बच्चों के व्यहवार को समझना किसी भी पेरेंट के लिए आसान नहीं होता। बच्चे हर दिन कुछ नया सीखते हैं और पुराना भूल जाते हैं। पेरेंट्स भी बच्चे के लगातार बदलते व्यवहार और आदतों को नहीं समझ पाते। कई मामलों में देखा जाता है कि कुछ बच्चे और यहां तक की वयस्क भी खुद में बात करने लगते हैं। अक्सर पेरेंट्स को लगता है कि यह कोई समस्या है। लेकिन इसके उलट यह एक अच्छा संकेत है। चाइल्ड माइंड इंस्टीट्यूट के क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट राहेल बुशमैन कहते हैं कि बच्चों का खुद से बात करना (Children talking to themselves) अपने अंदर की भावनाओं को समझना होता है।
इसके अलावा बच्चों का खुद से बात करना (Children talking to themselves), उनके लिए यह बताने का एक तरीका हो सकता है कि उनके आस-पास क्या हो रहा है। बच्चों का खुद से बात करना भाषा का अभ्यास करना और किसी के सामने कुछ बोलने से पहले उसका अभ्यास करना भी हो सकता है। हालांकि, बच्चों का खुद से बात करना (Children talking to themselves) एक सकारात्मक प्रक्रिया है। लेकिन, कई बार लोग इसको गलत समझ लेते हैं। हम सभी समय-समय पर खुद से बात करते हैं लेकिन अगर यह कभी-कभी हो रहा है, तो यह चिंता का कारण नहीं है। साथ ही यह सोचना भी जरूरी है कि बच्चों का खुद से बात करना किसी परेशानी का इशारा तो नहीं।
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क्यों करते हैं बच्चे खुद से बात?
खुद बात करना किसी बीमारी से जुड़ा हो सकता है या नहीं? अक्सर ऐसा कहा जाता है कि जो बच्चे खुद से बात करते हैं वे किसी परेशानी से पीड़ित, स्ट्रेस में या उनके साथ कुछ गलत हुआ है इसलिए ऐसा करते हैं। हालांकि, इसकी सच्चाई कुछ और है। बच्चों का खुद से बात करना (Children talking to themselves) इस बात को बताता है कि वे न केवल वे मानसिक रूप से स्वस्थ हैं बल्कि वो इंटेलिजेंट और प्राइवेट स्पिच को प्रैक्टिस कर रहे हैं। इंटेलिजेंस और प्राइवेट स्पिच के बीच के संबंध को अच्छा माना जाता है। खुद बात करना हमेशा नकारात्मकता को शो नहीं करता है।
डॉक्टरों द्वारा किए गए अध्ययनों के अनुसार, बच्चों का खुद से बात करना (Children talking to themselves) उनके विचारों को और अधिक सटीक बनाने में मदद करता है। दूसरे शब्दों में यह उनको और अच्छे से सोचने में मदद करता है। इस तरह से लिए गए निर्णय अधिक प्रभावी होते हैं। बच्चों को खुद से बात करना उनके विचारों को और अधिक बेहतर और क्लियर बनाता हैं। बच्चों का खुद से बात करना उनकी सोच को और ऑर्गेनाइज करता है, जिससे उनकी पर्सनालिटी में विकास होता है। अगर आपका बच्चा खुद से बात करता है, तो उसे बताएं कि इसका मतलब है कि वह बहुत स्मार्ट है।
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बच्चों का खुद से बात करना (Children talking to themselves) क्यों है अच्छा
बहुत से माता-पिता समय-समय पर अपने बच्चों को अकेले खेलते और खुद से बातें करते देखते हैं। कई बार माता-पिता अपने बच्चों को ऐसे देखकर परेशान भी होते हैं लेकिन उन्हें इसका कारण नहीं पता होता है। बच्चे तो बच्चे कई बार पेरेंट्स भी खुद से बात करते हैं। बच्चों का खुद से बात करना (Children talking to themselves) किसी भी कारण से हो सकता है। कई बच्चे अलग-अलग एक्टिविटी करते हुए भी खुद से बात करते हैं लेकिन यह निश्चित रूप से बच्चे में इंटेलिजेंस का संकेत है।
अगर आपके बच्चों में खुद से बात करने की आदत है, तो ऐसा करने के लिए उन्हें कभी भी डांटे-फटकारें नहीं। खुद से बात करने की आदत उनकी भाषा के विकास में भी बहुत योगदान देती हैं और उनके व्यवहार को कंट्रोल करने में भी मदद करती है।
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कब करते हैं बच्चे खुद से बात
बच्चों में खुद से बात करना वैसे तो सामान्य है लेकिन ऐसी तीन बहुत सामान्य स्थितियां हैं, जिनमें बच्चे खुद से बात करते हैंः
- किसी काम को शुरू करने से पहले
- जब बच्चा कुछ काम कर रहा हो
- कुछ काम खत्म होने के बाद
बच्चे के ऐसा करने के पीछे एक प्लानिंग होती है, जिसमें बच्चा किसी काम को करने से पहले योजना बनाता है। चाहे वह खेल रहा हो या कोई काम कर रहा हो। बच्चों का खुद से बात करना (Children talking to themselves) उनके मानसिक स्वास्थ्य (Mental health) के लिए अच्छा है। ऐसा करना उनके न्यूरॉन्स को एक्टिव रखता है।
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बच्चों का खुद से बात करना कितना फायदेमंद
- खुद से बात करने वाले बच्चे हमेशा खुद को काम करने के लिए तैयार रखते हैं। वे अपनी परेशानियों और परिस्थितियों को खुद हल करना सीखते हैं, जो भविष्य में उनके लिए बहुत मददगार साबित हो सकती हैं।
- बच्चों का खुद से बात करना (Children talking to themselves) उन्हें एक कम्यूनिकेटिव व्यक्ति के रूप में विकसित होने में मदद करता है, जिसका मतलब है वे आगे चलकर किसी से भी आसानी से बात कर सकते हैं।
- अगर कोई बच्चा खेलते समय खुद से बात करता है, तो उसकी भाषा बेहतर तरीके से विकसित होती है।
- बच्चा अपने आस-पास की चीजों में अंतर समझना सिखता है और साथ ही जैसे-जैसे वह बड़ा होता है बातों को बेहतर तरीके से समझने लगता है।
- बच्चों का खुद से बात करना उनके दिमाग को लॉजिकल तरीके से काम करने के लिए एक्टिव रखता है। खेलते हुए बच्चों का खुद से बात करना बच्चे को उसके अन्य टास्क को पूरा करने के लिए निर्देश देता है।
- अगर आपका बच्चा जो करना चाहता है वह सब कुछ जोर-जोर से कहता है, तो वह अपनी सीखने की क्षमता को तो बढ़ाता ही है साथ ही इसकी वजह से उसकी भाषा की क्षमता में भी सुधार होता है।
- खेलते हुए बच्चों का खुद से बात करना इस बात का संकेत है कि वह अपनी आवाज से अपने ज्ञान और जिज्ञासा को प्रोत्साहित करता है। इस तरह करने से वह खुद को और बेहतर जानते हैं।
इसलिए जब हम किसी काम को करते समय बच्चों को खुद से बात करते हुए देखते हैं, तो हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि वे किसी समस्या का समाधान ढ़ूढ़ रहा है।
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बच्चों का खुद से बात करना कितना सही
अगर हम अपने बच्चों को नोटिस करते हैं, तो हमें एहसास होता है कि वह तब ज्यादा बोलते हैं जब वह अकेले होते हैं। मनोवैज्ञानिक, माता-पिता और शिक्षक इस व्यवहार को हमेशा नेगेटिव लेते हैं। उनको लगता है कि बच्चों का खुद से बात करना (Children talking to themselves) किसी डिस्ट्रेक्शन या दिमागी बीमारी का कारण हैं। दूसरी ओर बच्चों का खुद से बात करना कुछ विशेषज्ञों के लिए पॉजिटिव साइन है। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि इस स्थिति में बच्चों के दिमाग का विकास ज्यादा अच्छे से होता है।
अगर हम इस मॉडल को बच्चे के विकास के रूप में देखते हैं, तो स्कूल के टीचर्स को इसे बच्चों के स्वास्थ्य में बढ़ावा देना चाहिए और जिन बच्चों के अंदर कोई मानसिक समस्या है उनमें इसे लागू करना चाहिए।
क्यों जरूरी है बच्चों का खुद से बात करना
कई शोधकर्ताओं ने कहा है कि इंटेलिजेंस और बच्चों का खुद से बात करने के बीच में गहरा संबंध है। यह बताता है बच्चा जितना बुद्धिमान होता है, वह उतना ही अधिक अपने आप से बात करता है। हालांकि समय के साथ उनके बोलने की क्वालिटी और अधिक बेहतर हो जाती है।
जो बच्चे खुद से बात करते हैं उनके पास खुद की कल्पनाओं को बताने का मौका होता है। बच्चों का खुद से बात करना (Children talking to themselves) उन्हें एक काल्पनिक दोस्त के साथ बात करने और यहां तक कि उन वस्तुओं को देखने और समझने का मौका होता है, जो वास्तव में मौजूद नहीं हैं। बच्चों का खुद से बात करना सेल्फ-कंट्रोल और सोच के विकास के लिए बेहतर विकल्प माना जाता है।
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