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डायबिटीज डिजीज के सबग्रुप्स (Subgroups of Diabetes)
नए शोध से पता चलता है कि टाइप 2 डायबिटीज के उपचार को खास सबग्रुप्स के अनुरूप बनाया जा सकता है। डायबिटीज के सामान्यतया चार प्रकार होते हैं: टाइप 1 डायबिटीज, टाइप 2 डायबिटीज, लटेंट ऑटोइम्यून डायबिटीज इन एडल्ट यानी (LADA) और जेस्टेशनल डायबिटीज। लेकिन, इस क्लासिफिकेशन को लेकर अधिकतर लोगों के दिमाग में बहुत अधिक भ्रम, भ्रांतियां आदि हैं। लैंसेट डायबिटीज & एंडोक्रिनोलॉजी (Lancet Diabetes & Endocrinology) के अनुसार टाइप 2 को अन्य कुछ सबग्रुप्स में बांटा जाता है। डायबिटीज के नए क्लासिफिकेशन सिस्टम के अनुसार डायबिटीज के कुल पांच सबग्रुप हैं।
पहले ग्रुप को डायबिटीज के ऑटोइम्यून टाइप के रूप में जाना जाता है, यानी टाइप 1 डायबिटीज और LADA। इसके चार ग्रुप्स अन्य ग्रुप हैं। शेष चार ग्रुप टाइप 2 डायबिटीज के रोगियों से संबंधित हैं और उन्हें उनके इंसुलिन प्रतिरोध की गंभीरता, एवरेज ब्लड शुगर लेवल (A1c) के आधार पर बांटा जाता है। आइए जानते हैं डायबिटीज डिजीज के सबग्रुप्स (Subgroups of Diabetes) कौन से हैं:
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सीवियर ऑटोइम्यून डायबिटीज (Severe autoimmune diabetes) यानी सेड (SAD)
सीवियर ऑटोइम्यून डायबिटीज यानी टाइप 1 डायबिटीज और LADA का लगभग डायबिटीज के दस प्रतिशत रोगियों में निदान होता है। सीवियर ऑटोइम्यून डायबिटीज, ऑटोइम्यून डायबिटीज का एक स्लो प्रोग्रेसिंग प्रकार है। यह समस्या इसलिए होती है क्योंकि हमारा पैंक्रियाज पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बना पाते हैं। लेकिन, टाइप 1 डायबिटीज में नियमित रूप से इंसुलिन की जरूरत होती है। कई शोधकर्ता यह मानते हैं कि कई बार LADA को टाइप 1.5 डायबिटीज (Type 1.5 diabetes) भी माना जाता है। या इसे टाइप 1 डायबिटीज (Type 1 diabetes) और टाइप 2 डायबिटीज के बीच की कंडिशन माना जाता है।
जिन लोगों को यह समस्या होती है आमतौर पर उनकी उम्र तीस साल से अधिक होती है। अगर आपको टाइप 2 डायबिटीज की समस्या है, तो आपके लिए फिजिकली एक्टिव रहना और वजन कम करना बेहद जरूरी है। इसके साथ ही डॉक्टर से बात करें कि आपके लिए कौन सा उपचार सही रहेगा? लटेंट ऑटोइम्यून डायबिटीज इन एडल्ट यानी (LADA) को ब्लड शुगर लेवल को मैनेज कर के कंट्रोल किया जा सकता है। इसलिए लिए आपका व्यायाम करना, वजन कम करना और अपनी डायट का ध्यान रखना जरूरी है। इसके साथ ही सही दवाईयों और इंसुलिन को भी लें। डायबिटीज डिजीज के सबग्रुप्स (Subgroups of Diabetes) में से इस डायबिटीज के बारे में अधिक रिसर्च की जानी जरूरी है, ताकि इसके उपचार का सही तरीका जानने में मदद मिल सके।
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सीवियर इंसुलिन-डेफिसिएंट डायबिटीज (Severe insulin-deficient diabetes) यानी (SIDD)
डायबिटीज डिजीज के सबग्रुप्स (Subgroups of Diabetes) में अगला है सीवियर इंसुलिन-डेफिसिएंट डायबिटीज। यह कंडिशन सीवियर ऑटोइम्यून डायबिटीज (Severe autoimmune diabetes) के समान ही होती है। इसके रोगी भी अधिकतर कम उम्र के लोग होते हैं। हालांकि, उनमें एंजाइम ग्लूटामिक एसिड डिकार्बोक्सिलेस (Glutamic acid decarboxylase) यानी GADA नहीं होता है। इस समस्या के रोगियों में डिफेक्टिव सेल फंक्शन होता है। लेकिन, इसके कारणों की जानकारी नहीं है। इस समस्या से पीड़ित लोगों में इंसुलिन पर्याप्त मात्रा में प्रोड्यूस होते हैं। लेकिन, इससे पीड़ित लोगों में उन सेल्स की कमी होती है, जो इंसुलिन प्रोड्यूस करते हैं।
इस समस्या से पीड़ित लोगों का इम्यून सिस्टम उनकी बीमारी का कारण नहीं होता है। यही नहीं, डायबिटीज डिजीज के सबग्रुप्स (Subgroups of Diabetes) में से इस ग्रुप से पीड़ित लोगों में सब कुछ टाइप 1 डायबिटीज (Type 1 diabetes) जैसा होता है। बस उनमें वो “ऑटोएंटीबॉडीज” नहीं होते हैं, जो टाइप 1 को इंगित करते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार ऐसा क्यों होता है इसके बारे में जानकारी नहीं है।
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सीवियर इंसुलिन-रेसिस्टेंट डायबिटीज (Severe insulin-resistant diabetes) यानी (SIRD)
डायबिटीज के सब ग्रुप्स में से इस ग्रुप का नाम है सीवियर इंसुलिन-रेसिस्टेंट डायबिटीज (Severe insulin-resistant diabetes)। इनका शिकार अधिकतर वयस्क होते हैं। यह वयस्क गंभीर इंसुलिन रेजिस्टेंस से पीड़ित होते हैं। उनके A1c लेवल्स (A1c levels) बदलते रहते हैं और उन्हें किडनी डिजीज (Kidney disease) होने की संभावना अधिक रहती है। इंसुलिन एक हॉर्मोन है, जिसे हमारा पैंक्रियाज बनाता है। इंसुलिन हमारे सेल्स को ग्लूकोज को एब्सॉर्ब करने और उनका प्रयोग करने की अनुमति देती है। इंसुलिन रेजिस्टेंस से पीड़ित लोगों के सेल्स सही तरीके से इंसुलिन प्रयोग नहीं कर पाते हैं। जब सेल्स ग्लूकोज को एब्सॉर्ब नहीं कर पाते हैं, तो ब्लड में इसका लेवल बढ़ने लगता है।