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एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट्स : ऐसे पहचानें इस हार्ट डिजीज के लक्षणों को

और द्वारा फैक्ट चेक्ड Nikhil deore


Nikhil deore द्वारा लिखित · अपडेटेड 21/02/2022

    एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट्स : ऐसे पहचानें इस हार्ट डिजीज के लक्षणों को

    एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट्स (Atrial Septal Defects) हार्ट से संबंधित बर्थ डिफेक्ट हैं। इस समस्या में हार्ट के अपर चैम्बर्स को विभाजित करने वाली वॉल में छेद होता है। हार्ट में होल को समझने के लिए सबसे पहले हेल्दी हार्ट कैसे काम करता है, यह जानना जरूरी है। हार्ट एक पंप की तरह काम करता है, जो दिन में लगभग 100,000 बार धड़कता है। दिल की दो साइड्स होती हैं, जो इनर वॉल्स से विभाजित होती हैं, जिन्हें सेप्टम (Septum) कहा जाता है। हार्ट का दाहिना हिस्सा ऑक्सीजन लेने के लिए फेफड़ों में रक्त पंप करता है। उसके बाद ऑक्सिजन रिच ब्लड लंग्स से हार्ट के बाए हिस्से में वापस चला जाता है। हार्ट के चार चैम्बर्स और चार वॉल्व होते हैं, जो विभिन्न ब्लड वेसल्स से कनेक्टेड होते हैं।

    ब्लड वेसल में मौजूद वेन्स जो शरीर से खून को हार्ट तक ले जाती हैं। आर्टरीज वो ब्लड वेसल्स वो होते हैं जो ब्लड को हार्ट से शरीर तक ले जाते हैं। आज हम हार्ट से जुड़े दोष जिसे एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट्स (Atrial Septal Defect) कहा जाता है, उसके बारे में बात करने वाले हैं। जानिए इसके बारे में विस्तार से।

    एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट्स (Atrial Septal Defects) क्या हैं?

    एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट्स सेप्टम में मौजूद होल को कहा जाता है। सेप्टम हार्ट के दो अपर चैम्बर्स के बीच की वॉल को कहा जाता है। यह एक जन्मजात समस्या है। स्मॉल सेप्टल डिफेक्ट्स अचानक हो सकते हैं और कोई भी समस्या पैदा नहीं कर सकते। कुछ स्मॉल एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट्स (Atrial Septal Defects) बचपन या बचपन की शुरुआत के दौरान खुद ही ठीक हो जाते हैं। लेकिन, एक बड़ा एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट्स रोगी के हृदय और फेफड़ों को नुकसान पहुंचा सकता है। जटिलताओं को रोकने के लिए एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट्स की मरम्मत के लिए सर्जरी या इसे बंद करना आवश्यक हो सकता है। अब जानते हैं एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट के लक्षण क्या हैं?

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    एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट्स के लक्षण (Symptoms Atrial Septal Defects)

    इस समस्या से पीड़ित बहुत से लोगों को पता भी नहीं होता कि उन्हें एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट्स (Atrial Septal Defects) की समस्या है। क्योंकि, उनमें इस समस्या का कोई लक्षण नहीं होता। कुछ मरीजों को इस डिफेक्ट के बारे में तब पता चलता है, जब किसी अन्य बीमारी के कारण उनकी छाती का एक्स रे कराया जाता है, जिससे इस बात का पता चलता है कि उनके हार्ट का दाहिना भाग सामान्य से बड़ा है। कई बच्चे एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट से पीड़ित होते हैं और उनमें इसके कोई भी लक्षण नहीं होते। यौवन में उनमें लक्षण दिखाई देना शुरू होते हैं, जो इस प्रकार हैं :

    • सांस लेने में समस्या, खासतौर पर व्यायाम करते हुए (Shortness of Breath)
    • थकावट (Fatigue)
    • टांगों, पैरों और पेट में सूजन (Swelling)
    • हार्ट पैल्पिटेशन (Heart Palpitations)
    • स्ट्रोक (Stroke)
    • हार्ट मर्मर (Heart Murmur)

    कुछ स्थितियों में आपको तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए, जैसे :

    पचास साल के बाद एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट्स (Atrial Septal Defects) के लक्षण नजर आ सकते हैं जैसे बेहोशी, असामान्य हार्ट रिदम, सांस लेने में समस्या आदि। अब जानते हैं कि इस समस्या के कारण क्या हैं?

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    एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट्स के कारण (Causes of Atrial Septal Defects)

    अधिकतर शिशुओं में हार्ट डिफेक्ट्स जैसे एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट्स (Atrial Septal Defects) के कारणों के बारे में जानकारी नहीं है। कई बच्चों में यह समस्या जीन्स (Genes) या क्रोमोसोम (Chromosome) में बदलाव के कारण होती है। इस तरह के हार्ट डिफेक्ट्स के कारणों में जीन्स (Genes) और अन्य रिस्क फैक्टर्स के कॉम्बिनेशंस को भी जिम्मेदार माना जाता है। जैसे होने वाली मां के द्वारा किसी हानिकारक चीज या दवा का सेवन करना। एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट तीसरा सबसे सामान्य जन्मजात हृदय रोग है और वयस्कों में यह सबसे सामान्य है। यह समस्या पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को होने की संभावना अधिक होती है। जानिए इस समस्या के निदान के बारे में।

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    एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट्स का निदान कैसे संभव है? (Diagnosis of Atrial Septal Defects)

    एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट का उपचार रोगी की उम्र, डिफेक्ट की लोकेशन और गंभीरता पर निर्भर करता है। छोटे एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट्स (Atrial Septal Defects) को कोई उपचार की जरूरत नहीं होती है। लेकिन, अन्य मामलों में उपचार के साथ नियमित चेकअप जरूरी है। इसके निदान के लिए डॉक्टर इन टेस्ट्स की सलाह दे सकते हैं:

    • इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (Electrocardiogram) : यह टेस्ट हार्ट की इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी को जानने के लिए किया जाता है।
    • चेस्ट एक्स-रे (Chest X-Ray) : चेस्ट एक्स-रे को हार्ट और ब्लड वेसल के साइज को जानने के लिए किया जाता है, जो लंग्स को ब्लड सप्लाई करते हैं।

      डॉप्लर एग्जामिनेशन (Doppler Examination) : हार्ट स्ट्रक्चर की जांच करने और यह देखने के लिए कि यह कितनी अच्छी तरह काम कर रहा है यह टेस्ट किया जाता है।

    • ट्रांसइसोफेजिअल एकोकार्डियोग्राम (Transesophageal Echocardiography) : इस अल्ट्रासाउंड का प्रयोग एट्रिया की बेहतर तस्वीर लेने और एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट्स (Atrial Septal Defects) के साइज और शेप के बारे में अधिक जानकारी लेने के लिए किया जाता है।
    • इंट्राकार्डियक एकोकार्डियोग्राफी (Intracardiac Echocardiography) : इस अल्ट्रासाउंड का इस्तेमाल हार्ट के भीतर की तस्वीर लेने के लिए किया जाता है। पेरीफेरल वेंन के माध्यम से एक छोटे कैमरे को हार्ट के भीतर भेजा जाता है।
    • राइट हार्ट कैथेटेराइजेशन (Right Heart Catheterization) : इस टेस्ट में एक छोटी और पतली ट्यूब को पेरीफेरल वेंन (peripheral Vein) के माध्यम से हार्ट में इंसर्ट किया जाता है। इसके माध्यम से हार्ट के हर एक चैम्बर में खून में ऑक्सीजन की मात्रा और ऑक्सीजन लेवल से मापा जा सकता है।
    • लेफ्ट हार्ट कैथेटेराइजेशन (Left Heart Catheterization) : इस प्रक्रिया में कैथेटेर के माध्यम से हार्ट के ब्लड वेसल में खास डाई को भेजा जाता है। इस टेस्ट से कोरोनरी आर्टरी डिजीज को भी जांच सकते हैं।

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    यह तो थी पूरी जानकारी कि एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट का निदान कैसे हो सकता है। अब जान लेते हैं इसके उपचार के बारे में।

    एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट का उपचार (Treatment of Atrial Septal Defects)

    एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट में अगर रोगी को कोई लक्षण नजर न आ रहे हों या डिफेक्ट छोटा हो और अन्य असामान्यताओं से न जुड़ा हो, तो किसी भी तरह के उपचार की जरूरत नहीं होती। गंभीर मामलों में ही सर्जरी की सलाह दी जाती है। बचपन में ही कई ऐसे डिफेक्ट्स खुद ही क्लोज हो जाते हैं और जो क्लोज नहीं होते हैं, उनमें से छोटे एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट को उपचार की जरूरत नहीं होती। अन्य एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट्स का उपचार इस तरह से संभव है।

    मेडिकल मॉनिटरिंग (Medical Monitoring)

    अगर आपके बच्चे को यह समस्या है तो डॉक्टर आपको इसकी नियमित मॉनिटरिंग की सलाह देंगे। ताकि, यह देखा जा सके कि यह खुद से क्लोज हुआ है या नहीं। इसे के आधार पर डॉक्टर यह निर्धारित करेंगे कि कब आपके बच्चे को उपचार की जरूरत है।

    दवाइयां (Medications)

    दवाइयों से होल रिपेयर नहीं होता है। लेकिन, इनकी मदद से इस समस्या में होने वाले लक्षणों को कम किया जा सकता है। दवाइयों को सर्जरी के बाद की जटिलताओं के जोखिम को कम करने के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है। इन दवाइयों में हार्टबीट रेगुलेट करने के लिए बीटा ब्लॉकर्स और ब्लड क्लॉट्स को कम करने वाली दवाइयां शामिल हैं।

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    सर्जरी (Surgery)

    मध्यम और लार्ज एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट्स (Atrial Septal Defects) के निदान के बाद डॉक्टर इनकी रिपेयरिंग की सलाह देते हैं। ताकि, रोगी भविष्य में किसी भी तरह की जटिलता का सामना न करें। हालांकि, सर्जरी की सलाह तब तक नहीं दी जाती है, जब तक रोगी को गंभीर पल्मोनरी हायपरटेंशन (Pulmonary Hypertension) की समस्या न हो। क्योंकि, इससे रोगी की स्थिति बदतर हो सकती है। बच्चों और वयस्कों में सर्जरी में एट्रिया के बीच की असामान्य ओपनिंग को बंद करना या पैचिंग शामिल है। इसके लिए दो तरिके अपनाएं जा सकते हैं:

    यह तो थी एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट के उपचार के बारे में जानकारी। लेकिन उपचार के बाद भी फॉलो-अप केयर जरूरी है। जानिए इसके बारे में।

    फॉलो-अप केयर (Follow-up Care)

    फॉलो-अप केयर डिफेक्ट के प्रकार, ट्रीटमेंट और डिफेक्ट की स्थिति पर निर्भर करती है। रिपीटिड एकोकार्डियोग्राम्स (Repeated Echocardiograms) को रोगी के अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद किया जाता है। इसके बारे में डॉक्टर आपको सही जानकारी दे सकते हैं। अगर सामान्य एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट के लिए बचपन के दौरान इलाज हुआ हो और इसे बंद किया गया हो, तो भी कभी- कभी फॉलो-अप केयर जरूरी है।

    जिन वयस्कों में एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट की रिपेयर हुई है, उन्हें पल्मोनरी हायपरटेंशन (Pulmonary Hypertension), एरिथमिया (Arrhythmias) ,हार्ट फेलियर (Heart Failure) या वॉल्व की समस्याओं (Valve Problems) जैसी जटिलताओं की जांच के लिए जीवन भर निगरानी रखने की आवश्यकता होती है। अब जानते हैं कि इन डिफेक्ट्स से कैसे बचा जा सकता है?

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    एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट्स से बचाव (Prevention of Atrial Septal Defects)

    एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट्स (Atrial Septal Defects) के अधिकतर मामलों में बचाव संभव नहीं है। अगर आप गर्भवती होने के बारे में सोच रही हैं, तो अपने डॉक्टर से बात करें, टेस्ट्स को कराएं और कुछ खास बातों का ध्यान रखें, जैसे:

    • रूबेला की इम्युनिटी के लिए टेस्ट करवाएं। यदि आप इम्यून नहीं हैं, तो अपने डॉक्टर से टीका लगवाने के बारे में पूछें।
    • अपनी वर्तमान स्वास्थ्य स्थितियों और दवाओं के बारे में डॉक्टर को बताएं। आपको गर्भावस्था के दौरान कुछ स्वास्थ्य समस्याओं को मॉनिटर करने की आवश्यकता होगी।
    • आपके डॉक्टर गर्भवती होने से पहले कुछ दवाओं को एडजस्ट या बंद करने की भी सिफारिश कर सकते हैं ।
    • अपनी फैमिली मेडिकल हिस्ट्री के बारे में भी डॉक्टर से बात करे। अगर आपके परिवार में हार्ट डिफेक्ट्स या अन्य जेनेटिक डिसऑर्डर्स की हिस्ट्री है। तो इससे जुड़े रिस्क के बारे में डॉक्टर से बात करें।
    • अगर आप हार्ट डिफेक्ट्स या हार्ट की अन्य समस्याओं को मैनेज करना चाहती हैं, तो सबसे पहले हेल्दी आदतों को अपनाएं। सही और पौष्टिक आहार का सेवन करें, पर्याप्त नींद लें, व्यायाम करें और तनाव से बचें। संपूर्ण रूप से हेल्दी रहने के लिए यह बेहद जरूरी है।

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    अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन (American Heart Association) के अनुसार हर बच्चा अपर हार्ट चैम्बर्स के बीच एक ओपनिंग के साथ जन्म लेता है। यह एक सामान्य फीटल ओपनिंग है। लेकिन, शिशु के जन्म के बाद, इस ओपनिंग की आवश्यकता नहीं होती है और आमतौर पर कई हफ्तों या महीनों के भीतर यह बंद हो जाता है या बहुत छोटा हो जाता है। लेकिन, अगर यह ओपनिंग सामान्य से बड़ी हो या जन्म के बाद बंद न हो, तो इसे एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट्स (Atrial Septal Defects) कहा जाता है। अधिकतर बच्चों में इसका कारण ज्ञात नहीं होता और कई बच्चों को एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट के अल्वा अन्य हार्ट डिफेक्ट्स भी हो सकते हैं। ऐसे में जरूरी है, समय पर इस डिफेक्ट्स को पहचानना और इसका उपचार। इसके साथ ही उपचार के बाद भी डॉक्टर की सलाह का पालन और नियमित चेकअप भी आवश्यक है।

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    Nikhil deore द्वारा लिखित · अपडेटेड 21/02/2022

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