पेरिपार्टम कार्डियोमायोपैथी (Peripartum Cardiomyopathy) को पोस्टपार्टम कार्डियोमायोपैथी (Postpartum Cardiomyopathy) भी कहा जाता है। यह समस्या महिलाओं को गर्भावस्था या प्रसव के बाद होती है। इसे हार्ट फेलियर का असामान्य प्रकार भी कहा जा सकता है। यह स्थिति गर्भावस्था के अंतिम महीनों में या शिशु को जन्म देने के पांच महीनों तक होती है। यह हार्ट मसल से जुडी डिजीज है। यह वो स्थिति है जिसमें पीड़ित महिला के हार्ट चैम्बर्स एंलार्ज हो जाता है और मसल्स कमजोर हो जाते हैं। इससे कम ब्लड फ्लो हो पाता है और हार्ट ऑक्सीजन के लिए शरीर के अंगों की जरूरतों को पूरा नहीं कर पाता।
इसकी वजह से लंग्स, लिवर और अन्य बॉडी सिस्टम प्रभावित होते हैं। यानी, यह समस्या तब होती है जब हार्ट डैमेज हो जाता है, जिसके कारण इसके मसल्स कमजोर हो जाती हैं और उचित प्रकार से पंप नहीं कर पातीं। कुछ देशों की महिलाओं में यह समस्या बेहद सामान्य है। यह बीमारी शिशु को जन्म देने वाली किसी भी उम्र की महिला को हो सकती है, खासतौर पर तीस साल के बाद की उम्र की महिलाओं में ये समस्या ज्यादा देखने को मिलती है। आइए, जानते हैं पेरिपार्टम कार्डियोमायोपैथी (Peripartum Cardiomyopathy) के बारे में, शुरुआत करते हैं इसके कारणों से।
पेरिपार्टम कार्डियोमायोपैथी के कारण क्या हैं? (Causes of Peripartum cardiomyopathy)
पेरिपार्टम कार्डियोमायोपैथी (Peripartum Cardiomyopathy) या पोस्टपार्टम कार्डियोमायोपैथी (Postpartum Cardiomyopathy) के कारण स्पष्ट नहीं हैं। हार्ट बायोप्सी से यह पता चलता है कि इस रोग के कुछ मामलों में महिलाओं में हार्ट मसल में सूजन होती है। ऐसा पहले से ही किसी वायरल बीमारी या एब्नार्मल इम्यून रिस्पांस के कारण हो सकता है। इसके अन्य कारणों में सही न्यूट्रिशन का नहीं मिल पाना (Poor Nutrition), कोरोनरी आर्टरी स्पाज्म (Coronary Artery Spasm), स्मॉल वेसल डिजीज (Small-Vessel Disease) आदि शामिल है। ऐसा माना गया है कि यह रोग जेनेटिक्स के कारण भी ऐसा हो सकता है। इसके रिस्क फैक्टर्स इस प्रकार हैं:
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- मोटापा (Obesity)
- कार्डिएक डिसऑर्डर की हिस्ट्री, जैसे मायोकार्डायटिस (Cardiac Disorders)
- किसी खास दवाई का प्रयोग (Use of Certain Medications)
- स्मोकिंग (Smoking)
- शराब पीना (Alcohol)
- मल्टीपल प्रेग्नन्सी (Multiple Pregnancies)
- अफ्रीकन-अमेरिकन डिसेंट (African-American Descent)
- पुअर न्यूट्रिशन (Poor Nutrition)
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पेरिपार्टम कार्डियोमायोपैथी के लक्षण (Symptoms of Peripartum cardiomyopathy)
पेरिपार्टम कार्डियोमायोपैथी (Peripartum Cardiomyopathy) के लक्षण भी स्पष्ट नहीं होते हैं। यही नहीं, इस बीमारी के लक्षण उन लक्षणों के जैसे भी हो सकते हैं जो गर्भावस्था में होना सामान्य है। लेकिन, इन्हें शुरुआत में पहचानना बेहद जरूरी है, ताकि आपको सही समय पर उपचार प्रदान किया जा सके। गर्भवती महिला का लक्षणों को लेकर आपका सचेत होना बेहद जरूरी है। क्योंकि, यह समय के साथ बदतर हो सकते हैं और यह समस्या हार्ट फेलियर का कारण बन सकती है। पेरिपार्टम कार्डियोमायोपैथी (Peripartum Cardiomyopathy) की समस्या तब होती है जब हार्ट सही से काम नहीं कर पाता और सही दवाब में शरीर में पर्याप्त ब्लड को पंप करने में फैल हो जाता है, ऐसे में हार्ट फेलियर की संभावना बढ़ जाती है। हार्ट फेलियर के लक्षण इस प्रकार हो सकते हैं:
- सांस लेने में समस्या (Breathlessness)
- खांसी (Cough)
- वाटर रिटेंशन, जिससे एड़ियों और पेट में सूजन हो सकती है (Water Retention)
- पैल्पिटेशन यानी एब्नार्मल फास्ट हार्ट रेट (Palpitations)
- ऑक्सीजन लेवल के कम होने के कारण अधिक थकावट (Extreme fatigue)
- गले में नसों में सूजन (Swollen Veins in Neck) : यह समस्या कुछ महिलाएं महसूस कर सकती है, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ब्लड अच्छे से पंप नहीं हो पाता है।
इस समस्या के कारण लंग्स और हार्ट में ब्लड क्लॉट्स होने का रिस्क भी बढ़ जाता है। हालांकि, ब्लड क्लॉट्स का खतरा हर प्रेग्नन्सी में होता है। लेकिन पेरिपार्टम कार्डियोमायोपैथी (Peripartum Cardiomyopathy) में इस का जोखिम बहुत अधिक बढ़ जाता है। क्योंकि, हार्ट सही से पंप नहीं कर पाता। जाने कैसे हो सकता है इस समस्या का निदान?
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पेरिपार्टम कार्डियोमायोपैथी का निदान (Diagnosis of Peripartum cardiomyopathy)
जब भी किसी महिला में पेरिपार्टम कार्डियोमायोपैथी (Peripartum Cardiomyopathy) के लक्षण नजर आते हैं, तो उन्हें तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। ताकि सही समय पर निदान हो सके। इसके निदान के लिए कई टेस्ट किए जा सकते हैं। यह टेस्ट इस बात को जांचने के लिए किए जाते हैं कि मरीज का हार्ट सही से काम कर रहा है या नहीं? इसके साथ ही इन टेस्ट्स से यह भी पता चलता है कि यह लक्षण गर्भावस्था, किसी अन्य हेल्थ कंडशन या कार्डियोमायोपैथी के कारण हैं। जानिए, पेरिपार्टम कार्डियोमायोपैथी के निदान के लिए डॉक्टर किन टेस्ट्स की सलाह दे सकते हैं:
मेडिकल हिस्ट्री (Medical History)
इस स्थिति के निदान के लिए डॉक्टर सबसे पहले रोगी की मेडिकल हिस्ट्री के बारे में जानेंगे, जैसे कोई हार्ट कंडीशन। इसके साथ ही डॉक्टर लक्षणों के बारे में भी जान सकते हैं जैसे थकावट, सांस लेने में समस्या या पेलपिटेशन आदि।
शारीरिक जांच (Physical Exam)
इस बीमारी के निदान के लिए डॉक्टर प्रभावित व्यक्ति की शारीरिक जांच भी कर सकते हैं। इनमें स्टेथोस्कोप की मदद से लंग्स को सुनना आदि शामिल है।
ब्लड टेस्ट्स (Blood Tests)
ब्लड टेस्ट से किडनी, लिवर और थायरॉइड कैसे काम करते हैं, यह पता चलता है। इसके साथ उन हॉर्मोन्स का भी पता चल सकता है, जिनके कारण हार्ट प्रॉब्लम हो सकती है। यही नहीं, ब्लड टेस्ट से अन्य लक्षणों के कारणों के बारे में भी जाना जा सकता है जैसे एनीमिया या इंफेक्शन आदि।
यूरिन टेस्ट (Urine Test)
यूरिन टेस्ट का प्रयोग प्रीक्लेमप्सिया (Preeclampsia) जो प्रेग्नन्सी से जुड़ा हाय ब्लड प्रेशर है और यूरिन इंफेक्शन का पता चल सकता है।
इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (Electrocardiogram)
इस टेस्ट को यह देखने के लिए किया जाता है कि इलेक्ट्रिक इम्पल्स किस तरह से काम करती हैं।
चेस्ट एक्स-रे (Chest X-ray)
चेस्ट एक्स-रे इसलिए किया जाता है ताकि लंग्स में फ्लूइड की जांच की जा सके।
इकोकार्डियोग्राम (Echocardiogram)
यह टेस्ट अल्ट्रासाउंड के जैसा ही होता है, जो हार्ट मसल्स या वॉल्व के स्ट्रक्चर और फंक्शन की जांच करने में मदद कर सकता है। यही नहीं, इसका प्रयोग हार्ट चैम्बर में ब्लड क्लॉट्स की जांच के लिए भी किया जाता है।
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कुछ मामलों में यह डॉक्टर कुछ अन्य टेस्ट भी करा सकते हैं। यह टेस्ट ऊपर दिए टेस्ट्स के परिणामों पर निर्भर कर सकते हैं। यह टेस्ट इस प्रकार हैं:
कार्डिएक मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (Magnetic Resonance Imaging)
कार्डिएक मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग से हार्ट के स्ट्रक्चर और फंक्शन को जांचा जा सकता है। इसके साथ ही इस इमेजिंग टेस्ट को तब भी कराया जा सकता है जब एको टेस्ट का परिणाम क्लियर न हो। यह टेस्ट किसी अन्य स्थिति के निदान के लिए भी कराया जा सकता है जो हार्ट को प्रभावित कर सकती हैं जैसे इंफेक्शन या सूजन।
कोरोनरी एंजियोग्राफी (Coronary Angiogram)
कोरोनरी एंजियोग्राफी दिल में ब्लड की सप्लाई को जांचने के लिए किया जाता है। इस टेस्ट को यह पता करने के लिए भी किया जा सकता है कि आर्टरीज तंग तो नहीं हैं या यह कोरोनरी आर्टरी डिजीज के कारण ब्लॉक तो नहीं हो गयी हैं। निदान के बाद डॉक्टर इस समस्या के उपचार पर फोकस करेंगे। इसके उपचार में दवाईयां और जीवनशैली में बदलाव शामिल है। जानिए, कैसे संभव है इनका उपचार?
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पेरिपार्टम कार्डियोमायोपैथी का उपचार किस तरह से हो सकता है? (Treatment of Peripartum cardiomyopathy)
जिन महिलाओं में पेरिपार्टम कार्डियोमायोपैथी (Peripartum Cardiomyopathy)के लक्षण विकसित होते हैं, उन्हें तब तक अस्पताल में रहने की जरूरत हो सकती है, जब तक यह लक्षण नियंत्रित नहीं हो जाते। इसका उपचार, स्थिति की गंभीरता पर निर्भर करता है। पेरिपार्टम कार्डियोमायोपैथी हार्ट डैमेज इर्रिवर्सिबल है। लेकिन, इस समस्या के कारण हुए हार्ट डैमेज के बाद भी हार्ट लम्बे समय तक काम कर सकता है। हालांकि यह इस बात पर निर्भर करती है कि दिल को कितना नुकसान हुआ है? हार्ट डैमेज की गंभीरता पर यह चीज भी निर्भर करती है कि हार्ट ट्रांसप्लांट कि जरूरत है या नहीं? पेरिपार्टम कार्डियोमायोपैथी (Peripartum Cardiomyopathy) से पीड़ित कई महिलाओं का हार्ट डिलीवरी के बाद सामान्य साइज में वापिस आ जाता है।
ऐसे में नियमित जांच भी जरूरी है। ऐसा माना जाता है कि डिलीवर के बाद तीस से पचास प्रतिशत महिलाओं में हार्ट सामान्य हो जाता है और चार प्रतिशत मामलों में हार्ट ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है। अधिकतर महिलाओं में इसके उपचार में लक्षणों को मैनेज और कम करना शामिल है। लक्षणों को कंट्रोल करने के लिए डॉक्टर इन दवाईयों की सलाह दे सकते हैं :
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दवाइयां (Medicines)
- बीटा-ब्लॉकर्स (Beta-Blockers) : बीटा-ब्लॉकर्स ब्लड प्रेशर को कम करती हैं और ब्लड फ्लो को सुधारती हैं।
- डायूरेटिक्स (Diuretics) : यह दवाइयां शरीर से अधिक पानी और नमक की मात्रा को दूर करती हैं। जिससे ब्लड प्रेशर सही रहता है। इस समस्या से पीड़ित महिला को कम नमक वाली चीजों का सेवन करना चाहिए, ताकि ब्लड प्रेशर लो रहे। इसके साथ ही उन्हें शराब, तंबाकू आदि के सेवन से भी बचना चाहिए, क्योंकि इनसे लक्षण बदतर हो सकते हैं। उपचार के बाद भी यह रोग पूरी उम्र आपको प्रभावित कर सकता है। ऐसे में नियमित दवाईयां और चेकअप कराना जरूरी है।
- गंभीर मामलों में ही डॉक्टर हार्ट ट्रांसप्लांट (Heart Transplant) और बैलून हार्ट पंप (Balloon Heart Pump) की सलाह देते हैं। जानिए कैसे मैनेज किया जा सकता है इस स्थिति को
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जीवनशैली में बदलाव (Lifestyle Changes)
रोगी अपने जीवन में कुछ बदलाव कर इस समस्या के जोखिम को कुछ हद तक कम कर सकता है। खासतौर, पर अगर आप पहली बार मां बनने वाली हैं तो आपको कुछ चीजों का खास ध्यान रखना चाहिए। सही जीवनशैली से आप इस समस्या से बच सकती हैं। अगर आप इस समस्या से पीड़ित हैं तो यह कुछ हेल्दी हैबिट्स आपको स्वस्थ रहने और जल्दी रिकवर करने में मदद कर सकती हैं। आपको जीवनशैली में यह बदलाव करना जरूरी हैं :
- नियमित व्यायाम करें (Getting Regular Exercise)
- पौष्टिक आहार और लो फैट डायट का सेवन करें (Eating Healthy and Low-Fat Diet)
- सिगरेट और शराब से बचें (Avoid Cigarettes)
- पर्याप्त नींद लें और आराम करें (Enough Rest and Sleep)
- तनाव से बचें (Stay away from Stress)
पेरिपार्टम कार्डियोमायोपैथी (Peripartum Cardiomyopathy) का निदान होने पर महिलाओं को अगली गर्भावस्था में भी यह समस्या हो सकती है। इसलिए, आपके डॉक्टर फिर से गर्भवती होने के लिए मना कर सकते हैं। खासतौर पर, अगर आपको पिछली गर्भावस्था में हार्ट फेलियर की समस्या हुई हो। ऐसे में डॉक्टर आपको गर्भावस्था से बचने के लिए बर्थ कंट्रोल के तरीके अपनाने के लिए भी कह सकते हैं।
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अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन (American Heart Association ) के अनुसार अपने दिल को मजबूत और स्वस्थ बनाए रखने के लिए महिलाओं को सिगरेट और शराब को पूरी तरह से नजरअंदाज करना चाहिए। सही और बैलेंस्ड आहार लेना चाहिए और सही तरीके से व्यायाम करना चाहिए। क्योंकि जिन महिलाओं को पेरिपार्टम कार्डियोमायोपैथी (Peripartum Cardiomyopathy) होने का जोखिम होता है, उनमें गर्भावस्था के दौरान यह समस्या होने की संभावना बढ़ जाती है।
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यह थी पेरिपार्टम कार्डियोमायोपैथी (Peripartum Cardiomyopathy) के बारे में पूरी जानकारी। यह एक गंभीर स्थिति है, लेकिन कई महिलाएं इसके बाद भी रिकवर हो जाती हैं। ऐसा भी माना जाता है कि शिशु के जन्म के 6 महीने बाद प्रभावित महिला का हार्ट सामान्य रूप से काम करना शुरू कर देता है, लेकिन कुछ महिलाओं को गंभीर लक्षणों के कारण ठीक होने में कई साल भी लग सकते हैं। ऐसे में प्रभावित महिला के लिए सही समय पर इसके लक्षणों को पहचानना और उपचार कराने के साथ ही हेल्दी जीवन जीना, डॉक्टर की सलाह का पालन करना और नियमित चेकअप जरूरी है।
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