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एंटी-इंफ्लमेट्री डायट से ठीक हो सकती है ऑटोइम्यून डिजीज

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड Dr. Shruthi Shridhar


Shayali Rekha द्वारा लिखित · अपडेटेड 30/12/2021

    एंटी-इंफ्लमेट्री डायट से ठीक हो सकती है ऑटोइम्यून डिजीज

    सही ही कहा गया है कि हम जैसा खाते हैं हमारे शरीर पर उसका वैसा ही असर होता है। ऐसे में अगर आप बीमार हो जाते हो तो भी डॉक्टर आपको अपनी डायट दुरुस्त करने की सलाह देते हैं। अगर आपको ऑटोइम्यून डिजीज हो तो आपके लिए एंटी-इंफ्लमेट्री डायट सबसे सही रहेगी। एंटी-इंफ्लमेट्री डायट एक ऐसा आहार है जो ऑटोइम्यून डिजीज से पीड़ित व्यक्ति को दवाओं के साथ खाना होता है। आसान शब्दों में कहा जा सकता है कि आपके ऑटोइम्यनून डिजीज के लिए दवा के साथ-साथ डायट भी असरदार होती है और आपको जल्दी ठीक होने में मदद मिलेगी। एंटी-इंफ्लेमेट्री डायट टाइप 1 डायबिटीज, रुमेटॉइड आर्थराइटिस, इंफ्लमेट्री बाउल डिजीज और क्रॉन्स डिजीज आदि ऑटोइम्यून डिजीज में लिया जाता है। 

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    ऑटोइम्यून डिजीज (Autoimmune Diseases) क्या है?

    ऑटोइम्यून डिजीजेस बीमारियों का समूह है। ऑटोइम्यून दो शब्दों से मिल कर बना है – ऑटो का मतलब है ‘अपने आप’ और इम्यून का मतलब है ‘प्रतिरक्षा’। इस बात को इस तरह से समझा जा सकता है कि शरीर का इम्यून सिस्टम अपने आप कमजोर हो जाता है। जिससे होने वाली बीमारियों को ऑटोइम्यून डिजीजेस कहते हैं। यह शरीर के किसी भी अंग में हो सकती है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम स्वस्थ ऊतकों को ही नष्ट करने लगता है।

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    ऑटोइम्यून डिजीज के कारण (Cause of autoimmune disease)? 

    हमारा इम्यून सिस्टम शरीर में बाहर से आए बैक्टीरिया और वायरस से लड़ता है। लेकिन ऑटोइम्यून डिजीज में शरीर के स्वस्थ्य टिश्यू को ही आपका इम्यून सिस्टम नष्ट करने लगता है। अक्सर ऑटोइम्यून डिजीज उन लोगों में होती है जिनका खराब लाइफस्टाइल हो और जो फास्ट फूड का सेवन करते हैं, और साथ ही जो मोटापे के शिकार हो। वेस्टर्न डायट के कारण भी ऑटोइम्यून डिजीज होती है। हाई-फैट, हाई-शुगर और हाई प्रोसेस्ड फूड खाने से इम्यून संबंधित बीमारियां हो जाती हैं।

    इसके अलावा अन्य कारण भी हैं : 

    • आनुवंशिक
    • पर्यावरण के कारण
    • टॉक्सिन या बैक्टीरिया के कारण

    2014 में हुई एक रिसर्च के अनुसार महिलाओं में ऑटोइम्यून डिजीज होने का खतरा पुरुषों के तुलना में दोगुना है। जहां, 78 % महिलाएं ऑटोइम्यून डिजीज से ग्रसित रहती हैं, वहीं 8 % पुरुषों में ऑटोइम्यून डिजीज की समस्या पाई जाती है। महिलाओं में ऑटोइम्यून डिजीजेस 15 से 44 साल के उम्र में ही नजर आने लगते हैं। 

    2015 में आई एक अन्य थीअरी, जिसे हाइजीन हाइपॉथिसिसि कहते हैं। क्योंकि वैक्सीन और एंटीसेप्टिक का सही तरीके से इस्तेमाल न करने से उनमें ऑटोइम्यून डिजीज की समस्या हो जाती है। 

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    ऑटोइम्यून डिजीज के सामान्य प्रकार क्या हैं (What are the Common Types of Autoimmune Diseases)?

    ऑटोइम्यून डिजीज निम्न प्रकार के होते हैं : 

    हेल्दी लाइफस्टाइल ऑटोइम्यून डिजीज के ठीक होने में कैसे मदद कर सकती है (How a healthy lifestyle can help with autoimmune disease)?

    जैसा कि पहले ही बताया गया है कि ऑटोइम्यून डिजीज बीमारियों का एक समूह है। जिसके लिए हमारी खराब लाइफस्टाइल जिम्मेदार होती है। अध्ययनों में पाया गया है कि आप हेल्दी लाइफस्टाइल ऑटोइम्यून डिजीज से उबरने में मददगार साबित होती है। क्योंकि पोषक तत्वों के कमी के कारण भी हम ऑटोइम्यून डिजीज से जूझते हैं। 

    उदाहरण के लिए, विटामिन डी की कमी होने पर मल्टीपल स्केलेरोसिस हो जाता है। मोटापा भी कई ऑटोइम्यून डिजीज का जड़ होता है। तनाव और चिंता के कारण भी ऑटोइम्यून फ्लेयर्स भी सामने आते है। ऐसे में शरीर को सही पोषक तत्व मिलने पर और स्वस्थ वजन बनाए रखने से ऑटोइम्यून डिजीज में आराम मिलता है। टेंशन और स्ट्रेस को मैनेज कर के और पूरी नींद लेने से एक ऑटोइम्यून इंफ्लमेशन कम किया जा सकता है। 

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    एंटी-इंफ्लेमेट्री डायट में क्या नहीं खा सकते हैं (What not to eat in anti-inflammatory diet)? 

    ग्लूटेन (Gluten)

    ग्लूटेन ज्यादातर स्टार्च युक्त भोजन में पाया जाता है। ग्लूटेन गेंहू, जौ, बाजरे आदि में पाया जाता है। ग्लूटेन सीलिएक डिजीज को बढ़ावा देने में अव्वल होता है। इसलिए ऑटोइम्यून डिजीजेस में ग्लूटेन का सेवन करने से आपको समस्या होगी। 

    क्लिनिकल गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी की एक रिसर्च में पाया गया है कि शरीर में ग्लूटेनकी ज्यादा मात्रा होने से स्क्लेरोसिस, अस्थमा और रूमेटॉइड आर्थराइटिस होता है। जिसका सेवन न करने से आपको अपने अंदर होने वाले बदलाव नजर आने लगेंगे। साथ ही ऑटोइम्यून डिजीज के लक्षणों में भी कमी आएगी। 

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    नॉनवेज में मीट न खाएं

    चिकन कोरमा

    एंटी-इंफ्लमेट्री डायट में मांस को बिल्कुल भी न शामिल करें। जंतुओं में प्रोटीन की मात्रा सबसे ज्यादा पाई जाती है। जिसमें दूध, अंडे और मांस शामिल हैं। इन्हें खाने से शरीर में सूजन और जलन बढ़ती जाती है। 

    अमेरिकन डायटिक एसोसिएशन ने एक रिसर्ज में पाया कि जो लोग वीगन डायट लेते हैं, उन्हें ऑटोइम्यून डिजीजेस में काफी राहत मिलती है। वहीं, जो लोग नॉनवेज खाते हैं, उनके दर्द में इजाफा पाया गया।

    ज्यादा मात्रा में एनिमल फैट्स लेने पर हमारी धमनी जल्दी पैरालाइज्ड हो जाती है। जिससे उनमें ब्लड फ्लो बहुत कम हो जाता है। 

    कॉम्प्लिमेंट्री थेरिपीज इन मेडिसिन जॉर्नल ऑफ कार्डियोलॉजी में ये बात प्रकाश में आई कि जो लोग तीन हफ्ते से वीगन डायट पर निर्भर रहते हैं, उनके शरीर में दर्द और सूजन कम पाई गई। क्योंकि उनमें सी-रिएक्टिव प्रोटीन कम पाए गए थे। अन्य कई रिसर्च में पाया गया है कि जो लोग हर भोजन में मांस खाते हैं, उनमें आर्थराइटिस की समस्या बहुत ज्यादा होती है। इसलिए अगर आप मांसाहारी हैं तो एक नियमित मात्रा में ही नॉनवेज का सेवन करें।

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    शुगर (Sugar)

    स्टीविया

    फ्रंटियर ऑफ इम्यूनोलॉजी की एक रिसर्च में ये बात सामने आई है कि अगर आप ज्यादा मात्रा में शुगर लेते हैं तो डायबिटीज होने का खतरा बढ़ जाएगा। साथ ही, शरीर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। एंटी-इंफ्लमेट्री डायट में शुगर को लगभग कट किया जाता है।

    वहीं, अमेरिकन जॉर्नल ऑफ क्लीनिकल न्यूट्रिशन के अनुसार शुगर के किसी भी प्रकार (ग्लूकोज, फ्रक्टोज और सुक्रोज) का सेवन इम्यून सिस्टम को खराब कर देता है। जिससे व्हाइट ब्लड सेल्स को ही इम्यून सिस्टम नष्ट करने लगता है। इसलिए अपने डायट में शुगर की मात्रा को कम करें या बंद करें। उसकी जगह पर आप नेचुरल शुगर ले सकते हैं, जैसे- गुड़।

    इसके अलावा निम्न चीजें न खाएं :

    • ट्रांसफैट
    • प्रोसेस्ड फूड
    • एल्कोहॉल
    • कैफीन
    • फूड डाई

    एंटी-इंफ्लमेट्री डायट में क्या खाएं (What to eat on anti-inflammatory diet)? 

    हरी पत्तेदार सब्जियां (Green leafy vegetables)

    एंटी-इंफ्लमेट्री डायट में हरी पत्तेदार सब्जियां खानी चाहिए। हरी पत्तेदार सब्जियों का नाम सुनते ही सबसे पहले मन में पालक का ख्याल आता है। लेकिन पालक के अलावा भी अन्य हरी पत्तेदार सब्जियां हैं, जैसे – ब्रॉकली, पत्तागोभी, सरसों का साग, सलाद पत्ता आदि का सेवन कर सकते हैं। हरी पत्तियों का सेवन करने से ऑटोइम्यून डिजीज में आराम मिलता है। हरी पत्तियों में विटामिन और मिनरल पाया जाता है। आप सलाद, स्मूदी, फ्राई आदि में इन हरी पत्तियों को डाल कर खा सकते हैं। 

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    वेजिटेबल रूट को डायट में करें शामिल (Include vegetable route in diet)

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    वेजिटेबल रूट यानी कि सब्जियों की जड़ें, जैसे- चुकंदर, शलजम, गाजर, मूली आदि खाने से ऑटोइम्यून डिजीज में राहत मिलती है। क्योंकि, इनमें विटामिन सी, पोटैशियम, मैग्निशीयम, जिंक, आयरन आदि तत्व पाए जाते हैं। साथ ही गाजर में आंखों की रोशनी बढ़ाने के भी गुण मौजूद हैं। जिससे यूविआइटिस (Uveitis) से राहत मिलती है। एंटी-इंफ्लमेट्री डायट में वेजिटेबल रूट को जरूर शामिल करें।

    मशरूम (Mushrooms)

    अगेरकस मशरूम क्या है?

    मशरूम एक फफूंद है, लेकिन मीडिएटर्स ऑफ इंफ्लमेशन के मुताबिक एंटी-इंफ्लमेट्री डायट में मशरूम का सेवन करने से जहां एक तरफ ऑटोइम्यून डिजीज से राहत मिलती है, वहीं दूसरी तरफ कैंसर जैसी घातक बीमारी से बचाव होता है। क्योंकि मशरूम में एंटीकैंसर गुण होते हैं।

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    फल (Fruit)

    एंटी-इंफ्लमेट्री डायट में फलों का सेवन करना मतलब सभी तरह के पोषक तत्वों का मिलना है। इसलिए अपनी डायट में फ्रूट्स को जरूर शामिल करें, जैसे- ब्लूबेरी, स्ट्रॉबेरी और ब्लैकबेरी को शामिल करें। 

    मछलियां (Fish)

    fish cures heart disease

    ऑटोइम्यून डिजीज में फैटी फिश खाना अच्छा होता है। क्योंकि फैटी फिश में गुड फैट होते हैं। साथ ही एंटी-इंफ्लमेट्री डायट में मछलियों का सेवन करने से आपको ओमेगा-3 फैटी एसिड पाया जाता है।

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    ऑलिव ऑयल (Olive Oil)

    ऑलिव नाम के पेड़ की पत्तियों और फलों से निकले लिक्विड को ऑलिव ऑइल कहा जाता है। जिसका इस्तेमाल दवाई और खाना बनाने के लिए किया जाता है। ऑलिव ऑइल को हार्ट अटैक और स्ट्रोक (cardiovascular disease), ब्रैस्ट कैंसर, कोलोरेक्टल कैंसर, ओवेरियन कैंसर और माइग्रेन आदि से बचाव के लिए इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही ऑटोइम्यून डिजीज में भी काफी फायदेमंद होता है। 

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    एवोकैडो (Avocado)

    Avocado Stress Relief

    एवोकैडो एक फायदेमंद फल है। औषधीय गुणों से भरपूर यह फल बहुत स्वादिष्ट भी है। कुछ अध्ययनों के मुताबिक एवोकैडो कोलेस्ट्रॉल को कम करता है, लिपिड प्रोफाइल में सुधार लाता है और पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस के लक्षणों को कम भी कर सकता है। अगर आपको किसी भी तरह की समस्या हो तो आप अपने डॉक्टर से जरूर पूछ लें।

    डिस्क्लेमर

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