बच्चों में मानिसक बीमारियां होना आम बात है लेकिन इसकी समय से पहचान कर पाना माता-पिता के लिए एक चैलेंज हो सकता है। बच्चों में मानसिक बीमारियों का कारण केवल स्ट्रेस नहीं है उससे कहीं ज्यादा है। दूसरी बीमारियों की तरह बच्चों में मानसिक बीमारियां (Mental illnesses in children) भी ठीक की जा सकती है और यह बच्चे एकदम ठीक होकर नॉर्मल जिंदगी जी सकते हैं। सबसे पहले बच्चों में मानिसक बीमारियां क्यों होती है ये जानना जरूरी हैं, जिससे बच्चों की समय से मदद की जा सके।
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बच्चों में मानसिक बीमारियों के प्रकार (Types of mental illnesses in children)
सबसे पहले ये जानना जरूरी है कि बच्चों में मानसिक बीमारियां (Mental illnesses in children) या मेंटल प्रॉब्लम उनके मूड, उनके सोचने के तरीके और उनके व्यवहार में बदलाव के लिए जिम्मेदार हो सकती हैं। बच्चों में इन पांच तरह की मानसिक बीमारियां हो सकती हैंः
- मूड डिसऑर्डर (depression, bipolar)
- एंग्जायटी डिसऑर्डर (OCD, generalised anxiety)
- ईटिंग डिसऑर्डर
- डिमेंशिया (Alzheimer’s)
- साइकोटिक डिसऑर्डर (Schizophrenia)
बच्चों में मानसिक बीमारियों के वॉर्निंग साइन
दस में से एक बच्चों में मानसिक बीमारियां (Mental illnesses in children) होती हैं। लेकिन, उसमें 33 प्रतिशत से भी कम बच्चों में मानसिक बीमारियां माता-पिता को पता चल पाती हैं और उसके बाद उन्हे मदद मिल पाती है। 15 साल से कम उम्र के बच्चों में मानसिक बीमारियां सामान्य है। बच्चों में सबसे कॉमन मानसिक बीमारियां इस तरह से हैंः
- ऑटिज्म स्पैक्ट्रम डिसऑर्डर (Autism Spectrum Disorder, ASD)
- अटेंशन डिफिसिट हाइपर एक्टिविटी डिसऑर्डर (Attention Deficit, Hyperactivity Disorder,ADHD)
- एंग्जायटी (Anxiety)
- डिप्रेशन (Depression)
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बच्चों में मानसिक बीमारियों को यूं पहचानें
बच्चों के लिए माता-पिता उनके जीवन में बड़ी भूमिका निभाते हैं। माता-पिता का अपने बच्चों से हर रोज बात करना बहुत जरूरी है क्योंकि इससे माता-पिता अपने बच्चों में मानसिक बीमारियां (Mental illnesses in children) के कारण को ढ़ूढ़ पाते हैं। जब माता-पिता अपने बच्चों से बात करते हैं, तो उन्हें पता चलता है कि उनके बच्चे के साथ क्या चल रहा है। कई बार इंटरेक्ट करने से ही माता-पिता को अपने बच्चों की परेशानी समझ में आ जाती है। हम आपको कुछ ऐसी कंडिशन्स के बारे में बताएंगें, जो बच्चों में बहुत कॉमन है और जो बच्चों में मानसिक बीमारियां (Mental illnesses in children) होने का कारण हो सकती हैं।
इस बारे में डफरिन हॉस्पटिल के चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉक्टर सलमान का कहना है कि पेरेंट्स का चिंता करना स्वभाविक है, लेकिन “क्या होगा अगर…” यदि इसकी बजाय अपने आप से पूछें कि अब बच्चे के लिए मेरा कर्तव्य क्या है?” ऑटिज्म के शिकार बच्चों के लिए स्पीच थेरिपी काफी प्रभावकारी है। इससे उन्हें संचार में काफी मदद मिलती है, जैसा कि ऊपर बताया गया है कि 35% ऑटिस्टिक बच्चे (Autistic children) ठीक से कम्युनिकेन नहीं कर पाते हैं। जिसके कारण ऐसे बच्चे अपनी बात व्यक्त नहीं कर पाते हैं। जोकि पेरेंट्स के लिए सबसे बड़ा चिंता का विषय है। ऐसे बच्चों में और सभी ऑटिज्म के शिकार बच्चों के लिए स्पीच थेरिपी काफी मददगार है। ऐसे बच्चे सांकेतिक भाषा (sign language) या संचार के वैकल्पिक साधन सीख सकते हैं।
ऑटिज्म स्पैक्ट्रम डिसऑर्डर (Autism Spectrum Disorder, ASD)
बच्चों में मानसिक बीमारियां (Mental illnesses in children) होना वैसे तो सामान्य है लेकिन एएसडी के कुछ शुरुआती लक्षण है, जों उनके शुरुआती दो साल में नजर आते हैं। इन लक्षणों की वजह के बच्चों के सामाजिक विकास पर गहरा असर पड़ता है। हर बच्चे में इसके लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं। किसी में ये लक्षण ज्यादा होते हैं, तो किसी में बहुत कम।
जिन बच्चों में यह परेशानी होती है। उन्हें अपने आस-पास के लोगों से बात करने और उनसे इंटरेक्ट करने में परेशानी होती है। ऑटिज्म स्पैक्ट्रम डिसऑर्डर वाले बच्चों में यह लक्षण दिख सकते हैंः
- आई कॉन्टेक्ट में कमी
- कम या बिल्कुल भी न हंसना
- दूसरों के साथ खेलने और इंज्वाय करने में कमी
- दूसरों का ध्यान आकर्षित करने के लिए चिल्लाना
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अटेंन्शन डेफिसिट हाइपर एक्टिविटी डिसऑर्डर (ADHD)
एडीएचटी के तीन मुख्य भाग हैं: असावधानी (inattention), हाइपरएक्टिविटी (hyperactivity) और धैर्य की कमी (impulsivity)।
एक बच्चे में एडीएचडी के इन लक्षण में से एक या सभी हो सकते हैं और उनका व्यवहार इस तरह से हो सकता है
- बहुत अधिक बेचैनी और गुस्सा
- किसी और के कुछ बौलने से धैर्य खोना
- अपनी बारी का इंतजार करने में असमर्थ होना
- अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने में परेशानी (जिसके कारण नखरे और मूड स्विंग्स होना)
इसके अलवा इस परेशानी के लक्षण टीचर को स्कूल में दिखते हैं। जब टीचर बच्चे को टास्क करने को देते हैं और वह असावधानी के कारण इसको नहीं करता। बच्चों में मानसिक बीमारियां (Mental illnesses in children) उनका ध्यान भटकाने के लिए काफी होती हैं। वह अपना काम करने के समय पर कुछ और ही करते हैं। कभी-कभी शिक्षक इन व्यवहारों को नोटिस करते हैं और उन्हें माता-पिता को बताते हैं। अगर आपको बच्चों में एडीएचडी होने का संकेत दिखता है या आपको अपने बच्चे के साथ बात करने में परेशानी हो रही है, तो चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट, बाल रोग विशेषज्ञ या अपने परिवार के डॉक्टर से तुरंत बात करें।
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एंग्जायटी
बच्चों में चिंता किसी भी तरह का फोबिया या अधिक डर कहलाता है। बच्चों में मानसिक बीमारियां (Mental illnesses in children) होने की वजह से उन्हें कभी-कभी चीजों से डर या फोबिया हो जाता है। यह डर किसी भी चीज का हो सकता है। वह चाहें तेज आवाज, जानवरों का डर, पानी से लेकर कुछ खास जगहों जैसे स्कूल और अस्पताल जाने का डर हो सकता है। बच्चों में मानसिक बीमारियां होने के कारण बच्चा अपने फोबिया का रिस्पॉन्स अलग-अलग तरह से देता है। जैसे रोना, नखरे दिखाता है, दूर भागना या चीजों को अवॉयड करना। इसके अलावा बच्चों में कभी-कभी साइकोमैटिक लक्षण भी दिखते है जैसे पेट दर्द या सिरदर्द।
हालांकि बच्चो में मानसिक बीमारियां (Mental illnesses in children) ठीक करने का सबसे बड़ा रास्ता है उनसे बात करना। डॉक्टर भी सुझाव देते हैं कि आप अपने बच्चे की एंग्जायटी को कैसे कम कर सकते हैं। हालांकि, अगर बच्चों की मानसिक बीमारियां आपके कंट्रोल से बाहर होने लगती हैं, तो जल्द से जल्द डॉक्टर से बात करना बच्चे के तनाव को कम कर सकता है।
डिप्रेशन (Depression)
डिप्रेशन बच्चे द्वारा अनुभव की जाने वाली कभी-कभी उदासी की भावना से अधिक है लेकिन अगर ऐसा लगातार (दो सप्ताह से अधिक) होता है और बच्चे की रोजमर्रा की जिंदगी और कामकाज को प्रभावित करता है।
आपका बच्चा सभी या इनमें से कुछ लक्षणों को महसूस कर सकता हैः
- भूख या नींद में बदलाव (अत्यधिक या बहुत कम)
- दुखी महसूस करना
- उदास रहना
- सुसाइडल विचार
- उन गतिविधियों का आनंद नहीं लेना, जो दूसरे बच्चे एंज्वाय करते हैं
- कॉन्सन्ट्रेट करने में परेशानी
- सुस्ती और थकान
- चिड़चिड़ापन
अवसाद के पीछे की चिंता जानबूझकर खुदकुशी और आत्मघाती विचारधारा है, जो बहुत जरूरी है, जिस पर माता-पिता को ध्यान देने की जरूरत है।
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बच्चों में मानसिक बीमारियां होने पर पेरेंट्स खुद को करें तैयार
बच्चों में मानसिक बीमारियां (Mental illnesses in children) या मेंटल प्रॉब्लम होने पर उनकी सबसे ज्यादा मदद माता-पिता कर सकते हैं। घर में बात करने से लेकर डॉक्टर को दिखाने तक माता-पिता एक बड़ी भूमिका निभाते हैं। बच्चों में मानसिक बीमारियां (Mental illnesses in children) माता-पिता के लिए आसान नहीं हैं लेकिन कुछ जरूरी बातों को ध्यान में रखकर माता-पिता बच्चों की मदद कर सकते हैं।
बच्चों का ध्यान रखने के लिए माता-पिता के लिए जरूरी टिप्सः
शिक्षित हों
बच्चों में मानसिक बीमारियां (Mental illnesses in children) क्यों होती है और कैसे होती है इसके संकेतों को जानना जरूरी है। अगर आप बच्चों में मानसिक बीमारियां होने के लक्षण देखते हैं, तो जितना जरूरी हो मदद लें। जब आपको किसी तरह का शक हो, तो खुद ऑनलाइन सर्च करें, सवाल पूछें, विशेषज्ञों से पूछें और वह सब कुछ पता करें, जो आपको जानना चाहिए।
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सशक्तिकरण
बच्चों में मानसिक बीमारियां या दिमागी बीमारी होना कोई बड़ी समस्या नहीं है। एक बार जब आप अपने बच्चे की देखभाल करने में आत्मविश्वास महसूस करते हैं, तो यह आपको सशक्त बनाने के अगले कदम ले जाता है। अपने बच्चे के डॉक्टर से बात करें और अपने परिवार के सदस्यों के साथ काम करें। आपको यह महसूस करने की जरूरत हैं कि आप अकेले नहीं हैं।
बच्चों में मानसिक बीमारियां करनी है दूर तो मोटिवेशन लें
उन लोगों से प्रोत्साहन लें जो आपकी जैसी स्थिति से गुजरे हैं। इसके अलावा ऐसे पेरेंट्स से मिलें जिनके बच्चों में मानसिक बीमारियां (Mental illnesses in children) रहीं है या वह आपके जैसे मुद्दों का सामना कर रहे हैं। बच्चों में मानसिक बीमारियां (Mental illnesses in children) होना या दिमागी बीमारी एक आम समस्या है, जिसपर आपको अपने परिवार और अपने डॉक्टर से खुल कर बात करनी चाहिए।
बच्चों में मानसिक बीमारियां होना किसी एक कारण या बहुत से अलग-अलग कारणों की वजह से हो सकता है। लेकिन, उसको हैंडल करने के लिए माता-पिता का प्रो-एक्टिव होना जरूरी है। बच्चों में मानसिक बीमारियां (Mental illnesses in children) होने पर माता-पिता को तुरंत अपने डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए और बच्चो को डॉक्टर द्वारा बताए गए तरीकों से हैंडल करना चाहिए।
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