मां बनने के बाद : अक्सर महिलाओं को बच्चा पैदा होने के बाद हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस की समस्या हो जाती है। इस स्थिति को पोस्टपार्टम थाईरॉइडाईटिस कहा जाता है। पोस्टपार्टम थाईरॉइडाईटिस के लक्षण डिलिवरी के 12 से 18 महीने के बाद नजर आते हैं। लेकिन, अगर आपके परिवार में पोस्टपार्टम थाईरॉइडाईटिस किसी को पहले रहा हो तो आपको होने का रिस्क ज्यादा होता है।
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हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस होना कितना सामान्य है?
जैसा की पहले ही बताया जा चुका है कि हाशिमोटोस डिजीज पुरुषों में कम और महिलाओं को ज्यादा होता है। ये अक्सर 40 से 60 साल तक की महिलाओं में ज्यादा पाया जाता है। लेकिन ये किशोरियों को भी प्रभावित कर सकता है। हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस के साथ अन्य ऑटोइम्यून डिजीज भी हो सकती हैं। जैसे- सेलिएक डिजीज, रयूमेटॉइड आर्थराइटिस, टाइप 1 डायबिटीज, परनिसियस एनीमिया या ल्यूपस आदिर बीमारियां हाशिमोटोस डिजीज के साथ हो सकती है।
हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस महिलाओं को कैसे प्रभावित करता है?
हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस महिलाओं में हाइपोथायरॉइडिजम के विकसित होने के कारण होता है। हाइपोथायरॉइडिजम महिलाओं को निम्न तरह से प्रभावित कर सकता है :
गर्भधारण में समस्या : हाइपोथायरॉइडिजम के कारण महिलाओं के पीरियड्स में अनियमितता आ जाती है। रिसर्ज में पाया गया है कि लगभग आधी महिलाओं को हाइपोथायरॉइडिजम के साथ ही हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस होने पर महिलाओं को गर्भधारण करने में समस्या होती है। जिनमें से ज्यादातर महिलाओं को हाशिमोटोस डिजीज होने का कारण हाइपोथायरॉइडिजम का इलाज न होना है।
पीरियड्स में समस्या : हाशिमोटोस डिजीज होने के कारण थायरॉइड हॉर्मोन पीरियड्स को प्रभावित करता है। जिससे पीरयड्स अनियमित हो जाते हैं। इसके अलावा हैवी पीरियड्स आते हैं।
प्रेगनेंसी में समस्या : गर्भ में पल रहे बच्चे के मस्तिष्क और नर्वस सिस्टम के विकास के लिए थायरॉइड हार्मोन जिम्मेदार होता है। हाशिमोटोस डीजीज के कारण थायरॉइड हॉर्मोन सही से स्रावित नहीं होता है। जिससे मिसकैरिज, बर्थ डिफेक्ट आदि समस्याएं होती है।
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हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस का पता कैसे लगाते हैं?
हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस होने पर हाइपोथाइरॉइडिजम के लक्षण सामने आते हैं, तो आपको डॉक्टर के पास जाना चाहिए। हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस को कंफर्म करने के लिए डॉक्टर कुछ टेस्ट कराते हैं।
थायरॉइड फंक्शन टेस्ट
थायरॉइड फंक्शन टेस्ट एक प्रकार का ब्लड टेस्ट है। जिससे पता लगाया जा सके कि शरीर में थायरॉइड स्टीम्यूलेटिंग हॉर्मोन (TSH) और थायरॉइड हॉर्मोन का लेवल क्या है। अगर TSH का लेवल हाई रहेगा तो थायरॉइड ग्लैंड से ज्यादा मात्रा में थायरॉइड ग्लैंड स्रावित होगी। जो कि हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस का कारण बनेगी।
एंटीबॉडी टेस्ट
एंटीबॉडी टेस्ट भी ब्लड टेस्ट है। जिससे भी हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस का पता लगाया जाता है। इस टेस्ट को थॉराइड पिरॉक्सीडेस के नाम से भी जाना जाता है।
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हाशिमोटोस डिजीज का इलाज कैसे करते हैं?
हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस का इलाज लिवोथायरॉक्सिन का डेली डोज दे कर किया जाता है। लिवोथायरॉक्सीन थायरॉइड जैसा ही हॉर्मोन है। जो दवाओं के रूप में देकर थायरॉइड हॉर्मोन को नियंत्रित करने के काम आता है। बिना डॉक्टर की सलाह के ये दवा न लें। डॉक्टर से परामर्श जरूर करें।
हाशिमोटोस डिजीज का इलाज नहीं करने पर क्या होता है?