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युवराज सिंह ने कैंसर के दौरान क्या-क्या नहीं सहा, लेकिन कभी हार नहीं मानी

युवराज सिंह ने कैंसर के दौरान क्या-क्या नहीं सहा, लेकिन कभी हार नहीं मानी

दिन 2 अप्रैल 2011, शनिवार की रात मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में करीब 42,000 दर्शकों की धड़कने सातवें आसमान पर थीं। खचाखच भरे स्टेडियम के साथ ही पूरे भारत के लोग एक-एक सेकंड को करीब से गुजरते हुए देखने में इतने बिजी थे, कि अगर मौत भी आ जाए तो उसे बाद में आने के लिए कह दें। श्रीलंका के गेंदबाज कुलासेकरा अपने ओवर की दूसरी गेंद डालने के लिए तैयार थे, क्रीज पर मौजूद महेंद्र सिंह धोनी पर पूरे भारत की आंखें गड़ी थी और फिर…. रुकिए, उसके बाद क्रीज के इस पार क्या हुआ, वो हर कोई जानता है। लेकिन, क्रीज के उस पार एक दूसरा बल्लेबाज यानी युवराज सिंह अपनी जिंदगी के वर्ल्ड कप फाइनल में बैटिंग करने के लिए तैयार हो रहा था। ऐसा मैच जहां, सिर्फ ‘करो या मरो’ की स्थिति को ही जगह दी गई थी। इधर, भारत मैच के साथ वर्ल्ड कप जीता, उधर युवराज ने दर्द भरी चीख निकाली।

युवराज सिंह को कैंसर का कैसे पता चला?

मैच के दौरान युवराज सिंह की ये चीख गवाह थी, कई दिनों से झेले जा रहे दर्द की, मैदान पर थूके गए खून की और जिंदगी और मौत की जंग की शुरुआत की। हम इस आर्टिकल में बताएंगे युवराज सिंह को कैंसर से होने वाले उस दर्द की, जो शरीर से ज्यादा दिमाग और मन में चल रहा था। ये आर्टिकल सिर्फ क्रिकेटर युवराज सिंह के बारे में नहीं है, बल्कि उन सभी युवराज सिंह के बारे में है, जो कैंसर से जंग लड़ रहे हैं या उन्होंने कभी यह लड़ाई लड़ी थी। कैंसर से पीड़ित लोगों के लिए युवराज एक प्रेरणा हैं।

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युवराज सिंह को कैंसर के समय कैसा महसूस होता था?

‘जब आप पहली बार कैंसर शब्द सुनते हैं, तो आप बुरी तरह डर जाते हैं। कैंसर किसी सजा-ए-मौत की तरह महसूस है। आपको बिल्कुल पता नहीं होता, कि आपकी जिंदगी आपको कहां ले जाएगी।‘

ये लाइन पढ़ने पर शायद आपको इतनी प्रभावी न लगे, लेकिन यह लाइन महसूस करने पर आप युवराज सिंह की असली मनोदशा और दर्द को समझ सकते हैं। युवी को 2011 की शुरुआत से कैंसर के गंभीर लक्षण दिखने शुरू हो गए थे। जिसमें सांस फूलना, मुंह से खून थूकना और स्टेमिना में कमी मुख्य थे। लेकिन, वह नहीं चाहते थे, कि वह वर्ल्ड कप से बाहर हों, क्योंकि पूरे भारत की उम्मीदें लगी थी। उन्होंने मैदान पर कैंसर को मात देकर 2011 क्रिकेट वर्ल्ड कप में गेंद और बल्ला दोनों से धमाल मचाया और मैन ऑफ द टूर्नामेंट का खिताब हासिल किया। किसी को उन्हें खेलता देखकर कभी लगा ही नहीं, कि यह खिलाड़ी कितने दर्द से गुजर रहा है। पूरे टूर्नामेंट में एक्टिव और आक्रामक खिलाड़ी, जीतने के बाद रो देता है। ये आंसू उनके दर्द के गवाह थे, खैर, जिस खिलाड़ी ने अपने देश के लिए जिंदगी को दाव पर लगा दिया हो, उसे इस देश के लोग कैसे दूर जाने देते और एक साल बाद अप्रैल में यह खिलाड़ी अपनी मजबूत इच्छा शक्ति, जीतने का जुनून और पूरे भारत की दुआओं के साथ कैंसर को मात देकर अपने वतन वापस लौटा।

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युवराज सिंह को कैंसर ने बुरी तरह प्रभावित किया

लेकिन, इस एक साल में युवराज सिंह को कैंसर के ट्रीटमेंट के दौरान शारीरिक और मानसिक कई गंभीर स्थितियों से रोजाना लड़ना पड़ा। लेकिन, युवराज ने हर बॉल पर छक्का मारा और पूरा एक साल एक विजयी खिलाड़ी की तरह खेला। उन्हें बाईं फेफड़े में ‘मीडियास्टिनल सेमिनोमा’ नाम का दुर्लभ कैंसर था, जो कि काफी जानलेवा होता है। युवराज सिंह को कैंसर के इलाज के दौरान कीमोथेरिपी के आखिरी दौर में वह बस ये प्रार्थना करते थे कि, ‘हे ईश्वर मुझे जल्द इससे मुक्ति दे’। युवराज ने अपने अनुभवों के बारे में बताया था, कि ‘जब कोई उन्हें देख या सुन नहीं रहा होता था, तो वह किसी बच्चे की तरह रोते थे। ऐसा इसलिए नहीं था कि कैंसर से उनकी जिंदगी को क्या होगा, बल्कि उनके रोने का कारण था कि वह किसी भी प्रकार की बीमारी नहीं चाहते थे। वो अपनी जिंदगी को सामान्य चाहते थे, जो कि नहीं रही थी।’ उन्होंने इसके साथ ही बताया कि, ‘कीमोथेरेपी के साइड इफेक्ट्स की वजह से कई दिनों तक मुझमें इतनी ताकत भी नहीं रहती थी, कि मैं अपने पैरों पर चल सकूं। लेकिन, मैंने वापस आकर अपने देश के लिए खेलने का ठान रखा था। यही एक चीज थी, जो मुझे कैंसर से लड़ने में हर समय प्रेरित करती थी।’ युवराज सिंह का कहना था, कि यह सिर्फ इसलिए हो पाया क्योंकि उन्होंने मान लिया था कि वह कैंसर को मात दे सकते हैं। जब जिंदगी आपको गिरा दे, तो सिर्फ उठना ही एक विकल्प बच जाता है। यही बात वह अब कैंसर के पीड़ित हर मरीज से कहते हैं, कि जबतक आप हार नहीं मानते, तबतक कोई भी बीमारी या स्थिति आपको नहीं हरा सकती। चाहे कोई मैच हो या फिर किसी भी तरह का कैंसर।

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कैंसर से किसी मरीज के दिमाग पर क्या गुजरती है?

कैंसर की वजह से जितनी पीड़ा और तनाव शरीर पर पड़ता है, उससे कहीं ज्यादा प्रेशर दिमाग पर असंतुलित भावनाओं से पड़ता है। कैंसर का ट्रीटमेंट उसकी स्टेज के आधार पर होता है, जिसमें कई हफ्तों से महीने तक लग सकते हैं। इस दौरान मरीजों को डर, उदासी, चिंता, गुस्सा और असहजता के कई भावों से रोजाना दो-चार होना पड़ता है। इसके अलावा कैंसर के इलाज के दौरान आपको अपनी अच्छी सेहत, दिखावट में स्थाई या अस्थाई नकारात्मक बदलाव, शारीरिक ताकत, पैसा, आजादी खो जाने का भी दुख रहता है। तो आइए, जानते हैं कि किसी कैंसर के मरीज को ट्रीटमेंट के दौरान किन-किन भावनाओं से गुजरना पड़ता है और उसके दिमाग पर क्या-क्या गुजरती है।

युवराज सिंह को कैंसर- शॉक

युवराज सिंह को कैंसर का पता लगने के बाद शॉक लग गया था, मतलब वह यह समझ ही नहीं पा रहे थे कि उन्हें ये बीमारी कैसे हो गई। कैंसर का पता चलने पर सबसे पहले व्यक्ति को शॉक की भावना आती है। जिसकी वजह से व्यक्ति एकदम सुन्न हो जाता है और उसे कोई भाव महसूस नहीं होता है। इस बीमारी को स्वीकार करने में लोगों को समय लगता है। लेकिन, कुछ लोग शॉक के बावजूद इस बीमारी को स्वीकार नहीं कर पाते, जिससे कैंसर के इलाज में मुश्किले आती हैं और कैंसर की बीमारी से लड़ने के लिए पर्याप्त इच्छाशक्ति नहीं कर पाते।

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डर और चिंता

युवराज सिंह को कैंसर के दौरान जैसा महसूस होता था, वैसे किसी भी मरीज को महसूस होता है। बेशक पिछले कई दशकों में कैंसर के इलाज में काफी तरक्की हुई है। लेकिन आज भी कैंसर का नाम सुनते ही लोग बुरी तरह डर जाते हैं। ये डर उन्हें कैंसर के ट्रीटमेंट, साइड इफेक्ट्स, टेस्ट रिजल्ट और कैंसर का उनकी जिंदगी पर प्रभाव से संबंधित हो सकता है। इसी डर से उन्हें अपनी जिंदगी के लिए चिंता पैदा होती है। दरअसल, चिंता या स्ट्रेस लेने पर शरीर में एड्रेनालाईन उत्पादित होता है, जो हार्ट बीट को तेज कर देता है और ब्लड प्रेशर को हाई कर देता है। इसके साथ ही आपकी सांसे तेज होने लगती हैं और हाथों में पसीना आने लगता है व मुंह सूखने लगता है। दरअसल, खतरे भांपने के बाद शरीर यह नेचुरल रिएक्शन देता है, जिससे लोग किसी अचानक आए खतरे के प्रति प्रतिक्रिया देते हैं। कुछ लोगों में यह समस्या अपने आप ठीक हो जाती है, जबकि कुछ लोगों में यह चलती रहती है और एंजायटी का कारण बनती है। जिससे उनमें चिड़चिड़ापन और गुस्सा आने की दिक्कतें होने लगती हैं।

पैनिक अटैक

कुछ लोगों में एंजायटी की वजह से पैनिक अटैक की समस्या उत्पन्न हो जाती है। यह किसी भी स्थिति की वजह से बढ़ सकती है, जैसे किसी टेस्ट को करवाते हुए या फिर किसी मेडिकल प्रोसिजर के मध्य में। इस मानसिक समस्या में व्यक्ति को सांस की दिक्कतें, तेज हृदय गति, चक्कर आना, पसीना आना, शरीर में कंपन महसूस होना, छाती में दर्द आदि के लक्षण दिखने लगते हैं। यह समस्या आमतौर पर कुछ देर बाद या वह स्थिति गुजरने जाने के बाद सामान्य होने लगती है, लेकिन कुछ लोगों में पैनिक अटैक रुक नहीं पाता और हार्ट अटैक जैसी समस्या का खतरा पैदा कर सकता है। इससे बचने के लिए आप डॉक्टर की मदद ले सकते हैं।

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युवराज सिंह को कैंसर : गुस्सा, अपराधबोध और दोष देने की भावना

कैंसर या ऐसी किसी जानलेवा बीमारी का पता लगने के बाद व्यक्ति के मन में यह सवाल आना स्वाभाविक है कि, आखिर मैं ही क्यों? इस सवाल के साथ ही आपके अंदर परिवारवालों, दोस्तों, हेल्थ प्रोफेशनल, दुनिया या फिर अपने खुद के लिए गुस्से की भावना आ सकती है, कि आखिर आपने ऐसा क्या किया, जो इस बीमारी का कारण बना। इसके अलावा, आपको गुस्सा आ सकता है कि, आपने हर चीज तरीके से और सावधानी से की, लेकिन फिर भी आपको कैंसर हो गया। आपको बता दें कि, कैंसर के शुरुआती स्टेज में कोई लक्षण नहीं दिखते और इसका पता लगने में भी समय लगता है। लेकिन, इस पर आपका कोई नियंत्रण नहीं है। यह किसी को भी हो सकता है, इसलिए किसी भी वजह से खुद को दोष देना सही तरीका नहीं है।

उदासी

युवराज सिंह को कैंसर की तरह किसी को भी कैंसर होने पर उदासी आ सकती है। यह एक नेचुरल इमोशन है, जो कि कुछ बुरा हो जाने पर या किसी चीज पर नियंत्रण खो जाने पर हो सकता है। आप कैंसर की वजह से दिन-प्रतिदिन अपने शरीर, जिंदगी और भविष्य में होने वाले बदलावों की वजह से उदास हो सकते हैं। अगर, आप लगातार उदासी का अनुभव कर रहे हैं, तो यह डिप्रेशन का संकेत हो सकता है।

अकेलापन

कैंसर में हर किसी व्यक्ति के आपका साथ देने के बावजूद आप अकेलापन महसूस कर सकते हैं। अगर आपके परिवार वाले या दोस्तों को आपका इलाज करवाने में दिक्कतें हो रही हैं या आप अपना काम न कर पा रहे हों या फिर अपनी जिंदगी को सामान्य रूप से न जी पाने की वजह से आपको अकेलापन महसूस हो सकता है। इस समय आप ऐसे दूसरे व्यक्तियों से भी मिलें, जो पहले इस समस्या से गुजर चुके हैं और सफलतापूर्वक इलाज करवा चुके हैं। इससे आपको ताकत मिलेगी और बेहतर महसूस कर पाएंगे।

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बेसहारा होने की भावना

युवराज सिंह को कैंसर की तरह किसी को भी कैंसर होने पर बेसहारा होने की भावना आ सकती है। क्योंकि, इस दौरान आपका भावनाओं, बीमारी और खासकर, जिंदगी पर कोई नियंत्रण नहीं रह जाता। जिससे आप बेसहारा और कमजोर महसूस करने लगते हैं। यह स्थिति काफी मुश्किल होती है, विशेषकर उन लोगों के लिए, जो हमेशा स्वतंत्र और आजादी से काम करते आ रहे हों या फिर आप हमेशा सभी का खुद ख्याल रखते आ रहे हों और अब दूसरों को आपका ख्याल रखना पड़ रहा हो।

युवराज सिंह को कैंसर : सकारात्मक रहने से मिलती है मदद

युवराज सिंह को कैंसर में इन्हीं सभी भावनाओं का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्हें कभी हार नहीं मानी और हमेशा सकारात्मक और दृढ़ निश्चयी रहे। आपको सबसे पहले कैंसर को स्वीकार करना पड़ेगा और अपने आप या किसी अन्य को दोष देने से बचना होगा। आप यथार्थ में जिएं और आपकी मानसिक स्थिति में थोड़ा सुधार आने लगेगा। हालांकि, कभी-कभी नकारात्मक विचार आपको परेशान कर सकते हैं, लेकिन इससे आपको कमजोर होने की जरूरत नहीं है। बल्कि, यह मानना चाहिए कि एक दिन हर परिस्थिति से निकला जा सकता है और मुझे कैंसर को हराना ही है।

कैंसर से शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव

  1. कैंसर के ट्रीटमेंट के दौरान आपके सिर्फ दर्द ही नहीं, बल्कि थकान का भी सामना करना पड़ता है। जिससे आपको दैनिक गतिविधि या सामान्य जिंदगी जीने में मुश्किलें हो सकती हैं।
  2. कैंसर की वजह से आप स्वस्थ महसूस नहीं करते और आपकी भूख कम होने लगती है। हालांकि, कुछ लोगों में चिंता या अवसाद के कारण भूख बढ़ भी सकती है। भूख में बदलाव होने से आपके शारीरिक वजन में भी बदलाव हो सकता है, जो कि चिंता को और बढ़ा देता है।
  3. कैंसर ट्रीटमेंट में आपको कई शारीरिक बदलावों से गुजरना पड़ता है। जैसे- शरीर के बालों का गिरना या किसी शारीरिक हिस्से को खो देना। हालांकि, यह बदलाव स्थाई या अस्थाई हो सकते हैं, लेकिन यह आपके खुद को लेकर भावनाओं को बदल सकते हैं और आत्म-विश्वास में गिरावट ला सकते हैं।
  4. कुछ प्रकार के कैंसर या ट्रीटमेंट आपके सेक्शुअल ऑर्गन को सीधे तौर पर प्रभाव डालते हैं। इसके अलावा, यह आपके लिबिडो पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। इसके अलावा, कुछ सेक्शुअल ऑर्गन के कैंसर की वजह से आपकी फर्टिलिटी पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

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डिस्क्लेमर

हैलो हेल्थ ग्रुप हेल्थ सलाह, निदान और इलाज इत्यादि सेवाएं नहीं देता।

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Current Version

12/03/2021

Surender aggarwal द्वारा लिखित

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील

Updated by: Nikhil deore


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Surender aggarwal द्वारा लिखित · अपडेटेड 12/03/2021

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