अपने बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर हर माता-पिता चिंतित रहते हैं। उनका परेशान रहना स्वभाविक भी है क्योंकि कमजोर इम्युनिटी होने के कारण बच्चे बहुत जल्दी बीमार पड़ते हैं। उम्र के बढ़ने के साथ ही बच्चे में यह समस्याएं कम होती जाती हैं। हालांकि, यह अधिकतर समस्याएं जल्दी ठीक होने वाली और घातक नहीं होती। घर पर भी इनका उपचार संभव होता है। आज हम बात करने वाले हैं बच्चों में संक्रामक रोग (Infectious Diseases in Children) के बारे में। आइए जानें, बच्चों में होने वाली इन इंफेक्शस डिजीज के बारे में:
संक्रामक रोग क्या होते हैं?
बच्चों में संक्रामक रोग (Infectious Diseases in Children) के बारे में जानने से पहले आइए जानते हैं कि आखिर यह संक्रामक रोग होते क्या हैं? संक्रामक रोग जीवों के कारण होने वाले विकार हैं – जैसे कि बैक्टीरिया (Bacteria), वायरस (Viruses), कवक (Fungi) या परजीवी (Parasites) आदि। यह कई जीव हमारे शरीर में और उसके आस-पास रहते हैं। वे सामान्य रूप से हानिरहित या सहायक होते हैं। लेकिन कुछ स्थितियों में, यह जीव बीमारी का कारण बन सकते हैं। कुछ संक्रामक रोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में पास हो सकते हैं। कुछ इंसेक्ट्स या अन्य जानवरों द्वारा ट्रांसमिटेड होते हैं। दूषित भोजन का सेवन करके या पानी पीने या पर्यावरण में जीवों के संपर्क में आने से भी यह रोग हो सकते हैं।
जैसा की आपको पहले ही बताया गया है कि बच्चों में संक्रामक रोग (Infectious Diseases in Children) होने की संभावना अधिक होती है। तो जानें इन संक्रामक रोगों के बारे में बच्चों की उम्र के अनुसार।
जनरल फिजिश्यन डॉक्टर अशोक रामपाल का कहना है कि फ्लू वैक्सीन इन्फ्लुएंजा संक्रमण वायरस से बचाने में मदद करती है और इसे हर वर्ष लगवाना चाहिए। फ्लू के टीके सभी के लिए जरूरी हैं। जैसा कि छोटे बच्चों की इम्यनिटी काफी कमजोर (Weak Immunity)हाेती है, उनमें फ्लू से उच्च जोखिम माने जाते हैं। बड़े बच्चों की अपेक्षा छोटे बच्चों में इसके होने का खतरा अधिक होता है। इसलिए, इस घातक वायरस के लिए फ्लू वैक्सीन (Flu Vaccine) बच्चाें के लिए बहुत जरूरी है। इससे उनकी जान सुरक्षित रहती है। इसके अलावा, फ्लू वैक्सीन बच्चों में कोराेना (Corona) के खतरों को भी कम करने के साहयक है। भारत में कोरोना की दूसरी लहर के बाद, तीसरी लहर (Third Wave for child) बच्चों के लिए आ सकती है। तो ऐसे में यदि बच्चों को अगर फ्लू शॉट लगा रहेगा, तो उनमें कोरोना का संकम्रण इतना ज्यादा प्रभावित नहीं करता है, यानि की जान का जोखिम कम होता है।
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4-7 साल की उम्र के बच्चों में संक्रामक रोग (Infectious Diseases in Children : 4-7 years of age)
4 से 7 साल की उम्र के बच्चे अभी-अभी स्कूल जाना शुरू करते हैं। स्कूल जाने वाले बच्चों में संक्रमण होने की संभावना अधिक होती है। क्योंकि, स्कूल में अन्य बच्चों से मिलने-जुलने से यह समस्या एक बच्चे से दूसरे बच्चे तक आसानी से पास होती है। 4-7 साल की उम्र के बच्चों में संक्रामक रोग (Infectious Diseases in Children) इस प्रकार हैं:
सामान्य सर्दी जुकाम Common cold
मौसम के बदलने के साथ ही बच्चों में सामान्य सर्दी जुकाम होना सामान्य है। हालांकि, इससे ज्यादा समस्या नहीं होती। लेकिन, बच्चे इसमें परेशानी महसूस कर सकते हैं। सामान्य सर्दी-जुकाम के लक्षण इस प्रकार हैं:
- नाक का बहना या बंद हो जाना (Runny Nose or Congestion)
- खांसी (Cough)
- छींक (Sneezing)
- आंखों में पानी आना (Watery Eyes)
कारण (Cause): बच्चों में सामान्य सर्दी जुकाम का कारण एक वायरस को माना जाता है, जिसे राइनोवायरस कहा जाता है।
उपचार (Treatment): सामान्य सर्दी जुकाम होने पर बच्चों को अपनी मर्जी से खांसी या जुकाम की दवाई नहीं देनी चाहिए। लक्षणों को दूर करने के लिए एसिटामिनोफेन (Acetaminophen) या आइबूप्रोफेन (Ibuprofen) दे सकते हैं। लेकिन, डॉक्टर की सलाह के बिना इन दवाईयों को न दें। घरेलू नुस्खों जैसे अदरक, शहद आदि का प्रयोग करके बच्चे को जल्दी राहत मिलेगी।
कंजंक्टिवायटिस या पिंकआय (Conjunctivitis or Pinkeye)
बच्चों में संक्रामक रोग (Infectious Diseases in Children) में कंजंक्टिवायटिस भी आम है। इस समस्या के होना दर्दभरा हो सकता है। यह आयबॉल और आंतरिक पलक की बाहरी झिल्ली की सूजन या संक्रमण है। यह संक्रमण आमतौर पर 7 से 14 दिनों में उपचार के बिना ठीक हो जाता है। इसके लक्षण इस प्रकार हैं:
- आंखों में लालिमा (Eye redness)
- सूजन (Swelling)
- आंखों में समस्या (eye discomfort)
- आंखों में खुजली (Itching)
कारण (Causes): इस बच्चों में संक्रामक रोग (Infectious Diseases in Children) का कारण बैक्टीरिया, वायरस, एलर्जी या आय इर्रिटेन्ट्स जैसे केमिकल आदि होते हैं। बैक्टीरिया या वायरस के कारण होने वाली यह समस्या संक्रामक होती है।
उपचार (Treatment) : अगर कंजंक्टिवायटिस या पिंकआय का कारण बैक्टीरिया हो, तो इसका उपचार एंटीबायोटिक दवाईयों या आय ड्रॉप्स से किया जाता है। अन्य तरह के कंजंक्टिवाइटिस का उपचार एंटीबायोटिक्स से नहीं किया जाता। इसमें अन्य तरीकों का प्रयोग किया जा सकता है।
कान में इंफेक्शन (Ear Infection)
कान का संक्रमण ज्यादातर छोटे बच्चों में होता है क्योंकि उनमें छोटी और तंग यूस्टेशियन ट्यूब (Eustachian Tubes) होती है। यह समस्या हलकी या गंभीर दोनों तरह की होती है। इसके लक्षण इस प्रकार हैं:
- कान में दर्द (Ear pain)
- बुखार (Fever)
- कुछ भी निगलने, खाने या सोने में समस्या (Trouble in Eating, Swallowing or Sleeping)
कारण (Causes) : कान में इंफेक्शन तब होता है जब वायरस या बैक्टीरिया इयरड्रम के पीछे की जगह में पैदा हो कर वहां पस पैदा करते हैं।
उपचार (Treatment): इसके उपचार के लिए डॉक्टर एंटीबायोटिक दे सकते हैं, अगर इसका कारण बैक्टीरिया हों। लेकिन, अगर इसका कारण वायरस हो तो एंटीबायोटिक किसी काम नहीं आते। ऐसे में डॉक्टर आपके बच्चे को दर्द या अन्य लक्षणों को कम करने में लिए दवाईयां दे सकते हैं। आमतौर पर यह समस्या कुछ दिनों में स्वयं ही ठीक हो जाती है।
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चेचक (Chickenpox)
चेचक उन बच्चों के लिए बेहद संक्रामक है जिन्हें यह बीमारी पहले नहीं हुई है या जिन्होंने इसकी वैक्सीन नहीं लगवाई है। इसके लक्षण इस प्रकार हैं।
- खुजली वाले रैशेस (Itchy Rashes)
- बुखार (Fever)
- सिरदर्द (Headache)
- भूख की कमी (Loss of Appetite)
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कारण (Causes) : चेचक वेरीसेल्ला जोस्टर (Varicella Zoster) नामक वायरस के कारण होने वाली संक्रामक बीमारी है।
उपचार (Treatment) : बच्चों में संक्रामक रोग (Infectious Diseases in Children) में इस समस्या के उपचार के लिए डॉक्टर आपको एसायक्लोवेर (Acyclovir) नामक दवाई की सलाह देते हैं, जिससे इसके लक्षणों को कम करने में मदद मिलती है। लेकिन, यह दवाई उन्ही बच्चों या वयस्कों को दी जाती हैं जिनमें कॉम्प्लीकेशन्स होती हैं। अन्यथा सही आहार, रोगी की देखभाल, तरल पदार्थों आदि के सेवन से ही रोगी को कुछ दिनों में राहत मिल जाती है।
8-11 साल की उम्र के बच्चों में संक्रामक रोग (Infectious Diseases in Children : 8-11 years of Age)
8-11 साल की उम्र को मिडिल चाइल्डहुड कहा जाता है। इस उम्र के बच्चे मच्योर होते हैं और अपना अच्छा-बुरा समझने लगते हैं। इस उम्र में भी कुछ संक्रामक रोग होने की संभावना रहती है। इस उम्र के बच्चों में संक्रामक रोग (Infectious Diseases in Children) इस तरह से हैं:
स्टमक फ्लू (Stomach Flu)
स्टमक फ्लू यानी गेस्ट्रोएंट्राइटिस पेट से जुड़ी एक ऐसी समस्या है, जो आंतों की ऊपरी लेयर में होने वाली सूजन है। स्टमक फ्लू किसी भी उम्र के लोगों को प्रभावित कर सकता है। लेकिन, इस उम्र के बच्चों में यह सामान्य है। इसके लक्षण इस प्रकार हैं:
- डायरिया (Diarrhea)
- जी मचलना (Nausea)
- उलटी (Vomiting)
कारण (Causes): स्टमक फ्लू यानी गेस्ट्रोएंट्राइटिस का कारण वायरस है।
उपचार (Treatment): इस समस्या के उपचार के लिए कोई खास उपचार उपलब्ध नहीं है। वायरस के कारण होने के कारण इस समस्या में एंटीबायोटिक्स नहीं दी जाती हैं। घरेलू उपचार जैसे तरल पदार्थों का सेवन, साफ-सफाई का ध्यान रखना, पर्याप्त आराम करने से इससे बच्चे को आराम मिल सकता है।
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फिफ्थ डिजीज (Fifth Disease)
इस बच्चों में संक्रामक रोग (Infectious Diseases in Children) को “स्लेप्ड चीक डिजीज ” भी कहा जाता है। क्योंकि इस समस्या में बाजु, टांग और गालों पर लाल रैशेस हो जाते हैं, जो देखने में ऐसे लगते हैं जैसे किसी ने थप्पड़ मारा हो। इस समस्या के लक्षण इस प्रकार हैं:
- हल्का बुखार (Mild Fever)
- सिरदर्द (Headache)
- थकावट (Fatigue)
- गले में खराश (Sore Throat)
- नाक का बहना या बंद होना (Runny or Stuffy Nose)
कारण (Causes): इस समस्या का कारण पर्वोवायरस बी19 (Parvovirus B19) माना जाता है। यह एयरबोर्न वायरस आमतौर पर 8 -11 साल के बच्चों में लार और श्वसन स्राव से फैलता है।
उपचार (Treatment): आमतौर पर, फिफ्थ डिजीज गंभीर बीमारी नहीं होती है और अपने आप दूर हो जाती है। लेकिन, अगर आपके बच्चे के जोड़ों में सूजन हो तो तुरंत डॉक्टर की सलाह जरूरी है। फिफ्थ डिजीज से बचाव के लिए बार-बार हाथ धोना और साफ-सफाई का ध्यान रखना सबसे अच्छा तरीका है।
ब्रोंकाइटिस (Bronchitis)
ब्रोंकाइटिस (Bronchitis) श्वासनली में सूजन होने से होने वाली समस्या है। ब्रोंकाइटिसबच्चों और शिशुओं में फेफड़ों का संक्रमण है। यह 8 -11 साल के बच्चों में संक्रामक रोग (Infectious Diseases in Children) होने की संभावना अधिक रहती है। इसके लक्षण इस प्रकार हैं:
- नाक का बहना (Runny Nose)
- नाक न बंद होना (Stuffy Nose)
- खांसी (Cough)
- हल्का बुखार (Slight Fever)
कारण (Causes): ब्रोंकाइटिस की समस्या बच्चों को तब होती है जब वायरस ब्रांकिओल्स (Bronchioles) को प्रभावित करता है। ब्रांकिओल्स हमारे फेफड़ों में पाएं जाने वाले छोटे एयरवेज़ हैं।
उपचार (Treatment) : ब्रोंकाइटिस आमतौर पर दो से तीन सप्ताह तक रहता है। ब्रोंकाइटिस से पीड़ित अधिकांश बच्चों की देखभाल के साथ घर पर की जा सकती है। अगर बच्चे को सांस लेने से समस्या आ रही हो, सांस लेते हुए आवाज आ रही हो या अन्य सांस संबंधी कोई समस्या हो तो डॉक्टर की सलाह जरूरी है।
हेड लाइस इन्फेस्टेशन (Head Lice Infestation)
लाइस यानी जूं एक इन्सेक्ट है जो हमारे खून को चूसती है और बढ़ती है। यह भी संक्रमण पैदा कर सकती है। खासतौर पर 8 से 11 साल के बच्चों में। इससे होने वाले संक्रमण के लक्षण इस प्रकार हैं:
- बालों में छोटे-छोटे इंसेक्ट्स का होना (Small Bugs in the Hair)
- सिर में खुजली (Itching Head)
- खुजली करने के कारण सिर पर छोटे-छोटे छाले या घाव होना (Small Bumps or Sores from Scratching)
कारण (Causes) : इस संक्रमण का कारण यह छोटे परजीवी यानी जूं होती है जो मनुष्य के खून पर जिन्दा रहती है। यह बेहद संक्रमण बेहद संक्रामक है लेकिन घातक नहीं है।
उपचार (Treatment): इस संक्रमण के लिए बाजार में ओवर-द-कॉउंटर या डॉक्टर की सलाह के बाद कई उपचार मौजूद हैं जैसे शैम्पू, क्रीम, लोशन आदि। इनसे जुएं नष्ट हो जाती हैं। इसके अलावा भी इस संक्रमण को रोकने के लिए डॉक्टर आपको अन्य सुझाव दे सकते हैं।
12 -16 साल की उम्र के बच्चों में संक्रामक रोग (Infectious Diseases in Children : 12-16 years of Age)
12 साल की उम्र के बच्चे टीनएज में कदम रखते हैं। यह ऐसी उम्र होती है जब वो बचपन से किशोरावस्था की तरफ बढ़ते हैं। इस दौरान उनमें शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक बदलाव आना सामान्य है। लेकिन कुछ संक्रामक रोग भी इस दौरान सामान्य हैं। जानिए इस उम्र के बच्चों में संक्रामक रोग (Infectious Diseases in Children) के बारे में
डायरिया (Diarrhea)
डायरिया बार-बार, नरम या ढीले मल त्याग को कहा जाता है। इस उम्र के बच्चों को बार-बार यह समस्या हो सकती है। हालांकि डायरिया आमतौर पर लंबे समय तक नहीं रहता है और अक्सर अपने आप बेहतर हो जाता है। इसके लक्षण इस प्रकार हैं:
- पेट में दर्द (Stomach pain)
- बुखार (Fever)
- भूख न लगना (Loss of Appetite)
- जी मचलना (Nausea)
- उलटी आना (Vomiting)
- वजन का कम होना (Weight Loss)
- डीहायड्रेशन (Dehydration)
कारण (Causes) : आमतौर पर आंतों में संक्रमण के कारण डायरिया होता है। संक्रमण का मुख्य कारण कीटाणु हैं, जैसे:
- वायरस (Viruses)
- बैक्टीरिया (Bacteria)
- परजीवी (Parasites)
उपचार (Treatment): बच्चों में संक्रामक रोग (Infectious Diseases in Children) में अधिकतर इंफेक्शन, जो डायरिया का कारण बनते हैं, बिना किसी उपचार के ठीक हो जाते हैं। तरल पदार्थों का सेवन और आराम कर के बच्चे इस समस्या से राहत पा सकते हैं। इससे बचने के लिए बच्चों को हेल्दी हैबिट्स अपनाने के लिए कहें जैसे साफ-सफाई का ध्यान रखना, बार-बार हाथों को धोना, सही आहार का सेवन आदि।
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निमोनिया (Pneumonia)
निमोनिया फेफड़ों में होने वाला इंफेक्शन है। यह हलके से लेकर गंभीर तक हो सकता है। इस बच्चों में संक्रामक रोग (Infectious Diseases in Children) होने पर बच्चों का खास ख्याल रखना जरूरी है। जानिए, क्या हैं इसके लक्षण:
इस समस्या की शुरुआत हलके लक्षणों जैसे खांसी (Cough) और गले में खराश (Sore Throat) से शुरू होते हैं। इसके अलावा इसके अन्य लक्षण इस प्रकार हैं:
- बुखार (Fever )
- ठंड लगना (Chills)
- सांस का तेजी से बढ़ना (Very Fast Breathing)
- घरघराहट (Wheezing)
- सांस लेने में समस्या (Trouble Breathing)
- छाती और पेट में दर्द (Chest or Abdominal Pain)
- भूख न लगना (Loss of Appetite)
- उलटी और डीहायड्रेशन (Vomiting and Dehydration)
कारण (Causes): निमोनिया आमतौर पर इन्फ्लुएंजा वायरस (Influenza Virus) और एडेनोवायरस (Adenovirus) के कारण होता है। बच्चों में इसका कारण रेस्पिरेटरी सिंसीशल वायरस (Respiratory Syncytial Virus) और ह्यूमन मेटाफॉमोवायरस (Human Metapneumovirus) जैसे अन्य वायरस को माना जाता है।
उपचार (Treatment): अगर डॉक्टर को ऐसा लगता है कि बच्चे को निमोनिया है, तो वो शारीरिक जांच और छाती का एक्स-रे (X-Ray) और ब्लड टेस्ट (Blood Test) करा सकते हैं। इसका इलाज आमतौर पर एंटीबायोटिक्स के साथ किया जाता है। इसके साथ ही डॉक्टर बच्चे को पर्याप्त आराम और तरल पदार्थों का सेवन करने की सलाह दे सकते हैं।
सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिजीज (Sexually Transmitted Diseases)
टीनएज में बच्चों को सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिजीज भी हो सकती हैं जैसे क्लैमाइडिया (Chlamydia), गोनोरिया (Gonorrhea), जननांग दाद (Genital Herpes), ह्यूमन पेपिलोमावायरस (Human Papillomavirus), सिफलिस और ह्युमन इम्युनोडेफिशिएंसी वायरस (HIV) आदि। जानिए इन रोगों के लक्षण इस प्रकार हो सकते हैं :
- प्राइवेट पार्ट में से डिस्चार्ज (Discharge from Private Part)
- दुर्गन्ध (Strong Odor)
- गुप्तांग में खारिश या जलन (Itching or Irritation)
- मूत्र त्याग में समस्या (Painful Urination)
कारण (Causes): सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिजीज के कारण इस प्रकार हैं
- बैक्टीरिया (Bacteria)
- वायरस (Virus)
- परजीवी (Parasites)
उपचार (Treatment) : क्लैमाइडिया और गोनोरिया जैसी कुछ सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिजीज को ठीक करने के लिए आपका डॉक्टर दवा लिख सकते हैं। दाद जैसे अन्य सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिजीज को ठीक नहीं किया जा सकता है, लेकिन आप लक्षणों को दूर करने के लिए दवा ले सकते हैं। यदि आप सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिजीज को दूर करने के लिए दवा ले रहे हैं तो डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही उन्हें लें।
बच्चों में संक्रामक रोग से बचाव के लिए टिप्स (Tips For Parents)
बच्चे और टीनएजर दोनों में संक्रामक रोग होने पर उनकी सही देखभाल जरूरी है। क्योंकि, अधिकतर संक्रामक रोगों की स्थिति में देखभाल से ही काफी राहत मिल जाती है। यही नहीं, बच्चों में संक्रामक रोग (Infectious Diseases in Children) से बचाव के लिए माता-पिता को कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए और बच्चों को भी इनसे बचने के तरीकों के बारे में बताना चाहिए। यह तरीके इस प्रकार हैं:
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- बच्चे को समझाएं कि छींकने, खांसने, नाक साफ करने, बाथरूम का प्रयोग करने बाद और कुछ भी खाने से पहले अपने हाथों को साबुन से अच्छे से साफ करना चाहिए। साबुन मौजूद न होने पर सैनिटाइजर का प्रयोग करें।
- जर्म्स से बचने के लिए हमेशा छींकने या खांसते हुए अपने हाथों की जगह कोहनी का प्रयोग करें।
- जिन लोगों या बच्चों को सर्दी या जुकाम हैं, उनसे अपने बर्तन, बोतल या अन्य सामग्री को शेयर न करें।
- बच्चों को सर्दी-जुकाम जैसे संक्रामक रोगों से बंचाने के लिए विटामिन-सी का सेवन करने को दें।
- संक्रामक रोगों से बचने के लिए मास्क का प्रयोग करें।
- बच्चे में संक्रामक रोग न हों, इसके लिए उन्हें वैक्सीन लगवाएं। इसके लिए डॉक्टर से जानकारी लेना जरूरी है।
- सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिजीज (Sexually Transmitted Diseases) से अपने बच्चों को बचाने के लिए उन्हें यौन संबंधों के बारे में सही जानकारी दें।
- अगर बच्चे को डायरिया, स्टमक फ्लू या अन्य संक्रामक रोग है तो उसे घर में ही रहने दें। उन्हें घर से बाहर या स्कूल न भेजें।
बच्चों को इन संक्रामक रोगों से बचाने के लिए आपको उन्हें सही जानकारी देनी होगी। सही जानकारी और बचाव के तरीकों को अपनाने से संक्रमण का खतरा कम हो जाता है। लेकिन, अगर आपको किसी भी किसी बीमारी का लक्षण दिखाई दे। तो तुरंत अपने बच्चे को डॉक्टर के पास ले जानें और सही समय पर उपचार कराएं।
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