हायपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी एक क्रोनिक बीमारी है, जो समय के साथ बदतर होती जा रही है। इससे न केवल व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता पर असर होता है बल्कि वो असहज और बेचैन भी महसूस कर सकता है। हायपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी (Hypertrophic Cardiomyopathy) से पीड़ित लोगों को इस बीमारी से एडजस्ट करने के लिए अपनी जीवनशैली में बदलाव लाना भी बेहद जरूरी है।
हायपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी जैसी समस्या जब बढ़ती है, तो यह अन्य हेल्थ समस्याओं का कारण भी बन सकती है। हायपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी (Hypertrophic Cardiomyopathy) के मरीज में एट्रियल फाइब्रिलेशन (Atrial Fibrillation) विकसित होने का अधिक जोखिम होता है, जिससे ब्लड क्लॉट्स (Blood Clots) , स्ट्रोक (Stock) और हार्ट-रिलेटेड कॉम्प्लीकेशन्स (Heart-Related Complications) आदि समस्याएं भी हो सकती हैं। इस बीमारी के कारण हार्ट फेलियर होने की संभावना भी बनी रहती है। इससे अचानक कार्डिएक अरेस्ट भी हो सकता है, हालांकि ऐसा होना दुर्लभ है। अब जानिए क्या हैं इस समस्या के कारण?
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हायपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी के कारण क्या हैं? (Causes of Hypertrophic Cardiomyopathy)
हायपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी (Hypertrophic Cardiomyopathy) की बीमारी इनहेरिटेड हो सकती है। ऐसे कई जीन हैं जो इस समस्या का कारण बन सकते हैं। जीन डिफेक्ट के कारण परिवार में यह समस्या विकसित हो सकती है। लेकिन, ऐसा जरूरी नहीं है कि अगर आपके परिवार में किसी को यह समस्या है तो आपको यह रोग होगा ही। हायपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी (Hypertrophic Cardiomyopathy) के सही कारणों के बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं है। ऐसा माना जाता है कि हाय ब्लड प्रेशर या उम्र के बढ़ने के कारण भी यह रोग हो सकता है।
हायपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी का निदान (Diagnosis of Hypertrophic Cardiomyopathy)
हायपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी (Hypertrophic Cardiomyopathy) अधिकतर इनहेरिटेड होती है। यह समस्या आनुवंशिक हृदय रोग का सबसे आम रूप है। यह किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन अधिकतर लोगों में मिड्ल एज में इसका निदान होता है। ऐसा भी माना जाता है कि पांच सौ में से एक व्यक्ति को यह समस्या होती है, लेकिन इसके अधिकतर मरीजों में इसका निदान नहीं हो पाता है। इस समस्या का निदान अक्सर मेडिकल हिस्ट्री (Medical History), फैमिली हिस्ट्री (Family History), शारीरिक जांच (Physical Test) और डायग्नोस्टिक टेस्ट रिजल्ट्स (Diagnostic Test Results) के आधार पर होता है। आइए जानते हैं इस बारे में विस्तार से: