थ हिस्ट्री (Family Mental Health History)
- सुसाइड या अपने शिशु को नुकसान पहुंचाने के विचार आना (Thoughts of Suicide, or Harming baby)
रोगी का अपने डॉक्टर को यह सही जानकारी देना जरूरी है। ताकि इलाज सही से हो सके। इसके बाद डॉक्टर आपके बिहेवियर में बदलाव के कारण को जानेंगे। थायरॉइड हॉर्मोन (Thyroid Hormones) या पोस्टपार्टम इंफेक्शन, वाइट ब्लड सेल काउंट आदि के लिए ब्लड टेस्टिंग के लिए भी आपको कहा जा सकता है। डॉक्टर रोगी को डिप्रेशन स्क्रीनिंग टूल (Depression Screening Tool) को पूरा करने के लिए भी कह सकते हैं। यह सवाल डॉक्टर को इस स्थिति को पहचानने में मदद कर सकते हैं।
नेशनल इंस्टीटूट्स ऑफ हेल्थ (National Institutes of Health) के अनुसार पोस्टपार्टम साइकोसिस (Postpartum Psychosis) का तेजी से और सही निदान, उचित उपचार और पूरी रिकवरी के साथ ही भविष्य में इससे बचने के लिए आवश्यक है। अगर आप इस समस्या से बचना चाहती हैं तो पहले ही अपने डॉक्टर से इस विषय में जान लें। आइए जानते हैं कैसे होता है इस परेशानी का इलाज।
कैसे संभव है पोस्टपार्टम साइकोसिस का इलाज? (Treatment of Postpartum Psychosis)
साइकोसिस एक मेडिकल इमरजेंसी है। अगर इसका सही समय पर इलाज न किया जाए तो यह घातक हो सकती है। लेकिन ,इसका इलाज संभव है। इसके निदान के बाद इसका इलाज कुछ दवाईयों से किया जाता है ताकि रोगी के डिप्रेशन कम हो, मूड में सुधार हो और मनोविकृति में भी कमी आए।
यह दवाइयां इस प्रकार हैं:
- एंटीसाइकोटिक दवाएं (Antipsychotic Medications) : यह दवाइयां मतिभ्रम को कम करती हैं। इनका उदहारण है रिसपेरीडोन (Risperidone), ओलैंजपिन(Olanzapine), जिपरासीडन (Ziprasidone) आदि।
- मूड स्टैब्लायजर्स (Mood Stabilizers) : यह दवाइयां मैनिक एपिसोड्स को कम करती हैं। इनका उदाहरण हैं लिथियम (Lithium), आइसोनािएज्ड (Isoniazid) आदि।
हालांकि, इस समस्या के उपचार के लिए कोई भी दवाईयों का कॉम्बिनेशन मौजूद नहीं है। हर महिला अलग है और कई महिलाएं ऊपर बतायी दवाईयों के मुकाबले एंटीडिप्रेसेंटऔर एंटीएंग्जायटी दवाईयों को लेने से ही बेहतर महसूस करती हैं। अगर किसी महिला को इन दवाईयों से कोई फर्क नहीं पड़ता है तो अन्य उपचार के तरीके अपनाएं जा सकते हैं, जैसे:
- इलेक्ट्रोकोनवल्सी शॉक थेरेपी (Electroconvulsive Shock Therapy) : इलेक्ट्रोकोनवल्सी शॉक थेरेपी बेहद प्रभावी है। इस थेरेपी में रोगी के मस्तिष्क को नियंत्रित मात्रा में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्टिमुलेशन प्रदान करना शामिल है।
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पोस्टपार्टम साइकोसिस की रिकवरी के बारे में जानें (Recovering from Postpartum Psychosis)
पोस्टपार्टम साइकोसिस (Postpartum Psychosis) के अधिक गंभीर लक्षण दो से बारह हफ्तों तक रह सकते हैं और इस स्थिति से पूरी तरह से रिकवर होने में रोगी को 6 से 12 महीने या इससे भी अधिक समय लग सकता है। लेकिन सही उपचार और सपोर्ट से इससे पीड़ित महिलाएं पूरी तरह से ठीक ही जाती हैं। पोस्टपार्टम साइकोसिस (Postpartum Psychosis) के कारण महिलाएं डिप्रेशन, एंग्जायटी और लो कॉन्फिडेंस महसूस कर सकती हैं। कई महिलाओं को इस बीमारी के बाद अपने बच्चे के साथ कनेक्ट होने में भी समस्या होती है। ऐसे में पार्टनर और परिवार का साथ और देखभाल उन्हें जल्दी रिकवर करने में मदद कर सकता है।
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पोस्टपार्टम साइकोसिस की समस्या से बचने के लिए क्या करें? (Prevention from Postpartum Psychosis)
पोस्टपार्टम साइकोसिस (Postpartum Psychosis) की समस्या का सामना कई महिलाएं करती हैं। यह समस्या परेशान करने वाली और भयानक हो सकती है लेकिन इससे पीड़ित महिलाएं पूरी तरह से रिकवर हो जाती हैं। जानिए इस समस्या से बचने के लिए आपको क्या करना चाहिए।
प्रसव से पहले क्या करें (Before delivery)
- अगर आपको यह समस्या होने का जोखिम है तो आप अपने डॉक्टर से इस रोग के रिस्क के बारे में पहले ही बात कर लें।
- अगर आपको या आपके परिवार में किसी को बायपोलर डिस्टरडेर या अन्य मानसिक समस्या हो तो डॉक्टर को अवश्य बताएं।
- अपने पार्टनर और फैमिली के सदस्यों को इस समस्या के लक्षणों के बारे में समझाएं। क्योंकि, उन्हें इस समस्या लक्षणों को पहचानने में समस्या हो सकती है।
- प्रेग्नेंसी में अपने मूड को नोटिस करते रहें।
- शिशु के जन्म के बाद उसकी सुरक्षा का पूरा अरेंजमेंट पहले ही कर के रखें।
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प्रसव के बाद क्या करें (After Delivery)
- अपने पार्टनर या परिवार वालों को अपने बिहेवियर पर नजर रखने के लिए कहें। अगर उन्हें कोई भी संदेह होता है तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लेने को कहें।
- पर्याप्त नींद लें।
- अगर आपको शिशु को दूध पिलाने में समस्या हो रही, हो तो खुद को जिम्मेदार न मानें।
- शिशु के जन्म के पहले कुछ दिनों तक अधिक विजिटर्स को घर में न आने दें।
- डॉक्टर से नियमित जांच कराएं।
- शिशु को संभालने और अन्य कार्यों के लिए अपने परिवार, दोस्तों और पार्टनर की मदद लें।
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प्रसव के बाद शिशु को अस्पताल से घर लाना बेहद खुशी और उत्साह से भरा समय होता है। लेकिन, कुछ नई माताओं के लिए यह पोस्टपार्टम पीरियड बेहद चुनौतीभरा हो सकता है। हॉर्मोन्स का बदलना ,कम नींद या शिशु के साथ जीवन को एडजस्ट करने का स्ट्रेस शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान करने वाला होता है। ऐसे में आपको पोस्टपार्टम साइकोसिस (Postpartum Psychosis) की परेशानी हो सकती है। हालांकि, सही उपचार के साथ इसका पूरी तरह से इलाज संभव है। इसमें आपके परिवार और पार्टनर के सपोर्ट की मुख्य भूमिका होती है। इसके साथ ही आपको भी अपना पूरा ख्याल रखना चाहिए और समय-समय पर डॉक्टर की सलाह लेना भी जरूरी है।
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